Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

मैं, यह सब देख लूँगी . .

मैं, यह सब देख लूँगी . .

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मैं, यह सब देख लूँगी . .स्टेशन पापा आये थे। घर तक उनके साथ कार में, मैं अकेली थी। रास्ते में उन्होंने कहा - 

बेटी, मेरे मित्र हैं अनुराग, जयपुर रहते हैं। शायद तुम्हें याद होगा, दस साल पहले कभी, सपरिवार वे घूमने आये थे। तब अपने घर ही रुके थे। 

मैंने कहा - जी, पापा मुझे याद है। उनका बेटा, मोटा है, उसे मैं मोटू कह कर चिढ़ाया करती थी। 

पापा ने कहा - मोटा है नहीं, था। अब स्मार्ट हो गया है। 

मैंने पूछा - क्या वह फिर कभी मिला है, आपसे ?  

पापा ने बताया - अनुराग का कल वीडियो कॉल आया था। उसमें सुचित को भी, मैंने देखा था। अनुराग, कह रहे थे कि यदि तुम पसंद करो तो सुचित से, तुम्हारा विवाह करना चाहते हैं। 

मैं चौंक गई थी। मैं इस बात के लिए तैयार नहीं थी। मुझे सूझ नहीं सका कि पापा से, क्या कह कर इस रिश्ते के लिए मना करूं। मैं, चुप दिखी तो पापा ही आगे बोले - सुचित, आईसीआईसीआई बैंक, जयपुर में ऑफिसर है। 

यह सुनते ही मुझे उत्तर सूझ गया मैंने कहा - पापा, उम्र हो गई है शादी की तो मैं भी करना चाहती हूँ। पर सुचित और मेरे जॉब में कोई मेल नहीं है। मैं एमएनसी, में इंजीनियर और वह बैंक में है। मैं पुणे में तो वह जयपुर में है। अगर शादी के लिए मैं, अपना जॉब छोड़ूँ तो मेरी पाँच साल की सीन्यॉरिटी चली जायेगी। 

पापा ने उत्तर दिया- इसमें कोई समस्या नहीं या तो सुचित, पुणे ट्रांसफर ले लेगा या तुम जयपुर में किसी अच्छी कंपनी में स्विच कर लेना। जिसमें भी तुम्हारे, इस कंपनी के अनुभव और पैकेज अनुसार तुम्हें, ठीक हाईक मिल जाये। 

इस पर मुझे, फिर चुप रह जाना पड़ा। तब तक कार घर के सामने पहुँच गई थी। जहाँ मम्मी एवं छोटा भाई गेट पर मेरी प्रतीक्षा करते मिले। 

मुझे देख उनके चेहरे प्रसन्नता से खिल गए थे। हम सभी आपस में अत्यंत ख़ुशी से मिले थे। 

फिर पापा लंच लेकर, अपनी शॉप पर चले गए। भाई भी पढ़ने के लिए अपने कमरे में चला गया। मम्मी को अकेला देख कर अब, मुझे अपनी बात कहने का मौका मिला। मैंने, अपनी बात कही - मम्मी, कार में पापा, सुचित से मेरे विवाह के प्रस्ताव की बता रहे थे। मैं, यह शादी नहीं कर सकती हूँ। 

मम्मी ने कहा - भला! क्यों नहीं? अनुराग भाई साहब का घर हमसे बीसा अच्छा है। मैंने, सुचित को कल मोबाइल पर देखा है। वह भी दिखने में, तुमसे अच्छा ही कहा जाएगा। 

मैंने, तब साफ़ कह देना ही उचित समझा। मैंने, उन्हें बताया - मम्मी, मेरी ही कंपनी में रॉबर्ट, मेरा कॉलीग‌ है। मैं, उसे पसंद करती हूँ। 

मम्मी ने चिंतित हो कर कहा - बेटी, अनुराग और हम, एक से, रीति रिवाज और खानपान वाले परिवार हैं। विवाह बाद आपसी तालमेल, तुम्हारे लिए, सुचित के साथ आसान रहेगा। 

मैंने कहा - मम्मी, सुचित से मुझे प्यार नहीं, रॉबर्ट से मुझे प्यार है। यह सिंपल सी बात, आप क्यों नहीं समझ रही हैं?

मम्मी ने समझाते हुए कहा - बेटी, विवाह के समय मुझे भी एक अन्य लड़के से प्यार था। तुम्हारे नाना जी ने, तुम्हारे पापा से विवाह करने कहा, मैंने इन्हें देखा था। मैं, पिताजी की बात भी टाल नहीं सकती थी। विवाह कर लिया। तुम्हारे पापा से, मुझे मिले प्यार में, कब भूल गई कि मैं, किसी अन्य से प्यार करती थी, पता नहीं।

मैं, आज सोचती हूँ तो नहीं लगता कि तुम्हारे पापा जैसे आदर और मेरे स्वाभिमान से मुझे कोई और निभा पाता। विवाह के समय आखिर, उम्र ही कितनी होती है जिसमें कोई जीवन की इन गहन भावनाओं को सही तरह से समझ सके।

