Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy Tragedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Comedy Tragedy

मैंने की खुद से शादी भाग-7

मैंने की खुद से शादी भाग-7

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मेरा खुद से शादी करने का निर्णय एक रात के विचार मंथन के बाद का निर्णय था। इसे मैंने घर में विरोध और बाहर की जग हँसाई के बीच भी क्रियान्वित कर दिखाया था। 

सविता मैम की आज कही बातें प्रकारांतर में और भी लोगों ने मुझसे कहीं थीं। उनमें से सविता मैम ही एक ऐसी थीं जो विवाह परंपरा से अलग अविवाहित रहकर जीवन व्यतीत कर रहीं थीं। इस कारण मेरी आज एक और ऐसी रात थी जिसमें किसी महत्वपूर्ण निर्णय पर पहुँचने के लिए, मैं करवटें बदलते हुए बन गई स्थिति की समीक्षा कर रही थी। 

खुद से शादी की घोषणा के बाद चर्चा पा लेने के बाद अब सात माह हो चुके थे। एक दिन की समाचार चैनलों पर चर्चा और अब शहर में मुझे इस रूप में मिली पहचान के अतिरिक्त, मेरी उपलब्धियां साधारण ही थीं। मैं असाधारण व्यक्ति नहीं बन पाई थी। मुझे ना तो नोबल पुरस्कार मिलता दिखाई दे रहा था और ना ही नीरज चोपड़ा जी की मुझमें कोई रुचि ही प्रतीत हो रही थी। 

सविता मैम ने मेरे ज्ञान चक्षु भी खोल दिए थे कि क्यों नीरज जी या कोई अन्य अत्यंत समर्थ प्रसिद्ध व्यक्ति, अपने अंश को मुझ जैसी अनजान सी लड़की के गर्भ में और फिर जन्म के बाद मेरी गोद में पलने देगा। कौन अति संपन्न पुरुष चाहेगा कि उसकी संतान का लालन-पालन, अभाव (या कम सुविधाओं में) में हो। 

करवट बदलकर मैं सोचने लगी थी कि खुद से शादी के बाद, जब मैं ही स्वयं अपने को विवाहित नहीं मान पा रही थी तब समाज ऐसा मानेगा इसकी मुझे आशा नहीं थी। नीरज भूतड़ा का मुझसे विवाह प्रस्ताव इसकी पुष्टि करता था। 

मैं सोचने लगी थी कि अगर विवाहित होती तो क्या अभी ही मेरे बेड पर मेरे साथ मेरा नहीं पति होता? ऐसा होता तो निश्चित ही मेरा पति मुझे ऐसे किसी चिंता में अनिद्रा की स्थिति में नहीं रहने देता। निश्चित ही वह मुझे अपने प्रणय पाश में जकड़ कर मुझे मेरी किसी भी चिंता से मुक्त कर देता। अभी मैं थक कर सो रही होती। अभी की तरह किसी विचारों में पड़ कर ऐसी करवटें नहीं बदल रही होती। 

यह सोचते हुए मुझे अपने शरीर में एक कसक सी अनुभव हुई थी। मैंने एक और करवट ली थी और अब मैं तकिए को अपने सीने से लगाकर लेट गई थी। इस स्थिति में मुझे शादी वाले दिन की अपनी सखियों का, मुझसे किया परिहास (Humour) स्मरण आ गया था। 

मैं सोचने लगी थी कि अभी मैं पति या पत्नी, क्या होकर इस तकिए को अपने सीने से लगा रहा हूँ। मैंने अपनी करवट का ध्यान किया तो मैं तकिए की दायीं तरफ थी अर्थात मैं अभी पति थी। दुविधा की स्थिति में भी मेरे ओंठों पर एक मुस्कान आ गई थी। 

अब मुझे अकेले रहने वाली स्त्रियों का ध्यान आ गया था। जिन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। मैं सोचने लगी कि वे कैसे सारा जीवन यूँ अकेले बिता देतीं हैं? तब मुझे विचार आया कि अधिकांश ब्रह्मचारिणी ऐसी ही अन्य ब्रह्मचारिणियों के साथ रहतीं हैं। उनमें आपसी चर्चा ब्रह्मचर्य व्रत को निभाने की ही होती होगी। इससे उनका अकेला रह पाना सरल होता होगा। 

