मेरे शब्द

मेरे शब्द

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ज़िन्दगी में जब तक कुछ ऐसा घटता नहीं जो आपको अंदर तक तोड़ दे आप नहीं समझ पाएंगे कि इंसान क्यों, कैसे, किसलिए बदल गया? परिस्थितियों में ताक़त होती है वो किसी को भी कैसे भी कभी भी ढाल लेती है, ये बातें मैंने तब सीखी जब मैंने पिता को 9 साल पहले खोया। उसके बाद ज़िन्दगी ने ऐसी करवट ली कि मैंने ये सीखा कि वाकई ये दुनिया है क्या?


हम जब कमज़ोर पड़ते है, हालातों की वजह से अपाहिज हो जाते है, तो फिर हमें कुछ नहीं दिखाई देता। सारी सामाजिक बातें धरी की धरी रह जाती है और हम एक दूसरे ही वर्जन (version) के बनके संवर के बाहर आते है। जो बिल्कुल नया होता है जिसे हम न्यू मी कहते है, जो खो जाता है वो तो बहुत बड़ी कीमत है लेकिन उसके बाद जो सीखते हैं आप इस दुनिया में वो असलियत है।


इसलिए जैसे भी जो भी परिस्तिथियों में जीयो, सामाजिक बनो या न बनो, धार्मिक बनो या न बनो, लेकिन एक बेहतरीन इंसान ज़रूर बनो ये ज़रूरत आपको हमेशा दूसरों के करीब रखेगी।


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