वह उम्र तो अच्छे चेहरे पर आसक्त कर देती है। गुण एवं अन्य अच्छाई तब अनावश्यक से मानदंड लगते हैं। मेरा विश्वास करो, सुचित से विवाह करके बेटी, तुम भी, यह सच्चाई समझ जाओगी। 

मैंने मम्मी की दृष्टि में निर्लज्ज सी होकर कहा - मम्मी, आपकी विवाह के समय आयु 21 थी। मैं, आज 27 की हूँ। आप समझो (फिर रहस्य खोलने जैसे दबे स्वर में) मम्मी, रॉबर्ट से कभी कभी मेरे शारीरिक संबंध भी रहे हैं। 

मम्मी यह सुन सदमे में आ गईं, उनके मुख को देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे उन्हें काटो तो खून नहीं! वे इतना ही कह सकीं - 

तुम्हें, तुम्हारे पापा ने आर्थिक आत्मनिर्भरता की दृष्टि से शिक्षा एवं जॉब के लिए पुणे भेजा था। यह करके तुमने, हमारा विश्वास तोड़ा है। तुमने तो निर्लज्जता कर ली, मुझे कह दिया। मैं, कैसे उन्हें, यह बता पाऊँगी? 

फिर वे रोने लगीं थीं। मैं जानती थी कि उन्हें मैं चुप नहीं करा सकूँगी। वे स्वयं ही, भाई एवं पापा के सामने सम्हल जायेंगी, सोचते हुए मैंने, उनके सामने से हट जाना उचित समझा था। फिर मैं सोचने लगी कि क्यों, यह प्रसंग बना। इससे तो परिवार में इस दीपावली, समस्त आनंद एवं उल्लास ही मिट जाएगा। 

फिर मैंने, अपने कमरे में आकर रॉबर्ट को कॉल किया। उससे, कहा - पापा-मम्मी, मेरी शादी की बात कह रहे हैं। हम कब तक शादी करें, बताओ?

रॉबर्ट का उत्तर अचंभित करने वाला था। उसने कहा - कैसी बात कर रही हो? हम में, शादी को लेकर कोई कमिटमेंट (वचन बद्धता) कब हुआ था?    

इस बात से मुझे, इतना क्रोध आया कि मैंने, आगे कुछ सुने-कहे बिना कॉल डिसकनेक्ट कर दिया। 

रात पापा ने डिनर करते समय बताया - परसों, सपरिवार अनुराग यहाँ आ रहे हैं। सब ठीक रहा तो वे लोग शायद, रोका करना चाहेंगे। 

मम्मी यह सुनकर भी गंभीर ही दिखीं तो पापा ने पूछा - क्या बात है, तुम खुश नहीं दिख रही हो?

मम्मी ने झूठी हँसी दिखाते हुए कहा - नहीं, नहीं! मैं तो बहुत खुश हूँ। बस उनके स्वागत के लिए, तैयारी की सोचने लगी थी। फिर मम्मी ने कनखियों से मेरी तरफ देखा। मैंने उन्हें देख कर मुस्कुरा दिया था। 

अगले दिन अकेले में, मम्मी ने मुझे कहा - तुम, सुचित से ऐसे पेश आना कि सुचित ही विवाह को हाँ नहीं कह सके। यूँ पूर्व संबंध किसी और से रखकर, विवाह किसी अन्य से करना ठीक नहीं होगा। 

इस पर कटु मगर, सच बात कहने से मैंने स्वयं को नहीं रोका था। मैंने कहा -

मम्मी, रॉबर्ट से कल, मैंने विवाह के लिए पूछा था। वह विवाह में रुचि नहीं रखता है। सुचित को आने दीजिये, उससे विवाह को मैं राजी हूँ। 

मम्मी ने दुःख एवं हैरानी से पूछा - ये कैसी विचित्र बात करती हो। किसी और से संबंध के बाद, अन्य से विवाह को, तुम्हारी अंतरात्मा कैसे स्वीकार कर सकती है?

मैंने कहा - मम्मी आपकी शादी को अब, 30 वर्ष का समय निकल चुका है। अब यह इतनी बड़ी बात नहीं है। रॉबर्ट से पहले भी कुछ समय मेरे ताल्लुकात, एक कॉलेज समय के मित्र से थे। रॉबर्ट से भी मेरी शादी में यही बात होती। आप, निश्चिंत रहो मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। 

मेरे नये नये खुलासों से मम्मी के दुःख और तीव्रतर होते जा रहे थे। वे फिर रोने लगीं। उन्होंने रोते हुए कहा - 

तुम्हारे पापा एवं मेरे जैसे सच्चरित्र पालकों को भगवान, ऐसी नाक कटाऊ बेटी कैसे दे सकते हैं!

