Shikha Pari

Drama

4.5  

Shikha Pari

Drama

प्रीति की माँ

प्रीति की माँ

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355


प्रीति और राजीव शाम को बैठ कर अपने अपने फोन में गाने सुन रहे थे और राजीव हमेशा की तरह क्रिकेट देख रहा था मां पास बैठी थी प्रीति से हल्का सा मुस्कुरा कर बोली क्या चाय बना लोगी थोड़ी सी मुझे भी दे देना क्या तुम लोग को चाय पीने का मन है प्रीति ने झिझकते हुए कहा -"अरे! मां अगर मन है तो सीधे ही बोल दो इतना सकुचाते हुए क्यों बोल रही हो?

मां बोली -"तुम थक गई होगी दिन भर काम किया तुमने और अब चाय के लिए भी मैं तुम्हें उठाती हूं मुझे अच्छा नहीं लगता "

प्रीति मां को सटाते हुए बोली -"कोई बात नहीं मां मुझे खुशी होती है कि तुम हक समझकर मुझसे कहती हो और कहना भी चाहिए बेटी हूं तुम्हारी प्रीति इतना बोल कर रसोई में चली गई"

राजीव मुस्कुराता हुआ अपने फोन में क्रिकेट देखता रहा फिर मां बोली कि -"बेटा तुम दोनों तो फोन चलाते रहते हो लेकिन मैं बोर हो जाती हूं, ठीक से अब दिखाई भी नहीं देता क्या मैं भी इस फोन को नहीं सीख सकती?

राजीव मुस्कुराने लगा और दिन बीत गया l

 दूसरे दिन दोपहर का समय था बाहर बरसात हो रही थी, सब खाने की मेज पर लिए राजीव का इंतजार कर रहे थे लेकिन राजीव पता नहीं कहां था ?

प्रीति ने आज मछली चावल बनाया था जो राजीव और माँ दोनों को पसंद थी मां भी बैठी राजीव का इंतजार कर रही थी आखिर बेटा नहीं था लेकिन दमाद को लेकर रह रही मां राजीव को किसी बेटे से कम नहीं समझती थी और होना भी चाहिए समाज को यह आइना दिखना चाहिए कि दमाद भी बेटा बन सकता है और बेटा बन कर रह सकता है |

 फिलहाल मां और प्रीति राजीव का इंतजार कर ही रही थी कि राजीव भीगता हुआ बारिश में आया ,प्रीति जोर से गुस्सा के चिल्लाने लगी - "कहां चले गए थे ? इतनी बारिश में हम दोनों तुम्हारा कब से इंतजार कर रहे हैं खाना बन कर ठंडा भी हो रहा है जल्दी से मुंह धो लो और कपड़े बदल लो सर्दी लग जाएगी कि तभी मां बोली नहीं बेटा पहले चाय बनाकर उसको पिला दे और कपड़े बदलवा दे अभी नहाना ठीक नहीं है बारिश हो रही है सर्दी जुखाम हो जाएगा प्रीति कुछ बोलती उससे पहले रुकी फिर जल्दी से तौलिया लाते हुए राजीव के हाथ की तरफ देखने लगी ला

राजीव के हाथों में एक बड़ा सा डब्बा था प्रीति सोचने लगी है क्या है ये?

राजीव ने डब्बे को किनारे रख दिया किनारे रख दिया उपर एक पन्नी चढ़ी थी तो जो भी उसके अंदर था वो ज़रूर भीगा नहीं होगा  राजीव तौलिए से अपने बदन को पोछने लगा प्रीति खड़े खड़े सोच रही थी उसका मुँह बना हुआ था ज़रूर सासु माँ ने कुछ मंगाया होगा तभी इतनी बारिश में बिन बताये लेने चले गए थे डरते सकुचाते हुए प्रीति राजीव से  पूछने लगी क्या अब उस दिन जो पापा ने आपसे फोन मंगाया था वह लाए आप या सासु माँ ने जो रेडियो बोला था वो?

राजीव हंसता हुआ बोला -" नहीं प्रीति यह मां के लिए कारवां लाया हूं मां कल पूछ रही थी तुम लोग फोन में देखते रहते हो और सुनते रहते हो लेकिन मैं तो देख नहीं सकती उसकी आंखें कमजोर हो गई इसलिए कारवां लाया हूं ताकि मां गाने सुने और अपने पुराने दिनों को याद करके उसका दिल फिर से खुश हो जाए माँ और तुम्हें दोनों को सपराइज़ करना चाहता था पर सब गड़बड़ हो गई,यह देखते ही प्रीति की आंखें भर आई और राजीव को हाथ पकड़कर रोने लगी -"थैंक्यू राजीव थैंक्यू सो मच तुमने हमेशा दमाद होने के बावजूद एक बेटे का पूरा फर्ज अदा किय मुझे फक्र है कि तुम मेरे पति हो , तुम हमारे घर में दमाद बंद कर आए और हमेशा बेटे बन कर रहे थैंक यू सो मच राजीव मेरे घर की इतनी चिंता और खासतौर से मेरी मां का इतना ज्यादा ध्यान रखने के लिए"

 राजीव मुस्कुराया और बोला थैंक यू मत बोलो जैसे वो तुम्हारी माँ हैं वैसे ही तो वो मेरी भी तो माँ है अब रोना धोना बन्द करो और जल्दी से मछली चावल परोस लो ठंडा हो गया होगा मुझे बहुत भूख लगी है तीनों मुस्कुराते हुए टेबल पर बैठ गए l

खाना खाते-खाते मां ध्यान से कारवां पर पुराने गाने सुन रही थी और खाना खा रही थी और अपने गाँव के किस्सों को याद कर रही थी, राजीव प्रीति की ओर देख रहा था प्रीति की आंखों में आंसू थे उसे याद आया कि जब उसके पिता चल बसे थे अकेली वह घर में रह रही थी तो उसे कभी भी अंदाजा नहीं था कि जिससे वह शादी करेगी वो उसकी मां का इतना ध्यान रखेगा प्रीति ने इस डर से सालों शादी नहीं की और समाज में एक सामाजिक शादी की वैल्यू को समझने की हमेशा कोशिश की लोग बेटियों को अक्सर यही कहते हैं कि तेरी शादी हो जाएगी तू अपने घर की हो जाएगी पर आज राजीव जैसे लड़के भी समाज का ही हिस्सा है उन्होंने प्रीति को उसके घर को अपना घर समझा और प्रीति की मां को अपनी मां राजीव के घर वालों ने भी इसमें बड़ा साथ दिया प्रीति के घर को और उसकी मां को अपनाया और राजीव को उस घर में रहने की इजाजत दी और राजीव ने भी खुली बांहों से प्रीति के घर को और उनकी मां को दोनों को अपनाया क्या हमारा फर्ज नहीं बनता कि जैसे बहू अपने ससुराल को अपनाती है उसी तरीके से दामाद को भी अपने ससुराल को अपना और ससुराल वालों को भी अपना परिवार समझना चाहिए ये समाज का एक नया चेहरा होगा।


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