Bhavna Thaker

Romance

5.0  

Bhavna Thaker

Romance

मेरी खुशियों की बारिश

मेरी खुशियों की बारिश

10 mins
780


आज ट्रेन की रफ्तार बहुत धीमी लग रही है, मन करता है उड़ कर पहुँच जाऊँ बहुत समय बाद घर जा रहा हूँ। इस बार तो माँ ओर भाभी ने धमकी जो दी वंश इस बार दिवाली पर घर नहीं आओगे तो हम तुमसे कभी बात नहीं करेंगे।

MBA करके सीधे जो पहली जाॅब मिली वहीं पर जम गया। दिन रात मेहनत करके जनरल मैनेजर की पोस्ट तक पहुंच गया, ज़िंदगी तेज रफ़तार से निकल रही थी पर अब जाके थोड़ा सेटल हुआ हूँ तो अब ज़िंदगी से कुछ पल चुराकर जीना है आराम से।

उफ्फ़ लगता है इस बार बारिश का मिजाज दिवाली मना कर जाने का है। धीमी-धीमी फुहार बरस रही है। चारों ओर फैली हरियाली मन को आह्लादित कर रही थी और साथ में किसी मनभावन की याद में तड़पा भी रही थी और मनभावनी वृंदा गांधी तसव्वुर में आन बसी "मेरी खुशियों की बारिश" 

हाँ मैं उसे बारिश कहता था जब-जब वो मेरे सामने आती थी, मेरे वजूद पर अपनी छाप छोड़कर एक मीठे एहसास की बारिश कर जाती थी.!

कभी-कभी पुरानी पतझड़ की भूल-भूलैया में खो जाना सुकून देता है उस चेहरे का रेखाचित्र बंद आँखों से भी बना लूँ जहन में इस कदर बसा है, रिक्त सपना मेरा अब खुली आँखों से देखता हूँ। तीन साल काॅलेज में पास-पास की बेंच पर बैठे एक दूसरे को तकते बीता दिए, ना मैं इज़हार कर पाया ना वो इकरार बस दिल ही दिल में प्यार करते रहे।

मेरे दिल का हाल जानता था मैं पागल था उस नार्मल सी लड़की के पीछे, गेंहूँआ रंग, हल्की काजल अंजी आँखें, नाजुक रताशी होंठ, संदली सी महकती एक दायरे में खुद को जज़्ब करते रखती थी पर कनखियों से मुझे देखना नहीं भूलती थी, ओर मेरा देखना उसे बेकल करता था सादगी में भी सुंदरता की मूरत लगती थी, काॅलेज के पहले दिन ही हम दोनों का सामना सीढ़ीयों पर टकराते हुआ था वो उतर रही थी अपने खयालों में मैं चढ़ रहा था की दोनों के कँधे टकरा गए ओर दोनों के मुँह से ओह आय एम सौरी निकल गया, वो छुईमुई सी सकुचाती निकल गई पर उसकी छुअन आज भी इस काँधे में ज़ाफ़रानी खुशबू भर देती है।

कालीदास की कल्पना सी पर आज क्यूँ वो इतनी याद आ रही है ? कहाँ होगी, कैसी होगी पता नहीं अब तक तो उसकी शादी भी हो गई होगी पर कहते है ना पहला प्यार इंसान भुलाने से भी नहीं भूल पाता उस अधूरे अनगढ़ किस्से को पूर्ण विराम देना ही अच्छा है जब-जब याद आती है एक टिश उठती है।

खैर शायद कोई स्टेशन आया सामने ही चाय का स्टोल दिखा बाजू में ही गर्मा-गर्म पकोड़े बन रहे थे हल्की बारिश में ओर क्या चाहिए। 

अभी पूरी रात बितानी है ट्रेन में सुबह दस बजे सूरत स्टेशन की सूरत दिखेगी चलो सोते-सोते दोहराएँगे नाकाम मोहब्बत के किस्से, हम वो है जो अपने पहले प्यार का इज़हार ना कर सके एक अदब कह लो या छोछ पर अब पछताए क्या।

वो उम्र की दहलीज़ होती ही है फिसलन वाली दिल किसीकी अदाओं पर ना फिसले तो ही ताज्जुब.! 

