मेरा अस्तित्व
मेरा अस्तित्व


" चंदा दीदी थोड़ा सब्जी काट दिजीये ना और थोड़े बरतन भी पड़े हैं मांज दीजियेगा ,मैंं रोहन को होमवर्क करा रही हूँ", सुशीला बहू बोली।
"ठीक है भाभी ", चंदा बोली।
सब्जी काटते काटते चंदा अतीत के यादों मे खो गयी।
"ये है मेरी सबसे लाडो बिटिया, मेरी आंखो का तारा, आखिर घर में सबकी चहेती जो है", राधा देवी पुचकारती है।
"चंदा तूझे क्या चाहिये मैंं दिल्ली जा रहा हूँ", चंदा के बड़े भाई राजीव ने पूछा।
एकदम बेबाक ,कोमल अंर्तमन , लाड़ प्यार से बीता बचपन था,सारे गुणो में समपन्न थी,गोरी इतनी कि छु दो तो दाग लग जाये, पढी लिखी भी एम. ए. पास थी। भाई मानते थे दोनों।
चंदा इन सबसे दूर खुब खुश रहती थी, अपने मन में शादी के तरह-तरह के सपने संजो रही थी।
एक पत्रिका में दिखा के चंदा मां से " माँ मैं ऐसा लहंगा लूंगी अपने शादी में"।
" ले लेना बेटा, छोटा भाई दिला देगा, राधा देवी बोली।
"अरे आपने भिंडी क्यो काट दिया, पता है ना मेरे बेटे आशिष को नहीं पसंद है,", सुशीला झिड़की।
"भाभी बस यही एक सब्जी बचा था इसिलिए ", चंदा बोली।
सारा दिन बैठे बैठे खुद खाने कि सोचते रहतीं हैं, सुशीला भुनभुनाते हुई चली गयी।
जो जुबान कभी चंदा कि जले मन से तारिफें करते थे, समय विपरीत से सब कि जुबानें खुलने लगीं थी।
अब ये सब ताने छोटे थे चंदा के दुखो के आगे, बुझे मन से वो बरतन धोने चली जाती है।
राधा देवी क्या हुआ बहु रुको रोहन से दूसरी सब्जी लाने बोल देती हुं, डरना लाजमी भी था, आखिर उनका बुढ़ापा भी तो सुशीला के हाथ में था, इस बुढापे में वृद्धाश्रम थोडे ना जाना ंथा उनहे।
सुशीला रमेश से, "छोटी राधिका और राजेश जी अलग हो के चले गये तो खुश हैं, आप ही को बड़ा परिवार संभालने का शौक था, अब आ के गले पड़ गये हैं चंदा और उसका बेटा भी झेलो, बस बैठ बैठ के खाती है सारा दिन और मैंं पकाती हूं, इसकी दुसरी शादी क्यों नहीं कर देते आप माँ से बात करके क्योंकि जमाई बाबु ने तो शादी कर ली है कबकी"।
"वो तैयार कहाँ है दुसरी शादी को, कल ही 100 रू कि दवाई आयी है चंदा के बेटे कि मैंं अकेला क्या क्या संभालू, अनाज अलग महंगा है, माँ को तो खिला के जायदाद मिलेगा, चंदा के परिवार का बोझ मैंं नहीं उठा सकता मैंं साफ साफ बोल दुंगा माँ से ", राजीव बोला।
"आपको इस बारे में माँ से बात करनी चाहिये, आखिर एक दिन कि तो बात है नहीं, अच्छे बनने के ढ़ोग मे मेरा और मेरे बच्चे का बुरा कर रहे हो आप", सुशीला बोली।
"अच्छा थोडा और रूको वरना समाज हमपर थुकेगा कि बहन को खिला भी ना पाया और अभी सारा हिस्सा भी तो माँ के हाथ में है ,हमे माँ के मरने का इंतजार करना होगा"राजीव बोला।
