Krishna Khatri

Romance

5.0  

Krishna Khatri

Romance

मैं हूं ना !

मैं हूं ना !

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"कब से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ। करीब दो घंटे से कह रही थी बस, अभी दस मिनट में आ रही हूँ मगर तुमने दस-दस मिनट का कह-कह के इतना समय ले लिया। ऊपर से मैडम फोन भी नहीं उठा रही थी मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि मैं बयान नहीं कर सकता। मैं अब जाने वाला ही था। सच में तुम ना"


"मेरी सुन तो लेते। बस। धड़-धड़ बोले जा रहे थे एक ही सांस में और मुझे भी कुछ कहने का मौका ही नहीं दे रहे थे। इतने पैनिक क्यों हो जाते हो। जानते हो मेरी स्थिति फिर भी?"


"क्या फिर भी। कबसे शादी के लिए कह रहा हूँ और तुम हो कि एक साल से सुना अनसुना किए जा रही हो। अरे बाबा! कुछ हां - ना तो बोलो"


"तुम सिर्फ मेरे हां - ना का इंतजार कर रहे हो? तुम्हें मुझसे नहीं मेरे हां - ना से मतलब है। बस?"


"क्या विजी तुम भी ना, बाल की खाल निकालती हो। हम स्कूल से एक दूसरे को चाहते हैं। अब तुम्हारी सारी जिम्मेदारियां भी पूरी हो गई है। तुम्हीं ने कहा था ना कि तुम्हारे बहन-भाइयों की शादी होने के बाद अपने बारे में सोचोगी तो अब क्या हो गया? साल भर से जिम्मेदारियों से मुक्त हो फिर भी तुम मुझे"


 "रवि! आज मैं तुम्हें खुद से आज़ाद करती हूँ। तुम शादी कर लो और मुझे भूल जाओ"


"अच्छा! इतने लंबे अरसे तक लटकाकर रखा और आज टरकाने वाली बात कर रही हो। तुम मुझे प्यार नहीं करती? क्या तुमने मुझसे कभी प्यार नहीं किया? इतने सारे तुम्हारे वादे, वो तुम्हारा अपनापन, मेरे लिए वो फिक्र। सबकुछ यूँ ही था? वो सब। क्यों? क्यों विजी क्यों? ओह गाॅड। तुम्हें तो पता ही है मेरी माँ को मेरी शादी का कितना चाव है। माँ ने तुम्हें कबसे अपनी बहू मान लिया है जबसे मैंने तुम्हारे बारे बताया था उस बात को भी चार साल हो गए तबसे तो बहू के रूप में तेरे ही सपने देख रही है। पता नहीं माँ तेरे लिए क्या-क्या सहेज कर रखती जा रही है। यह भी मेरी बहू विजी के लिए तो वो भी बहू के लिए और तुम?"


"मैं क्या? अपनी परेशानी तुम्हें कैसे समझाऊं?"


"क्यों? अब क्या परेशानी है? सबसे बड़ी परेशानियां तो तुम्हारी निपट गई है अब क्या रह गया है? अगर माँ-बाप की बात है तो तुम्हारा भाई है ना। वो देखेगा और नहीं भी देखेगा तो मैं हूँ ना। तेरे माँ-बाप मेरे भी तो हुए। तुम उनका टेंशन बिल्कुल भी मत लो। अरे यार। तुमने मुझे इतना ही पहचाना? बचपन के साथी को भी समझ नहीं पायी। अब क्या कहूँ तुमसे? तरस आता है तुम्हारी सोच पर"


"रवि! सच में ऐसा मत कहो अपनी तकलीफ समझा नहीं सकती। जो तुम सोच रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं है। जो है उसकी तो तुम कल्पना भी नहीं कर सकते और तुम्हें बता भी नहीं सकती। यही मेरी सबसे बड़ी मज़बूरी है"


"यार! तुम पहेलियां मत बुझाओ। जो भी हो साफ-साफ बताओ। कोई बीमारी है? इलाज हो जाएगा। साइंस ने इतनी तरक्की की है। आज हर बीमारी का इलाज है फिर तुम क्यों इतना टेंशन ले रही हो। मैं हूँ ना"


"तुम हो तभी तो इतनी परेशान हूँ वरना"

 

"मैं हूँ तो तुम परेशान हो। सरप्राइज। जब मैं कह रहा हूँ फिर तुम क्यों? तुमने मुझे शायद किसी काबिल ही नहीं समझा तभी तो इतने सालों के रिश्ते को पल में लात मार दी। एक बार भी नहीं सोचा। तुम्हारे इस रवैए से मुझ पर क्या गुजरेगी? मेरी माँ जो बहू के रूप में तुम्हें देखती आ रही है। उसका क्या?"

