मेरी प्रेरणा

मेरी प्रेरणा

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कल मीनल के कॉलेज में वार्षिकोत्सव के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन था।

अपने अब तक के छात्र जीवन में ये पहला अवसर था जब मीनल भी कार्यक्रम में भाग ले रही थी।

कल मंच पर उसे अपनी लिखी हुई कहानी पढ़नी थी।

मीनल की सहेलियों ने उसकी रचना की बहुत तारीफ़ की थी फिर भी वो आश्वस्त नहीं हो पा रही थी।


सारी रात करवटों में गुजारने के बाद सुबह मीनल वक्त से कुछ पहले ही तैयार होकर कॉलेज चली गयी।

कुछ कार्यक्रमों के बाद मंच पर मीनल के नाम की घोषणा हुई।

उसकी सभी सहेलियां उसका हौसला बढ़ा रही थी।

धीमे कदमों से मंच पर पहुँचकर उसने माइक संभाल लिया और सभी उपस्थित शिक्षकों और अपने सहपाठियों का अभिवादन करते हुए अपनी लिखी हुई पहली कहानी शुरू की।


कुछ ही पंक्तियों के बाद उसमें आत्मविश्वास आ गया, जो उसके स्वर में स्पष्ट झलक रहा था।

कहानी खत्म होने के बाद सबने उसके लिए तालियां बजायी और आगे भी इसी तरह लिखते रहने के लिए कहा।

कार्यक्रम की समाप्ति के बाद जब श्रेष्ठ प्रस्तुतियों को पुरस्कृत करने की बारी आयी तब उनमें मीनल का नाम भी शामिल था।


प्राचार्य के हाथों पुरस्कार लेने के बाद जब मीनल से दो शब्द कहने के लिए कहा गया तब उसने कहा,

"जब मैं नवीं कक्षा की छात्रा थी तब मैंने पहली बार आदरणीय प्रेमचंद जी की कहानी संग्रह 'मानसरोवर' पढ़ी थी, जिसकी सभी कहानियां मेरे हृदय को छू गयी थी।

उस दिन पहली बार मेरे मन में ये इच्छा जागी थी कि एक दिन मैं भी ऐसा ही कुछ लिखूँ जो पाठकों के हृदय तक पहुँचें।

आज आप सबके आशीर्वाद और स्नेह के साथ अपने उस सपने की तरफ पहला कदम बढ़ाते हुए मैं बहुत खुश हूँ।

एक बार फिर आप सबका आभार कि आपने मुझे सुना।"


मीनल की सभी सहेलियां अपने स्थान पर खड़ी होकर उसके लिए तालियां बजाकर उसकी खुशी को दोगुना कर रही थी।


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