"पता ना ये बुढिया कब मरेगी कि हमलोग भी अच्छी जिंदगी जी पाये", दरवाजे पर चाय ले कर खड़ी चंदा ने सब सुन लिया था।
चंदा मुंह छिपा के जल्दी आंसू पोछने लगती है,
पर राधा देवी समझ जाती है, बोलती है, "बेटा तेरे वजह से नहीं है ये,उससे पहले से मैंं अपने मरने कि दुआ सुनती हुं इस घर में, छोटी तो कबका घर छोड कर चली गयी, ये लोग भी धन के लालच में हैं क्योंकि राजीव का कारोबार थोडा सा मंदा है, तू उनके राह में रोडा़ बन गयी है वरना कबका ये मेरे से वसीयत बनवा के मुझे वृद्धाश्रम भेज चुके होते।
जो ये घर का काम तू आज कर रही है तेरे पहले मैंं करती थी।
राधा देवी बात बदलती है।
"अरे ये क्या फटा हुआ ब्लाऊज, चल एक ब्लाऊज खरीद दु तुझे" राधा देवी बोलती हैं।
"नहीं माँ सिल लुंगी आखिर कितना खर्च करोगी मेरे पर", चंदा बोलती है।
"अरे क्या तू वही चंदा है जो लड़ के अपनी पसंद का कपड़ा खरीदवाती थी",राधा देवी बोली।
"शादी के बाद सब बदल जाता है माँ, पति के बिना औरत कि कोई इज्जत नही होती यही हमारा समाज है", चंदा बोली।
"सब्र कर बुरे दिन के बाद अच्छा दिन भी जरूर आता है", राधा देवी बोली।
"हाय मर गयी बहुत जोरो का दर्द हो गया सर में, शायद माइग्रेन है", जैसे रोटी बनाने का वक्त हुआ सुशीला के बहाने शुरु, आप आराम करो भाभी मैंं किचेन देख लेती हूँ", चंदा बोली उसको पता था ये रोज का नाटक है इनका।
कहाँ पति के साथ ठाठ-बाट से आती पर यहाँ नौकर बनी पड़ी थी सुशीला बहु की।
इतना कहकर राधा देवी चली जाती है और चंदा अपने अतीत में खो जाती है।
"अरे करमजली, ये मिक्सी क्यो तोड दिया तुने, तेरे मरा हुआ बाप देंगे क्या दुसरा", चंदा कि सास।
"ये पहले से टुटा था माँ", चंदा बोली।
"जुबान लडाती है कमबख्त", चंदा कि सास गरम चाय फेंक देती है उसके उपर।
"आ.. ह. हहह, " चंदा कि चीख निकल जाती है।
अमरेश रात में आता है पी के तो सास ननद सब जोड़ देती है।
अमरेश बेल्ट निकाल के, "मेरे माँ से जुबान लडाती है साली", खुब मारता है उसे।
8 साल का आशिष सब छुप कर देख रहा था।
अगले दिन ,"लो तुम्हारे माँ का फोन है",वहीं टहल के उनकी बातें सुनता है और घूरता है उसे।
उधर से राधा देवी "कैसी है बेटी"?
"ठीक हुं माँ" चंदा भराये आवाज में।
"क्या हुआ बेटी सब ठीक तो है ना"
"हा माँ थोडा गला बज गया है"।
फोन दो काम है अमरेश बोलते हुये फोन काट देता है ।और बोलता है दामाद का कारोबार डूब रहा है ये ना पैसै दे तो बकवास करा लो इनसे।
थोडे़ दिन बाद चंदा पूरी तल रही होती है तो गलती से तेल का एक बूंद उसकी ननद के उपर चला जाता है,..
