मेरा नाम है सुल्ताना (लघुकथा)
मेरा नाम है सुल्ताना (लघुकथा)
उन बन्जारों की बात मत पूछो जी। जो प्यार किया, सो प्यार किया। जो नफ़रत की... ई.. तो... नफ़रत की। सच था। लेकिन शक संदेह दूर हो जाने पर बन्जारों ने अपने द्वारा पाली-पोषी शहरी ठाकुर परिवार की खोई लड़की 'राधा' आख़िर ठाकुर साहिब के बेटे 'श्याम' को ब्याह ही दी थी। विवाह सफल भी रहा। राधा भले बन्जारों के बीच पली बढ़ी थी ; ...और बन्जारे 'राणा' ने उसके नेक पिता की भूमिका निभाई थी हर तरह का संघर्ष करते हुए अपनी बेटी सी राधा हेतु। लेकिन उसके अंदर एक ठाकुर परिवार का रक्त था, संस्कार थे। सो सच्चे प्रेमी राधा और श्याम का जीवन ख़शहाल रहा। अब उनका इकलौता बेटा 'किशन' जवाँ हो चुका था। एक आलीशान भवन में वह प्रतिष्ठित परिवार रहा करता था।
एक दिन राधा और श्याम कार पर शहर के मुख्य मार्ग से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि सड़क किनारे भारी भीड़ एकत्रित थी और एक जवाँ ख़ूबसूरत लड़की भीड़ के बीच बहुत ही सुरीले सुर में गीत गा रही थी - "सुल्ताना.. सुल्ताना मेरा नाम है सुल्ताना.. मेरे हुस्न का हर अंदाज़ मस्ताना... !"
राधा यह गाना सुनकर एकदम चौंक कर श्याम से चिपक गई। कार रोकी गई। दोनों नीचे उतर कर भीड़ के भीतर तक घुस कर उस लड़की के नज़दीक़ जाकर उसका गाना सुनने लगे। वह केवल गा रही थी; नाच नहीं रही थी। राधा और श्याम अपने अतीत में खो गये। गाना ख़त्म होने पर भीड़ में से कुछ लोगों ने उस लड़की या उसके साथ के मुखिया बन्जारे को कुछ पैसे दिये और फ़िर धीरे-धीरे भीड़ छँटती हुई ख़त्म हो गई।लेकिन राधा और श्याम वहीं ठहरे रहे। वे बुज़ुर्ग मुखिया बन्जारे 'गुरमन' से उस लड़की के बारे में पूछताछ करने लगे। उसने बताया :
"साहिब, मेले में अपने माँ-बाप से बिछड़ गई थी। ख़ूब तलाश की और करवाई इसके माँ-बाप की। लेकिन पुलिस को नहीं बताया। इस पर हमने अपने समाज के नियम भी नहीं थोपे। इसे अच्छी तरह पाला है हमने!"
"क्या नाम है बिटिया का?" राधा ने पूछा।
"हम तो बाई इसको रम्या कहकर बुलाते हैं!" गुरमन ने अपनी पगड़ी सही करते हुए कहा।
"बहुत सुंदर गाती है। हमारा मनपसंद गाना गा रही थी यह!" श्याम ने रम्या को निहारते हुए कहा।
"गाती ही नहीं साहिब, पढ़ती भी बढ़िया है!" एक बन्जारन युवती बोली।
"पढ़ती है? क्या इसको पढ़ाया-लिखाया भी है आपके समाज में रहते?" राधा ने चौंक कर पूछा।
"हमने कहा न... कि इसकी ख़ूबियों को परख कर हमने अपनी रस्में इस पर नहीं थोपीं। जितना पढ़ा सके, पढ़ा दिया। ... अब तो इसे कोई भला इंसान ब्याह कर ले जाये! ... लोग बुरी नीयत से दाम लगाते हैं अब इसे देखकर!" यह कहते हुए मुखिया गुरमन की आँखें छलक पड़ीं। रम्या दौड़ कर अन्दर तम्बू में चली गई और एक अधेड़ बन्जारन से लिपट कर रोने लगी।
राधा और श्याम एक-दूसरे की ओर देखने लगे। फिर वे दोनों मुखिया को दूर एक तरफ़ ले गये और अपने अतीत की सारी बातें बता दीं। उन्हें लगा कि इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है। काफ़ी समझाने के बाद श्याम ने उन बन्जारों के काफ़िले को अपने बंगले के पास के मैदानी क्षेत्र में स्थानांतरित करवा दिया और एक भवन निर्माण के मज़दूरों में शामिल करवा कर रोज़गार दिलवा दिये।
इतना करने के बाद उनको और रम्या को भली-भाँति समझ-परख कर अपने युवा बेटे किशन के लिए रम्या का हाथ माँग लिया। ख़ुशी का 'एक नया तराना' दोनों परिवारों में गाया जाने लगा। रम्या और किशन का विवाह दोनों समाज की मिलीजुली परम्पराओं से सम्पन्न हुआ। राणा की तरह एक बार फिर एक बन्जारे मुखिया गुरमन का बड़ा दिल सबको देखने को मिला। राधा कभी 'सुल्ताना' थी; रम्या अब 'रम्या सुल्ताना' कही जाने लगी।
(राजश्री फ़िल्म प्रोडक्शन्स प्रा. लिमिटेड की 1979 की मिठुन चक्रवर्ती व रंजीता कौर अभिनीत मशहूर हिट फ़िल्म "तराना" पर आधारित और उसकी सीक्वल काल्पनिक फेंटेसी शैली की लघुकथा रचना)