"मेरे जीवन साथी"
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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जरा सा रुक भी जाओगे
तुम्हारा क्या बिगड़ता है !
मेरा ये दिल तड़पता है !!
अभी तुम तो यहाँ आये ,
खुशी से मैं हुआ पागल !
तुम्हारे रूप ने मुझको ,
किया है वर्षों से घायल !!
चलो जिद्द छोड़ दो अबतो,
मेरी भी बात मानो तुम !
रुको कुछ देर तक प्रियतम,
मेरी हालत जानो तुम !!
बहुत तड़पा तुम्हारे बिन ,
अभी ना और तड़पाओ !
जरा सा रुक भी जाओ तुम,
मेरी हालत को जानो !!
अधूरा था मिलन अपना,
अभी हमें एक बनना है !
जुदाई अब नहीं सहना ,
हमें अब साथ रहना है !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
25 .11.2025