"हाय माँ मैं मर गयी", ननद चिल्लाई।
सास आ के चंदा के बाल खिंचती है और किरोसिन डाल देती है।
"माँ मत करो पुलिस केस हो जायेगा"चंदा कि ननद बोलती है।
रात मे अमरेश आता है तो कान भर देते है परिवार वाले
"कल ही इसको और आशिष को मायके छोड आता हुं"।
और आज 4 साल हो गये वो लेने नहीं आया।
हा उसके शादी कि खबर आती है कभी-कभी।
तभी एक दिन आशिष और रोहन मे लडाई हो जाती है, सुशीला बोलती है,"बिना बाप का बेटा है होगा ही बदतमीज, यहाँ क्यो बैठा है चले जा अपने बाप के यहाँ"।
चंदा का रूह छलनी हो जाता है।
तभी पडोस में एक शादी होती है, चंदा के बचपन के दोस्त कि तो उसे ना चाहते हुये भी जाना पड़ता है।
सुशीला "माँ मेरी लाल बिंदी खत्म हो गयी है"
"चंदा से ले लो बहु", राधा देवी बोली।
"शुभ शुभ बोलो माँ मुझे सुहागन मरना है",सुशीला बोली।
सुशीला अपने पति से, "हाय राम पति छोडने के बाद भी इतने साज श्रृंगार, मुझे तो पहले से ही ये चंदा लटर-पटर वाली लगती थी।
फिर शादी मे हल्दी के रस्म में एक बुढिया,चंदा कि ओर उंगली से दिखाते हुये उधर से बच के जाना शगुन का चीज है।
ये ताने छींटाकसी खैर ये सब अब आम बात थे चंदा के लिये।
सारे पति पत्नी स्टेज पर फोटो खिंचा रहे थे,चंदा का बेटा "माँ तुम भी चलो ना", ।
"नहीं बेटा यहीं से देखो", चंदा बोली।
उधर मोहल्ले कि औरतें खुसर फुसर करती है, इसी के पति ने छोड दिया है, जरूर चरित्रहीन होगी।
कहीं ये स्टेज पर ना चली जाये,अपशगुनी है दुल्हन को भी ताने दिलवायेगी।
चंदा दौड़ के घर आ जाती है।
चंदा सोचती है तलाकशुदा होने का मेरा क्या दोष,
कभी फूल सी रही चंदा ,आज चट्टान सी सख्त कैसै हो गयी।
बात बात पर रोने वाली इतनी बातें आसानी से सहने लगी।
क्या इस दोगले समाज का कुछ हो सकता है, जिसने सीता जैसी स्त्री कि भी परीक्षा ली, उन पर भी लांछन लगाया,
एक स्त्री को गर्भावस्था मे अकेले छोड देने वाले राम को सवश्रेष्ठ बताया,
आखिर मैं सही हो के भी दुनिया के नजर मे क्यों गलत हुं, मुझे भी आत्मसम्मान से जीने का पूरा हक है।
घर से बाहर पैर रखो नही कि समाज अकेली स्त्री को नोचने को तैयार है,
शायद जिसका पति नही रहता सब पुरुष उसके पति बनने को तैयार है,
अचानक से सब स्त्रियों कि भी दृष्टि बदल जाती है उनके तरफ।
प्रकृति ने सबसे कठिन किरदार दीया था उसे भगवान ने,
अभी तो बहुत सहना था उसे।
उधर राजीव माँ से, "माँ तुम चंदा से शादी के लिये क्यों नहीं कहती, आखिर जिन्दगी एक दिन कि तो है नहीं"। "एक लडका है 3 बच्चो वाला, थोड़ा अधेड है, दहेज भी नहीं लेगा, शादी मंदिर में करने तैयार है। आखिर पहली शादी मे भी 5 लाख खर्च हो गये थे।
"वो शादी नहीं करेगी राजीव", राधा देवी बोली।
"मतलब फिर मुझे भी छोटे जैसा कुछ सोचना पडेगा, मैंं और नहीं ढो सकता आप लोगो को",राजीव बोला।
राधा देवी किंकर्तव्यविमूढ़ सी देख रही थी।
अगले दिन सुशीला और राजीव किराये के मकान में जाने को तैयार होते हैं।
चंदा बोलती है, " मैं जा रही हुं आप लोग रहो भइया-भाभी"।
वो अपने बेटे के साथ निकल जाती है।
राधा देवी भी उसे रोक ना पायी, समाज के दायरों मे जो बंधी थी, वरना लोग बोलते बेटी को बसाने के लिये बेटे-बहू को छोड़ दिया।
अब होती है चंदा कि असली लड़ाई शुरु, बाहर ऐसे ऐसे चील कौअे बैठे थे, जो औरत कि हड्डी तक ना छोडे़।
कैसै भी एक नौकरी मिली , तो वो अपना और अपने बेटे का पेट पालने लगी और आशिष को स्कूल को स्कूल भेजती थी।
सारे शौक तो मर गये थे उसके बस एक बाकि था किताब लिखना।