मैंने स्वयं से प्रश्न किया, क्या मैं ब्रह्मचर्य व्रत लेकर मथुरा या माउंट आबू जाकर रह सकतीं हूँ? मुझे लगा कदाचित् मुझमें यह साहस नहीं है। यद्यपि मैं शिवानी दीदी की फैन हूँ। मैं जानती हूँ वे साधारण नहीं असाधारण नारी हैं। मैं भी असाधारण होना चाहती हूँ मगर मैं उनके जैसे कठिन व्रत पालन करने में अपने को असमर्थ पा रही थी। 

मेरे मन में एक प्रश्न यह भी आया कि क्या सविता मैम अकेले होने पर एक ब्रह्मचारिणी की तरह रह पाईं होंगी। मैंने सविता मैम की बातों से ही समझने की कोशिश कि उन्होंने आज कहा था - “आपको अनेक पुरुष मिलेंगें जो आपकी 50 वर्ष की आयु तक आपसे समागम को इच्छुक मिलेंगे। फिर जैसे जैसे उम्र बढ़ेगी ये बिरले होते जाएंगे”।

 मैं मैम का आदर करती हूँ, मैंने सविता मैम के बारे में अनुचित सोचने की धृष्टता नहीं की थी। मैं खुद के बारे में ही सोचने लगी थी, अगर मैं एक ब्रह्मचारिणी की तरह नहीं रह पाई तो मेरा क्या होगा? मैंने सोचा तब मुझे किसी पुरुष से समाज से छुपा कर संबंध रखने होंगे। फिर मुझे लगा, मुझे छुप कर ऐसे संबंध के लिए कोई बाध्य तो नहीं कर रहा है। मेरे पास नीरज का प्रस्ताव है। क्यों ना मैं उससे विवाह कर लूँ? 

अब मुझे पंडित जी का शादी की रात मुझे “खुद से खुद को निभाने की दिलवाई शपथ” स्मरण आई थी। आज मुझे लग रहा था कि खुद से खुद से निभा लेना भी कोई सरल काम नहीं है। 

मुझे लग रहा था, एक रात के अपरिपक्व विचार में अपने को असाधारण बनाने के लिए मेरा लिया गया निर्णय गलत था। मुझे लग रहा था जब पूरी दुनिया अपनी योग्यता अनुसार अपने जीवन संग्राम से निभाती है तब मेरी योग्यता से अधिक की उपलब्धि की महत्वाकांक्षा उचित नहीं थी। 

व्याकुलता से मैंने पुनः करवट बदली थी। मुझे लग रहा था मेरा अस्थिर मन आज पुनः मुझे सारी रात सोने नहीं देगा। मेरा मन चंचल हुआ था। मुझे लगा एक रात के अपने अति उत्साहित निर्णय अनुसार खुद से शादी करके, मैंने अपने जीवन को बुरी तरह उलझा लिया है। जैसी ख्याति मेरे बारे में फैल गई है, उस अनुसार “खुद से शादी” की पहचान ढोना अब मेरे लिए कठिन हो गया है। मुझे लग रहा था जैसा सविता मैम ने कहा है, मैं शायद कुछ दिन तो विवाह बिना रह सकती हूँ मगर पूरे जीवन बिना ब्याहे रह जाना मेरे लिए अत्यंत कठिन बात होगी। स्पष्ट है मेरे लिए खुद से खुद को निभाना दुष्कर कार्य लग रहा था। 

मैंने खुद अपने ऊपर बड़ी समस्या लाद ली थी। मैं सोच रही थी, समस्या मैंने ही निर्मित की थी। इसका समाधान भी स्वयं मुझे ही खोजना होगा। ऐसा समाधान खोजना होगा जिससे अन्य के सामने मेरी नाक नीची न हो जाए। मेरी खुद से शादी के अवसर पर परिचितों/अपरिचितों ने, मेरा बहुत उपहास (मजाक) उड़ाया था। मैं अगर ‘खुद से खुद की शादी’ को डिवोर्स से तोडूं और नीरज भूतड़ा से शादी करूं तो फिर कोई मेरी वैसी ही हँसी उड़ाए, ऐसा मैं नहीं चाहती थी। 

इसके लिए, मुझे क्या करना चाहिए? …. मुझे क्या करना चाहिए? 