मैंने उन्हें दिलासा दी - मम्मी, कृपया आप ऐसे नहीं रोयें। मैं, यह सब देख लूँगी। 

मम्मी ने तब कहा - नहीं, अनुराग भाई साहब के अच्छे परिवार को ऐसे धोखे में रखना ठीक नहीं। हमें उनसे यह सच्चाई कहनी होगी। 

मैंने कहा - मम्मी, उनसे कहने की आवश्यकता नहीं है। वे, आपकी तरह के विचारों वाले होंगे। आप विश्वास रखो, यह विषय, सुचित एवं मेरे बीच का है। मैं, सुचित से कल एकांत में यह बात कहूँगी। फिर सुचित चाहेगा तो ही विवाह करूँगी अन्यथा नहीं। 

अगले दिन सब आये थे। भोजन के उपरांत पापा ने, सुचित और मेरे बीच बात के लिए, बाहर सैर कर आने को कहा था। तब रेस्टोरेंट के केबिन में कॉफी पीते हुए, मैंने सुचित से कहा - 

सुचित, बाकी सारी बातें आगे तो हमारे हाथ में होंगी। जिसे आप और मैं सहमति से निभा सकेंगे, ऐसी आशा है। मगर पिछली अपनी एक सच्चाई, जिसे बदला नहीं जा सकता वह मैं, तुम्हें बताना चाहती हूँ। 

यह सुनकर, सुचित चिंताग्रस्त दिखे। मगर प्रकट में उन्होंने पूछा - कहो, क्या बात है?   

तब मैंने कहा - सुचित, कॉलेज में एक एवं जॉब में अभी एक, लड़के से मेरे संबंध, शारीरिक स्तर तक गये हैं। 

फिर मैं चुप हो गई और सुचित के चेहरे पर आते जाते भाव को देखते रही। विचार कर लेने के बाद सुचित ने पूछा - 

अगर हम शादी करते हैं तब भी क्या, यह लड़के या तुम एक दूसरे के पीछे लगे तो ना रहोगे? 

मैंने बताया - नहीं, विवाह बाद मैं तुमसे वचन बद्ध रहूँगी। और जहाँ तक उन लड़कों की बात है वे, मुझे लेकर गंभीर कभी नहीं थे। अतः उनके तरफ से भी ऐसी कोई बात नहीं होगी। 

सुचित ने कहा - तब मुझे, विवाह पर कोई आपत्ति नहीं। 

मुझे, सुचित की ओर से इतने कम प्रतिरोध की आशा नहीं थी। मैंने संदेह पूर्वक पूछा - 

सुचित, क्या तुम्हारा भी ऐसा कोई इतिहास है?

सुचित ने कहा - नहीं, पहले मैं पढ़ने में एवं अब अपने काम में इतना व्यस्त रहा हूँ कि मुझे इन बातों का समय नहीं रहा। अगर समय होता भी तो मेरे संस्कार मुझे रोक लेते। 

मैं चकित हुई। मैंने तब पूछा - आप सुशील होते हुए भी, मेरे तरह की लड़की से शादी के लिए कैसे हाँ कर रहे हो?

सुचित ने कहा - तुम्हारी, इस सच्चाई के कारण कि तुमने, मुझे, मेरे द्वारा पूछे बिना, यह सब बता दिया है। आज जो चल रहा है उसमें और भी कुछ लड़कियाँ ऐसी होंगी। मगर कोई अन्य, नहीं लगता कि मुझे, यह सब कहने का नैतिक साहस जुटा सकती। 

सुचित के महान विचारों को जानकर उसके प्रति श्रद्धा में, मैं मन ही मन नतमस्तक हुई। साथ ही मम्मी के प्रति भी आभारी हुई जिनसे, मुझे इस सच्चाई के कहने की प्रेरणा मिली थी। मैं, सोचने लगी कि काश हर लड़की को ऐसी गलती ना करने का विवेक मिले। 

मैंने आभार जताते हुए कहा - आपकी मेरे लिए क्षमा के लिए बारंबार आभार। 

सुचित ने कहा - मेरा विवेक, लड़कों की खराबियों के लिए लड़की अकेले को दोष देना ठीक नहीं मानता है। यह लड़कों का भी दोष है जिससे, लड़की अपने पति के बाँहों में, बेदाग़ इतिहास के साथ नहीं जा रही हैं। 

वे लड़के यूँ तो अपने लिए, बेदाग़ लड़की चाहते हैं। लेकिन उन जैसे लड़के और भी हैं ऐसे में किस किस को, कोई बेदाग लड़की मिल सकती है? 

ग्लानिबोध में सोच रही थी - मुझे मिल गए सुचित, लेकिन असंभव है मेरी जैसी किसी और लड़की को कोई सुचित मिले!

अपनी सीट से उठकर मैं उनके पास गई थी। मैंने, ग्लानि सहित, सुचित के कंधे पर अपना सिर रखा था। 

तब सुचित अपने हाथों से, मेरी पीठ पर थपकियाँ दे रहे थे, ऐसे, जैसे, कोई पिता दुलार से, अपनी बेटी को आगे गलती ना करने को प्रेरित करता हो …. 



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