मेरा धन
मेरा धन
कार्यालय का समय समाप्त होते ही वह कलाई में बंधी घड़ी देखता हुआ बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठा और गाड़ी को शुरू कर भृकुटी तानते हुए भुनभुनाया, "आज भी बॉस ने अपनी हवाईजहाज की ऑनलाइन टिकट मुझसे करवा ली, बॉस को तो रूपये सरकार लौटा देती है, लेकिन कितनी ही बार मेरा रुपया भूल जाते हैं। कुछ कह भी नहीं सकता... बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे!"
गाड़ी यूं ही उसके विचारों के साथ दौड़ती रही और वह अपने घर पहुँच गया, गाड़ी को खड़ी कर उसने दरवाज़े पर लगी घंटी को बजाया, कुछ ही क्षणों में उसकी पत्नी ने दरवाज़ा खोला, और उसका चेहरा देखकर चौंकते हुए पूछा, "क्या हुआ? इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो?"
वह चुप रहा और हाथ से कुछ नहीं का इशारा करते हुए अंदर जाकर सोफे पर बैठ कर जूते खोलने लगा। उसी समय उसकी निगाह सामने रखे कुछ गुब्बारों पर पड़ी। उसने प्रश्नवाचक नज़रों से पत्नी को देखा तो पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, "आज सब्जी खरीदने गयी थी, वहां एक बूढ़ा आदमी मेरे पास आया, और कहने लगा कि बीबीजी आज एक भी गुब्बारा नहीं बिका है, घर पर बच्चे भूखे हैं। उसके चेहरे से लग रहा था कि वह सच बोल रहा है और मैनें ये कुछ गुब्बारे खरीद लिए।"
सुनते ही उसका क्रोध फूट पड़ा, उसने आँखें तरेरते हुए पत्नी को देखा और लगभग चिल्लाते हुए बोला, "फ़ालतू के रूपये हैं मेरे पास! ये साले भिखारी....."
कहते-कहते वह रुक गया, क्यों रुका उसे खुद समझ में नहीं आया, लेकिन हवाई जहाज जैसा एक गुब्बारा उसकी छत छू रहा था।