मैं पलंग पर लेटी लेटी हुए बुदबुदा रही थी। तब मेरे मस्तिष्क में एक समाधान कौंध गया था। 

मैं सोचने लगी थी कि नीरज भूतड़ा एक अच्छा पुरुष है वह मुझ पर उस दिन लट्टू हुआ प्रतीत हो रहा था। अगर यह सच है तो निश्चित ही वह मेरी विषम स्थिति में मेरा साथ देगा। 

तब मैंने एक योजना बनाई थी। 

“मैं नीरज से, मेरी इस योजना में सहयोग की शर्त रखूँगी और अगर नीरज ने योजना अनुरूप सहयोग किया तो मैं उससे शादी भी कर लूँगी”। 

मेरी योजना यह होगी कि 

“नीरज को रिपोर्टर की ड्यूटी से कुछ समय का अवकाश लेना होगा। फिर उसे सोशल प्लेटफॉर्म पर यह अफवाह फैलानी होगी कि वह “खुद से शादी” फेम, प्रिया (मेरा) दीवाना हो गया है। वह प्रिया से अत्यंत अधिक प्रेम करने लगा है और चूँकि प्रिया उसके प्रस्ताव पर उससे विवाह करने तैयार नहीं है इसलिए वह अवसादग्रस्त हो गया है। इसी कारण प्रसिद्ध समाचार चैनल के अच्छे जॉब पर भी वह उपस्थित नहीं हो पा रहा है। 

मैं नीरज से कहूँगी कि अगर संभव हो तो अपने न्यूज़ चैनल पर भी, वह अपने प्रिया से एकतरफा प्रेम का एक संक्षिप्त सा समाचार प्रसारित करवाए। अगर नीरज ऐसा कर सकेगा तो मैं उसके अपने से प्रेम का संज्ञान लेकर उससे सहानुभूति दिखलाऊँगी और नीरज से विवाह को सहमत हो जाऊँगी।” 

अगर यह योजना काम कर गई तो एक बार फिर मैं चर्चा में आऊँगी। मैं अग्नि के समक्ष 7 उलटे फेरे लेकर खुद से डिवोर्स लेने का स्टंट करुँगी। फिर नीरज से विवाह कर लूँगी। 

इस तरह विवाह करने से लोग मुझ पर हँस नहीं सकेंगे। पुनः चर्चा में आने पर मेरी प्रसिद्धि और बढ़ेगी। मम्मी-पापा की अभिलाषा भी पूर्ण होगी और सविता मैम की कोविड जैसी कठिनाई के समय में, मुझ पर जीवन में कभी भी अकेले पड़ जाने का खतरा नहीं रहेगा। 

योजना की पूरी रुपरेखा उपरान्त मैंने नीरज भूतड़ा को अपने कल्पना पटल पर लाने की कोशिश की थी। नीरज से मेरी सिर्फ दो बार भेंट हुई थी। अतः उसकी धुँधली छवि ही मेरे मनोमस्तिष्क में उभरी थी। फिर भी मुझे अपने शरीर में एक सिहरन दौड़ती अनुभव हुई थी। मैं व्याकुल होकर बेड पर से उठी थी। मैंने अपनी दोनों बाँहें ऊपर उठाकर अंगड़ाई ली थी। मैंने साइड टेबल पर रखे जल के गिलास से, कुछ घूँट अपने गले से नीचे उतारे थे। तब मैंने पुनः सोने की चेष्टा की थी। 

पुनः लेटने पर मुझे स्वयं की बुद्धि पर गर्व हो रहा था, मेरे मस्तिष्क में कितनी फुलप्रूफ स्कीम आई थी। फिर भी यक्ष प्रश्न यह था कि विवाह का प्रस्ताव करने के बाद, नीरज भूतड़ा ने हमारे घर से एक बार जाने के बाद फिर मुड़ कर नहीं देखा था। मैंने वेट एंड वॉच की रणनीति पर चलने का निश्चय किया था। फिर मुझे नींद आ गई थी। 

अगले दिन से मैं नीरज की प्रतीक्षा करते हुए अपने स्कूल का जॉब एवं अन्य दायित्वों में व्यस्त हुई थी। हर बीतते दिन के साथ मेरे मन में नीरज से विवाह की आशा क्षीण होती जाती थी। फिर मैं सोचने लगी थी नीरज ने शायद अन्य किसी लड़की से विवाह कर लिया है। 

मुझे लगने लगा था कि मैं विवाह की गाड़ी में बैठने का निर्णय सही समय पर नहीं कर पाई थी। मैं गाड़ी चूक गई थी। 

(अभी के लिए समाप्त) 


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