मधुमय पल

मधुमय पल

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पार्क की बाउंड्री के बाहर अमलतास के नीचे वो पागल औरत पूरे दिन पड़ी रही।

बिल्डिंग की महिलाओं ने दूर से ही उसके पास खाना और पानी रख दिया था जो अब तक वैसे ही रखा था। कोई उसके पास जाने की हिम्मत नहीं करता। खाने की लालच मे करीब आते कुत्तों को पत्थर मार भगा रही थी। शाम से उसे प्रसव पीड़ा शुरु हुई। रह रह कर चीखती, कराहती और शान्त हो जाती।

वासना के भूखे किसी भेड़िये की शिकार थी वो। महिलायें आती, उसकी पीड़ा को महसूस करती पर करीब नहीं जाती। वो किसी को पास आने नहीं दे रही थी। रात गहराने लगी।और उसका दर्द भी। असहाय सी कभी अपना सिर पटकती, पैर पटकती, चीखती।निढ़ाल हो जाती।

अब वह चुप हो गई थी। पूरी रात दर्द सहते सहते वो थक गई। सुबह का आगाज़ होने लगा था। अनुभवी महिलाओं ने अंदाज लगा लिया की समय आ गया है। कपडों से पर्दा बना दिया। अब शायद उसे पास आई महिलाओं का प्यार और ममत्व भरा स्नेह राहत दे रहा था।

उधर सूरज की पहली किरण फूटी और इधर एक नन्हा सूरज धरती पर आ गया। सारी पीड़ा को भूल उस पगली ने नन्हे सूरज को छाती से चिपका लिया।


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