उस कंपनी का मालिक उसको अजीब नजरों से घूरता था हरदम, वक्त-बेवक्त गलत तरीके से छुने कि भी कोशिश करता था।
पर चंदा सब नजर अंदाज करती थी क्योंकि उसकी बीवी भी उसी में काम करती थी और हरदम पुछती थी कुछ प्राबलम हो तो बताना ,शायद उसे पता था सबकुछ अपने पति के बारे में।
पर बताने पर क्या वो सच में मानती, उल्टा सारा इल्जाम उसी पर लगा कर उसी को चरित्रहीन बताया जाता, पति को छोड के उसे मेरे जैसा ठोकर थोडे ना खाना था, चंदा ने मन मे सोचा।
फिर एक दिन कंपनी के मालिक कि मंशा पता चल ही गयी।
वो सबके जाने के बाद, जान बुझ कर उसको रोकता है।
"मैं बहुत दिनों से देखता हूं, तुम कहीं घुमने नहीं जाती, कल चलोगी", मालिक।
"नहीं सर", चंदा।
"अरे शिमला कि टिकट है चलो खुब मजे करेंगे, अभी मेरी बीवी भी मायके है, आखिर इतने दिनो से अपने अंदर दबी हैवानियत उसने दिखा ही दी।
"मैं अब निकलती हुं सर मेरा बेटा बिमार है", चंदा बैग उठाने लगी।
मालिक जबरदस्ती करता है, वो हाथ छुड़ा के भागती है।
घर जा के खुब रोती है और वो जौब छोड देती है।
बहुत दिनों तक वो इस सदमे में रहती है, पर फिर एक बार हिम्मत जुटाती है, जब रौशनी के सारे पैसे खत्म होने लगते हैं, तो फिर दुसरा जौब ज्वाइन करती है।
इसमे चंदा को बस से दुसरे शहर जा के एक फाईल ले के आना होता है, एक दिन का सफर होता है।
बस में बगल में एक अधेड़ पुरूष बैठा होता है, जो चंदा के पापा के उमर का होता है।
"कहा जा रही हो", वो पुछता है।
बुजुर्ग देख के चंदा बता देती है, " एक काम से गयी थी, हो गया तो वापस लौट रही हुं"।
बुड्ढा जान बूझ के घुलने-मिलने कि कोशिश करता है।
"पति नहीं है साथ, मांग मे सिंदूर भी नही है", बुड्ढे ने पुछा। चंदा चुप रहती है।
"तुम मेरा नम्बर ले सकती हो, अपना दुख दर्द बांटने, हम एक ही शहर के है,चाहो तो कभी-कभी मिल भी सकते हैं, मैं तो रात हो जायेगी तो होटल मे रुक जाउंगा 500 रु हर रात का है रेट है और कुटिल मुस्कान देता है।
चंदा को काटो तो खून नहीं पर वो तमाशा नहीं बनना चाहती थी बस मे सो चुप रही।
जैसे बस स्टाप आता है वो दौड़ के भागती है।
अब तो आंसू भी सूख चुके थे उसके।
ऐसे ही गंदी निगाहो से बचते बचाते जिंदगी निकलती है उसकी रियल मदर इंडिया बन के आशिष के लिये, वरना अकेली कब कि मर गयी होती।
"तू कब बडा होगा लल्ला", सोये हुये आशिष के तरफ देख के बोलती थी।
फिर उसे एक दिन अमरेश दिखता है, एकदम दिन-हीन हालत मे ।
चंदा से पुछा," कैसी हो"?
चंदा बोली, "ठीक हु"।
अरे मैंने तो दुसरे के भडकाने पर अपना परिवार तबाह कर लिया।
मेरी दुसरी बीवी को भी भगा दिया मेरे घर वालों ने ।
सुख के सब साथी है दुख का कोई नहीं होता है। मेरे परिवार का कोई नहीं पुछता मुझे, सच मे पति पत्नी एक दुसरे के पूरक होते है।
मुझे माफ कर दो चंदा, मैंं तुम्हारा गुनहगार हुं।
अमरेश चंदा का हाथ पकडना चाहता है,पर वो खींच लेती है।
चंदा बोलती है", तुम्हारा बहुत आभार है मेरे पर"।
अमरेश बोलता है, "मुझे शर्मिंदा मत करो"।
"सच में अगर तुम मेरी जिंदगी में ना आते तो मैंं खुद को पहचान ना पाती, मेरा अस्तित्व ना बन पाया, मैंं बस चुल्हे, चौके में रह जाती, दुनिया को तुम्हारे आंखों से देखती, मुझे तुमसे रति भर भी गिला नहीं है। तुमने मेरे अंदर के कोयले को तराश कर हीरा बनाने के लिये उकसाया है, बस एक मलाल रहेगा आशिष को बाप का प्यार नसीब नहीं हुआ"।
चंदा एक कागज देती है," कल मेरी बुक पब्लिसिंग सेरेमनी है, आना जरूर, थैंक्स मि.अमरेश"।