ओह ये बाजू की सीट वाले अंकल के खर्राटे लगता है पूरी रात वृंदा के खयालों में कटेगी, कहते है दुनिया गोल है शायद राह चलते कहीं मिल भी जाएँ, सोचते-सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला ओह अब तो आधा घंटा ही रह गया सूरत पहुँचने में वोश रुम में जाकर फ्रेश हो लिया की ट्रेन सूरत स्टेशन पर रुकी।

फ़टाफ़ट सामान लिया ओर घर के लिए कैब बुक की माँ-पापा भैया-भाभी सब बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे ओर छोटा सिंकु तो चाचू को देखते ही चिपक जाएगा सच में घर आख़िर घर होता है, 

ओर घर आते ही सच में भागते हुए सिंकु लिपट गया ओर सबसे मिलकर एक सुकून सा महसूस हुआ, माँ मेरी इतनी भावुक है की बस बोलती कुछ नहीं उसकी नम आँखें सब बयाँ कर देती है, भैया-भाभी ओर पापा सबके चेहरे पर मुझे देखते ही रौनक छा गई।

आधा दिन आराम करके मैं तो सिंकु को लेकर शोपिंग पर निकल गया,

ढ़ेर सारे पटाखे, कपड़े, मिठाईयाँ ओर सबके लिए पता नहीं क्या-क्या उठा लाया घर में खुशी का माहौल था तो भाभी ने मेरी खिंचाई शुरू कर दी वंश भैया अब मुझसे अकेले सबकुछ नहीं होता घर संभालूँ, रंगोली बनाऊँ, सिंकु को रखूँ, माँ पापा का खयाल रखूँ क्या-क्या करूँ अब मुझे जल्दी से देवरानी ला दो बस ताकी में भी कुछ आराम करूँ मैंने भाभी से कहा वो दिन गए भाभी अब तो आप ओर माँ जानों आपकी पसंद मेरी पसंद, जब जहाँ बोलोगे बंदा कर लेगा शादी ओर अब मुझे भी लग रहा था सेटल हो जाना चाहिए फिर से वृंदा की प्यारी सूरत याद आने लगी काश की हिम्मत की होती आज हम भी बाल बच्चे वाले होते।

आज दिवाली की रात थी पूरे मोहल्ले में चहल-पहल थी हर घर फूल हार से रोशन ओर हर आँगन रंगोली से सजा हुआ था। सिंकु पटाखों की थैली उठाकर आया चलिए चाचू पटाखे फोड़ते है मैं भी बड़े उत्साह से सिंकु के साथ पटाखे की रंगत देखने चला आया, भाभी बड़ी सुंदर रंगोली निकाल रही थी सिंकु ने रोकेट जलाया जैसे ही रोकेट को देखने मैंने आसमान की तरफ़ चेहरा किया सामने वाले घर की बालकनी में खड़ी एक लड़की को देखकर मेरा दिल धड़कन चुक गया, आँखों पर यकीन नहीं हुआ मेरा पहला प्यार मेरी वृंदा मेरी खुशियों की बारिश यहाँ इस हाल में कैसे ? उदास, मुरझाई, सिम्पल सी साड़ी, बिखरे बाल ओर मानों ज़िंदगी जीने से कोई मतलब ही ना हो बस सिर्फ़ साँसे लेने भर को जी रही हो.! 

आँखों को कितनी बार खोल बंद करके देखा नहीं वृंदा को पहचानने में मेरी आँखें कभी धोखा नहीं खा सकती पर एक समय की हंसती खेलती नाजुक गुड़िया सी ज़िंदगी के पल-पल को मस्ती में जीने वाली लड़की ने ये क्या हाल बना लिया था।

मैंने भाभी से अन्जान बनकर पूछा भाभी वो जो सामने बाल्कनी में लड़की खड़ी है वो कौन है ?

