मैं!माँ हूँ!तुम्हारी!!

मैं!माँ हूँ!तुम्हारी!!

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सुमित्रा जी का इकलौता बेटा ही था जिसके सहारे उन्होंने अपनी अमीरी गरीबी का सारा समय गुजार लिया था।एक वक्त था जब सुमित्रा जी को पति और बच्चे में से एक का चुनाव करना पड़ा तो सुमित्रा जी ने बच्चे मौलिक का चुनाव किया।मायके से सहयोग लेकर अपना छोटा सा घोंसला बनाया।जिसमे अपने बच्चे मौलिक को लेकर समय गुजारा।लेकिन वक्त का क्या पता, आज जिस बच्चे के लिए सुमित्रा ने जी जान लगा रखी थी क्या वह उसका भी इसी यरह ख़्याल रख पायेगा?


मौलिक जब 20 साल का हुआ तो उसकी शादी कर दी।उसकी पत्नी मीरा के आने से कुछ दिन घर का माहौल अच्छा था।धीरे -धीरे समय बढ़ता गया और माँ सुमित्रा से दूरी बनाने लगी ।जब सुमित्रा अपने बेटे के लिए लोटे में पानी ले जाती तो मीरा तुरन्त कहती थी कि "अरे माँ जी आप रहने दीजिए।आप लोटे को ढंग से साफ नही करती हैं,"बदबू "आती है।"

एक दिन हुआ दो दिन ऐसे ही रोजाना कहने लगी जिसकी वजह से एक दिन बेटा मौलिक ने भी बोल दिया - "माँ तुम रहने ही दिया करो तुम ढंग से बर्तन नही साफ करती हो।मीरा है न तुम क्यों परेशान होती हो।वैसे भी तुम्हारे हाथ से बर्तन साफ नही होता जिसकी वजह से पानी मे बदबू आती है।"

यह बात सुनकर सुमित्रा जी के दिल पर गहरा असर पड़ा।और धीरे -धीरे सुमित्रा जी एक तरह से सदमे में आने लगी।अंततोगत्वा घर से बाहर एक कोठरी में उनका समान मीरा ने रखवा दिया।सुमित्रा जी बाहर कोठरी में पड़ी रहती थी।गाँव घर से कोई आता तो पूछता की ये क्या हालत तुम्हारी हो गयी है।तो यह शब्द सुनते ही सुमित्रा जी के आँखों मे पानी भर आता था।क्या करें किसी से कहने से कोई फायदा था नहीं।एक दिन सुमित्रा जी का भतीजा आया था।इस तरह का व्यवहार देखकर मौलिक से पूछ बैठा

"आख़िर ये सब क्या है? बुआ जी को तुम दोनो क्यों परेशान करते हो।जब तुम छोटे थे।यही तुम्हारी माँ दुनियाभर से लड़ जाती थी ।तुम्हारे लिए फूफा जी को त्याग दिया।और अब तुम इस तरह से बीबी के कहने पर करते हो।जब तुम्हें जरूरत थी तब नही बदबू आयी।आज उसकी जरूरत नहीं है तो तुम दोनो को बदबू आती है।जब तुम पूरा बिस्तर गन्दा कर देते थे।बुआ जी को भी बदबू आनी चाहिए थी।लेकिन नही कभी नही कहा उस माँ ने।आज उसी माँ के शरीर से ,हाथ से,बर्तन से कपड़े से हर एक चीज से बदबू आ रही है।एक काम करो अभी ये घर तुम दोनो ने बनाया नहीं है।तो तुम लोग ये घर छोड़कर चले जाओ कहीं और जाकर कमाओ खाओ।जब बुआ जी नहीं रहेंगी तब आना और फिर इस घर मे रहना।"

सुमित्रा जी मायके जाने से इनकार कर दी थी।तो भतीजे को कोई रास्ता नहीं दिखा।अपनी बुआ जी का किस प्रकार से सहयोग कर सके।तो यही रास्ता दिखा जो कि मौलिक और मीरा को हटाना।मीरा मौलिक हट गए।सुमित्रा जी का भतीजा अपनी पत्नी मंजू को लेकर आया और बुआ जी की सेवा करने को बोला।मंजू जी बहुत सेविका थी अपने दो बच्चों के साथ बुआ जी की भरपूर सेवा किया।बच्चे दिनभर बुआ जी के पास रहते थे।इससे सुमित्रा जी का समय बीत जाता था।और मंजू को भी अच्छा लगता था।

इधर मौलिक और मीरा हर तरह से परेशान रहने लगे।मौलिक की तबियत खराब हो गयी।अब मीरा अकेले क्या करती घर देखती की नौकरी करती।घर के खर्चे चलाने के लिए एक छोटी सी दुकान घर मे कर ली लेकिन दुकान से भी कोई लाभ नही होता था।अंत मे मीरा और मौलिक दोनो ने सुमित्रा जी से माफी माँगी।सुमित्रा जी ने माफ किया।दोनों बहु बेटे को आकर साथ रहने की स्वीकृति दी।दोनो आये और सुमित्रा जी से ढंग से व्यवहार किया।और माँ की इज्ज़त करना और सम्मान देना ये सब अब बखूबी ध्यान रहता था।मंजू भी अपने बच्चों सहित अपने घर गयी।और ये बोलकर गयी कि " अगर तुम सब पहले जैसा फिर किये तो ठीक नही होगा।हम लोग इस बार लड़ेंगे।और बुआ जी के घर मे तभी तुम लोग कदम रखना जब बुआ नही रहेंगी।"

दोनों पति पत्नी माफ़ी मांगी मीरा और मौलिक दोनो ने ये विश्वास दिलाया कि अब आज से कभी शिकायत का मौका हम लोग नही देंगे।सुमित्रा जी के खुद की औलाद थोड़ा बहुत सम्मान देने लगी सुमित्रा जी के लिए बहुत गर्व की बात थी।कहाँ कोई कुछ छूने नही देता था।कहाँ हर चीज में माँ को सम्मलित करना घर का नियम बन गया था।सब लोग एक साथ प्यार से रहने लगे।चलो देर से सही आँख खुली माँ के सम्मान के लिए,माँ के बारे में कोई एक बार सोचेगा की मेरी मां ने किस हालत से किस परेशानी से हम सबको पाला है तो शायद किसी बेटे और बहू को यह सब करने की हिम्मत नही होगी।

माँ तो मां होती है।माँ जैसा कोई नही होता।कितनी परेशानियों का सामना करके अपनी औलाद को पालती है सिर्फ एक माँ ही जानेगी और कोई नही।हम सभी को अपनी माँ का सम्मान करना चाहिए।चाहे माँ कैसी भी हो।


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