मैं जीना चाहता हूं
मैं जीना चाहता हूं
आज वह अपने ही बंगले की दीवार के पीछे दहाड़े मार-मार कर रो रहा था। आस-पास के लोग उसे पत्थर उठा कर भगा रहे थे। नंगे-पैर,फटे मेले कुचेले कपड़े, मुरझाया हुआ चेहरा, सूखे काले होंठ, पिचके हुए गाल, मुँह से आती सड़ांध, धसी आँखों के चारों और काले घेरे, पेट में आंत न मुँह में दाँत, कमर झुकी हुई, हड्डियों का ढांचा, उड़े हुए बाल। ये है अपने शहर का सबसे बड़ा सेठ धर्मपाल।
अपनों में छुपे दुश्मनों को न पहचान पाया। उसे तबाह करने के लिए उन्होंने उसे नशे का आदि बनाया। कोई भी नशा उससे छूटा नहीं था। हर नशे का स्वाद मालूम था उसे। नशे के लिए घर बिका, व्यापार खत्म, बीवी बच्चों के साथ उसे छोड़ कर चली गई।
आज कोई भीख भी नहीं देता। लोगों ने तो उसे पागल कहना शुरू कर दिया है। आज बैठा जोर-जोर से चिल्ला रहा है -हे भगवान मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं बहुत पछता रहा हूँ, आज मेरे पास न घर है, न धन है, न ही मेरे बच्चे, मेरा शरीर भी मेरा साथ नहीं दे रहा है। हे प्रभु- मुझे इस नशे के चुंगल से बचा, मैं जीना चाहता हूँ।