भैया वो लोग कुछ दिन पहले ही रहने आए है ज़्यादा परिचय नहीं पर इस लड़की का पति फौज में था कुछ समय पहले ही शहीद हो गया ये बेचारी भरी जवानी में ही विधवा हो गई, ये उसका मायका है अब यहीं रहती है मैंने अक्सर उसे एसे बाल्कनी में खड़े चुपचाप शून्य में तकते देखा है। 

मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा भगवान इतने निष्ठुर कैसे हो सकते है एक साथ कई खयालों ने दिमाग में धमासान मचा दिया अपनी वृंदा को आज दिवाली के त्यौहार पर इस हाल में देखना मेरा दिल चर्राए जा रहा था, मैंने भाभी से कहा भाभी आप जाकर उसे नीचे ले आइये ना हम साथ मिलकर पटाखे जलाते है।

भाभी ने कहा भैया एसे कैसे इतनी जान पहचान नही ओर वो लोग क्या सोचेंगे ? फिर भी चलो इस बहाने ही जान पहचान हो जाए कोशिश करके देखती हूँ,

भाभी गई पर मेरी दिवाली मानों होली बन गई रोम-रोम जल रहा था वृंदा को इस हाल में देखकर फूल सी वृंदा की हंसी को ज़िंदगी कैसे छीन सकती है क्या बितती होगी उसके उपर ओर उसके परिवार के उपर.!

कुछ ही देर में भाभी अकेले वापस आई बोली भैया वृंदा की मम्मी ने बोला की वृंदा ना कहीं आती-जाती है ना किसीसे बात करती है बस कहने भर को ज़िंदा है हम तो समझा कर हार गए, मनोचिकित्सक की ट्रीटमेंट चल रही है हम भी चाहते है हमरी बच्ची वापस हंसती खेलती हो जाएँ।

मेरे मन ने एक ठोस निर्णय लिया चाहे कुछ भी हो जाए वृंदा की ज़िंदगी में खुशियाँ वापस लाकर रहूँगा मैं उसके सामने जाऊँगा शायद पहचान ले पर कैसे? 

दिवाली की चहल-पहल खत्म हुई अभी मेरी दस दिन की छुट्टीया थी "बस दस दिन में मुझे मेरी वृंदा को दस जन्म की खुशीयाँ देनी है" घर में सबसे करीब भाभी थी तो भाभी को साथ लेकर ही चलना होगा ये सोचकर भाभी को सब बताया कैसे मैं वृंदा को जानता हूँ, कैसे दिल ही दिल में दोनों प्यार करते थे सबकुछ बताया तो भाभी ने बोला भैया अगर मैं आप दोनों को आपकी खुशियाँ दिला सकती हूँ तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है मैं आज ही वृंदा से मिलती हूँ।

ओर मेरी प्यारी भाभी ने दो दिन में कर दिखाया तीसरे दिन वृंदा को घर ले आई शायद भाभी से मिलकर वृंदा को अच्छा लगा था, हल्की सी नार्मल दिख रही थी भाभी के प्लान के मुताबिक मैं अन्जान बनकर मानों बाहर से घर में आया, पहले वृंदा पर ध्यान नहीं दिया सामान्य सा भाभी को बोला भाभी खूब थक गया हूँ बहुत भूख लगी है खाना तैयार है क्या? 

मेरी आवाज़ से चौंककर वृंदा के चेहरे पर असंख्य भाव जग गए हम दोनों ने एक-दूसरे को देखा ओर दोनों के मुँह से निकल गया अरे आप यहाँ? 

ओह मतलब मेरी वृंदा मुझे भूली नहीं थी मैंने कहा जी हाँ ये बंदे का आशियाना है तो मैं यहाँ.!

