मैं को मैं से परे हट कर देख लेना
मैं को मैं से परे हट कर देख लेना


अनेकानेक सृजक जुगनुओं को तैयार कर चुके वरिष्ठ साहित्यकार की अचानक अन्तिम यात्रा शुरू हो गयी...। साहित्य जगत अनहद तम घिर जाने की कल्पना से भयभीत हो उठा। सन्ध्या में सूर्यास्त एक पक्षीय दृष्टिकोण है। मोक्ष जीवन सन्ध्या का सत्य सदैव स्वीकार नहीं हो पाता है। श्रद्धांजली-शब्दांजली का दौर शुरू हो गया। एक संस्था ने श्रद्धांजली सभा एक अन्य के जयंती सभा के संग रखी। पुष्पांजली के लिए तस्वीर और बैनर केवल जयंती वाले का रहा। एक अन्य गोष्ठी में किसी ने कहा, -"मैं उनसे लगभग चालीस-पैतालीस सालों से जुड़ा हुआ था। अपने सारे दुःख उनसे साझा करता था और उसका निदान पा भी लेता था।" ये वो महाशय थे जो गुरू के नाम को कैश करते रहे... । अन्तर होता है अपने दुःख साझा कर लेना और सामने वाले के दुःख को समझ लेना.. । हमारी साँसों तक सूर्य का अस्त होना सम्भव नहीं होगा ख़ुद से वादा तो कर लें...