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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

“मेरी साईकिल:परिवारिक वाहन” ( फौजी- संस्मरण)

“मेरी साईकिल:परिवारिक वाहन” ( फौजी- संस्मरण)

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1980 में 167 सैनिक अस्पताल, पठानकोट, पंजाब में मेरी पोस्टिंग हुई थी ! गोवेरमेंट क्वार्टर के अभाव में मुझे आउट लिविंग रहने की इज़ाजत मिल गयी थी ! अस्पताल से सटे हुये 1 किलो मीटर दूरी पर ढांगू रोड स्थित सरदार स्वरूप सिंह के मकान में रहने लगा था  ! एक लंबा -चौड़ा रूम ,अलग कीचेन ,बाथरूम ,पानी ,बिजली और बड़ा आँगन 75/- रुपये में किराए का मकान मिल गया था ! आभा 4 साल की थी ! मैंने ढांगू रोड मॉडेल स्कूल में उसका एड्मिशन K G 1 में  करा दिया ! राजीव और संजीव मेरे जुडबे बेटे हैं जो महज़ 2 साल 7 महीने के उस समय थे ! वे ठीक से बोल भी नहीं पाते थे !

उस समय मेरे पास एक साईकिल थी ! मैं ड्यूटि इसी साईकिल पर जाता था ! सुबह PT,7.30 में ड्यूटि ,2 बजे वापस और फिर शाम 7 बजे ROLL CALL प्रक्रिया में मेरी साईकिल बड़ी उपयुक्त मानी जाती थी ! मॉडेल टाउन से सटे एक गाँव से दूध लता था ! उस समय 5 रुपये लिटर दूध भैंस के मिलते थे ! आटा 70 पैसे किलो मिला करता था  ! चक्की से 10 किलो आटा  साईकिल पर ही लाता  था ! मेरे राशन ढ़ोने का कम मेरी  साइकिल ही करती थी !

मेरी साईकिल परिवारिक वाहन सी बन गई थी ! अपने हॉस्पिटल के आस -पास जाने के लिए हम पाँचों  लोग अपनी एक ही  साईकिल पर बैठकर जाते थे ! साईकिल के हैंडल में एक बेंत की टोकरी लगा रखी थी ! सामने बाले डंडे में एक छोटी सी सीट लगा रखी थी ! पीछे एक लोहे की कैरियर थी ! खाली समय में इस साईकिल पर कई तरह के कर्तव्य सीखता था ! और हरेक वर्ष इसी साईकिल से मैं अपना पुरस्कार भी जीता करता था !


विजय कुमार झा को हमेशा मलाल रहता था कि हम सपरिवार कभी उनके एयर फोर्स क्वार्टर पर नहीं गये थे  ! उनका एयर फोर्स क्वार्टर ढांगू रोड से पाँच किलोमीटर दूरी पर चक्की ब्रिज के पास स्थित था ! वहाँ तक सवारी नहीं मिलती थी ! विजय हमारे जिले का ही था और संयोग से हमलोगों की पढ़ाई भी  एक ही कॉलेज से हुयी थी ! एक रविवार को उनका निमंत्रण आया ! दिन का भोजन वहीं करना था ! अपनी साइकिल ही हमारी सवारी थी ! हेंडल की टोकरी पर राजीव ,बीच के डंडे पर आभा और पीछे की करियर पर मेरी  पत्नी और संजीव उनके गोद में  बैठ गए और एयर फोर्स क्वार्टर पहुँच गए ! हमलोग ने भोजन किया फिर सकुशल लौट आया ! यह यात्रा भी उससमय की सुखद थी!

आज तक मैं अपनी साइकिल को प्यार करता हूँ और उसे चलाकर आनंद का अनुभव करता हूँ !

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डॉ लक्ष्मण झा परिमल



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