फिर तो बहुत सारी बातें हुई, ओर दो दिन बीते वृंदा घर आने-जाने लगी भाभी ओर माँ से घुलने-मिलने लगी अब मैंने महसूस किया वृंदा के चेहरे पर ज़िंदगी को साँस लेते हुए, मुरझाए पौधे में मानों जान आने लगी थी, अब तो दोनों के परिवार के बीच पहचान बढ़ गई थी पर मेरी वापसी में अब तीन ही दिन बचे थे तो भाभी से मैंने कहा भाभी आप माँ-पापा से बात कीजिये ना मेरे ओर वृंदा के बारे में मैं वृंदा को अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूँ ओर जाने से पहले सब हो जाए तो अच्छा है।

भाभी ने कहा ठीक है अब तो मुझे भी जल्दी है वृंदा को मेरी देवरानी बनाने की,

मैंने कहा ठीक है भाभी मैं उपर बेडरूम में हूँ आप बात करके मुझे आवाज़ देना मैं नीचे आ जाऊँगा।

मुझे अपने माँ-पापा पर यकीन था बहुत खुले खयालात के है तो मेरी पसंद पर मोहर लगाने से मना नहीं करेंगे, कुछ ही देर में भाभी ने आवाज़ लगाई दुल्हेराजा अब नीचे भी आ जाओ मैं थोड़ी जिज़क के साथ नीचे आया तो भैया ने कान खिंचे बदमाश मेरा भाई होकर इतना शर्मिला क्यूँ है ? काश पहले हिम्मत करता तो आज वृंदा इस घर की बहू होती सबने खुशी खुशी मेरी पसंद का स्वागत किया अब सबसे पहले वृंदा से ओर उनके घरवालों बात करनी पड़ेगी बोलकर पापा तो सीधे खड़े हो गये ओर मम्मी से बोले चलो अभी जाना होगा वृंदा के घर ये बुध्धु दो दिन बाद चला जाएगा तो बात वहीं पर अटक जाएगी जहाँ ये कुछ साल पहले छोड़ कर आया था, हम सब दिवाली विश करने के बहाने वृंदा के घर गए। 

वृंदा के मम्मी-पापा बहुत सीधे ओर सरल थे अच्छे से स्वागत किया कुल चार लोग थे घर में वृंदा, उसके मम्मी पापा, ओर छोटा भाई समर, कुछ औपचारिक बातों के बाद पापा ने सारी बातें वृंदा के घरवालों को बताई कैसे मैं ओर वृंदा एक दूसरे को जानते है वगैरह, ओर अब अगर आप लोगों को सही लगे तो हम वृंदा को अपने घर की बहू बनाना चाहते है।

वृंदा के मम्मी पापा की आँखों में आँसू आ गए ओर हाथ जोड़कर बोले भाईसाहब ये हमारी खुशकिस्मती होगी मेरी बेटी को आपके जैसा परिवार ओर वंश जैसा लड़का मिले तो हमें इससे ज़्यादा ओर क्या चाहिए, पर आपको मालूम तो है ना वृंदा की एक बार शादी हो चुकी है ओर वो.....

पापा ने बीच में ही उनकी बात काटते कहा हमें सब पता है जो कुछ बच्ची के साथ हुआ इसमें उसका क्या दोष, हमें तो अब दोनों बच्चों की खुशी चाहिए बस मैंने सबकी इजाज़त मांगी वृंदा से अकेले में कुछ बात करने की उसके पापा ने संमति देते हम दोनों को उपर के रूम में भेज दिया। 

हम दोनों रूम में आकर बैठे, वृंदा अभी भी चुप ओर सहमी-सहमी बैठी थी तो 

मैंने वृंदा से पूछा मैडम कहीं ये एक तरफ़ा मोहब्बत तो नहीं ? आपकी सहमति भी जरूरी है अब इकरार करके बहुत सालों की तपस्या का फल भी दे दो वरना ये दीवाना प्राण त्याग देगा.!

ये सुनते ही वृंदा ने मेरे मुँह पर अपना हाथ रख दिया ओर बोली आपको मेरी भी उम्र लग जाएँ, आज के बाद एसा कभी मत बोलना अब वृंदा की आँखों से आँसूओं का सैलाब बहने लगा, मैंने अपना रूमाल थमाते कहा "मैडम आज रो लो आख़री बार फिर तो मेरी बारी है" ओर रोते-रोते मेरी पगली हंस कर मेरे गले लग गई,

हाँ मेरी खुशियों की बारिश आज सच में मुझ पर बेइन्तहाँ बरस पड़ी है और मैंने थाम लिया है उसे अपने आगोश में पूरा का पूरा भीगते हुए।


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