“बजरंग थिएटर का जलवा हिजला मेला दुमका में” दुमका दर्शन -1964 (संस्मरण)
“बजरंग थिएटर का जलवा हिजला मेला दुमका में” दुमका दर्शन -1964 (संस्मरण)
60 के दशक में मनोरंजन के साधन सीमित थे ! लोग सिनेमा देखते थे ! सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद उठाते थे ! नाटक कॉलेज ,स्कूल और छोटे- मोटे क्लब में होता था ! गीत- संगीत ,कविता पाठ का भी आयोजन होता था ! साल में जेमिनी सर्कस और छोटे- मोटे सर्कस शहर में आया करते थे ! साइकिल शो होते थे ! गाँधी मैदान में फूटबाल मैच हुआ करता था ! कभी -कभी पुलिस लाइन में भी खेल का आयोजन होता था ! लोगों के ये सारी विधाएँ मनोरंजन के साधन थे !इन मनोरंजन की विधाओं में “दुमका का जन जातीय हिजला मेला”का स्थान हरेक साल उत्कृष्ट रहता था ! हिजला मेला दुमका तत्कालीन बिहार का एक प्रमुख सांस्कृतिक आयोजन था , जो हर साल फरवरी माह में आयोजित किया जाता है। यह मेला मयूराक्षी नदी के तट पर हिजला गांव में लगाया जाता है ! हिजला मेले का इतिहास 134 साल पुराना है, जिसकी शुरुआत 1890 में अंग्रेजी शासक जॉन राबटर्स कास्टेयर्स ने की थी। इस मेले का मुख्य उद्देश्य स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों का आदान-प्रदान करना और प्रशासन के साथ आम जनता का सीधा संवाद स्थापित करना था ! इस मेले में आदिवासी संस्कृति, नृत्य-संगीत का प्रदर्शन, स्थानीय खाद्य स्टॉल, और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।उन दिनों भी मेले में मनोरंजन के साधन बहुत थे पर एक जबर्दस्त आकर्षक केंद्र मनोरंजन का “बजरंग थिएटर” था ! 1964 में मैं 7thक्लास नेशनल हाई स्कूल में पढ़ता था ! हिजला मेला का प्रारम्भ होना और सारे क्लास में चर्चा होने लगती थी ,-“भाई ,कुछ हो “बजरंग थिएटर” का प्रोग्राम देखना है !” और तो सारे प्रोग्राम दिन में हो जाते थे पर “बजरंग थिएटर” का प्रोग्राम रात को हुआ करता था! रात को देखना और इजाजत घर से लेना बहुत गंभीर समस्या थी ! शिवपहाड़ से हिजला 5 किलोमीटर की दूरी पर था ! पैदल जाना पड़ता था ! उन दिनों दुमका में सिर्फ तीन चार टमटम ही हुआ करते थे ! रिक्सा का प्रचलन काफी सालों के बाद आया ! साधारणतः लोगों की अपनी सवारी साइकिल हुआ करती थी!दरअसल बच्चे ,युवक और बुजुर्ग बड़े बेसब्री से “बजरंग थिएटर” का इंतजार करते थे ! पहले बौंसी (तत्कालीन भागलपुर) मेला में बजरंग थिएटर आता था ! माघ महिना वहाँ के लोगों का मनोरंजन करता था !हमलोग लोगों से पुछते थे ,-- “इस बार बौंसी में बजरंग थिएटर आया है कि नहीं ?”जवाब मिलता था ,--” हाँ भाई बौंसी में आ गया है !” अब बौंसी के बाद दुमका हिजला मेला में आएगा ! दुमका में उन दिनों दो सिनेमा घर थे ! एक बाबूपाड़ा दुमका बाजार में ही ज्ञानदा टाकीज़ था और दूसरा गोराइन दादा का सरोजिनी टाकीज़ जो दुधानी तकरीबन शिवपहाड़ से दो किलोमीटर दूर था ! इन सिनेमा घरों में पुराने -पुराने फिल्म दिखलाए जाते थे ! नयी फिल्म आने में कई वर्ष लग जाते थे ! सिनेमा घर से उनके कर्मचारी पिक्चर लाने के लिए कलकत्ता जाते थे और सन्दुक में पिक्चर के रील को लाते थे !नाटकीय अंदाजों में नयी -नयी फिल्म बजरंग थिएटर दर्शाता था ! इसके बीच में मध्यांतर कई बार हुआ करता था पर इन मध्यांतरों के अवधि में नाच, गाने ,हँसी-मज़ाक और चुट्कुले भी होते थे !हल्की -हल्की ठंडी मौसम में अपनी चादर ओढ़े जमीन पर बैठकर बजरंग थिएटर का आनंद लेते थे ! हिजला मेला सात दिनों तक चलता था ! सारे शहर में हाबिया का टमटम और रसूल का टमटम पर एक लाउडस्पीकर लगाकर अपने माइक पर प्रचार करते घूमता था !“सुनिए ..... सुनिए ,आज रात्रि 8 बजे बजरंग थिएटर अपनी धमाकेदार प्रस्तुति फिल्म “संगम” कर रहा है ! प्रीतम, राजकपूर की भूमिका में,प्रीति, वैजंतीमाला की भूमिका में और देवेंद्र, राजेंद्र कुमार की भूमिका में आज देखेंगे ! टिकट मात्र चार आना ,आठ आना और एक रुपया है ! देखना ना भूलें !”दुमका तो एक छोटा शहर था ! संगम फिल्म आने में सालों लग जाएगी ! क्यों नहीं नाटकीय रूपांतर देखि जाय ?सब लोग उस समय हिजला मेला की तरफ रुख करते थे ! और बजरंग थिएटर का लुफ्ट उठाते थे !=================डॉ लक्ष्मण झा परिमल