 

"कहा ना, तुम शादी कर लो माँ को बहू मिल जाएगी"


"और मुझे?"


"तुम्हें लाइफ पार्टनर"


"यह तुमने कितनी आसानी से कह दिया लेकिन क्या आसान है? तुम्हारे लिए सब आसान हो सकता है इसीलिए आज ऐसी बातें कर रही हो। जाओ, तुम्हें शादी नहीं करनी, मत करो। मुझे भी नहीं करनी। आखिरकार जिन्दगी भर साथ निभाने का वादा किया है तो शादी न करके पूरा करूंगा। निश्चिंत रहो। अब शादी के लिए कभी नहीं कहूँगा। खुश रहो अपनी जिन्दगी में। तुम अपनी परेशानियों से निपटो। मैं हमेशा के लिए तुमसे बहूत दूर चला जाऊंगा, अपनी माँ को लेकर"


"अरे यार। क्यों मेरी मुश्किलें बढ़ा रहे हो? समझ क्यों नही रहे हो?"


 "जैसा तुमने कहा वैसा तो मैंने मान लिया फिर भी तुम्हारी मुश्किलें? ओह! अब क्या कहूँ और क्या न कहूँ। और भी कोई प्रोब्लेम है तो बता दो वो भी साॅल्व कर दूंगा पर तुम हो कि बताती नहीं हो"

       

"प्लीज रवि। मेरी परेशानी और मजबूरी को समझने की कोशिश करो"

       

"जो तुमने कहा मान लिया अब क्या तुम्हारी परेशानी समझूं। बार -बार यही रटे जा रही हो। अब तो सच में परेशान हो गया हूँ तुम्हारी इस रटनपंथी से। अगर अब फिर यही सब कहा तो, तो, अरे यार कया कहूँ। बहुत गुस्सा आ रहा है"


"रवि प्लीज" और आगे कुछ बोल ही पाई एकदम से रोना आ गया फूट-फूट कर रो पड़ी। रवि हैरान कि आखिर माजरा क्या है। ना ही खुद कुछ बताती हैं। ऊपर से परेशान भी होती है मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है मन ही मन सोचता रहा पर कुछ बोला नहीं यूँ ही उसे रोते देखता रहा। इस तरह वो चुपचाप बैठा रहा। काफी देर बाद विजी भी रोते-रोते अपने आप चुप हो गई। दोनों के बीच काफी देर तक ऐसे ही चुप्पी छाई रही । फिर एकाएक विजी बोली "सुनोगे तो मुझसे नफरत करने लगोगे। सब सह सकती हूँ तुम्हारी जुदाई भी। लेकिन तुम्हारी नफरत नहीं। पर आज तुम्हारे प्यार में यह भी सही"


क्यों। नफरत क्यों? ऐसा क्या है? जो भी हो पर बचपन से अब तक इतना ही पहचाना? अगर विश्वास नहीं है तो मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहूँगा लेकिन"

      

"अब जो भी हो अपने प्यार की खातिर सबकुछ ईमानदारी से बता दूंगी यह निर्णय पक्का है। मैंने तुमसे आज तक कुछ नहीं छुपाया सिवा इसके जो अब बताने जा रही हूँ - मैं किन्नर हूँ"

      

"बस। इतना ही और कुछ नहीं? यह तो मैं पहले से जानता हूँ"


सुनकर विजी सकते में आ गई। जाने ऐसा क्या रवि ने कहा जो।


"पर तुम्हें कैसे मालूम?"

      

"तुम्हारे लिए मेरा लगाव देखकर आंटी ने मुझसे कहा - इस तरह तुम दोनो का मिलना ठीक नहीं है। मेरी बेटी से दूर रहो लेकिन अपना सब ऐसे ही चलता रहा। अपनी बात का कोई असर न देखकर फिर एक दिन उन्होंने मुझसे बात करनी चाही मगर मेरी लापरवाही देखकर कहा - देखो रवि अब जो मैं बताने जा रही हूँ यह हम दोनों के बीच में ही रहना चाहिए। तुम्हारा रिएक्शन या निर्णय जो भी हो पर मेरे भरोसा नहीं तोड़ोगे। मैं उनकी बातों से हैरान - परेशान कि ऐसा क्या है जो? उन्होंने मुझपर भरोसा किया और मैंने भी उनका भरोसा नहीं तोड़ा। पहले तो सच में मुझे बहुत ही गहरा धक्का लगा लेकिन बाद में खुद से ही सवाल किया - क्या विजी में बदलाव आ गया है? क्या अब वो इतनी बदल गई है कि मुझे कभी भनक भी नहीं लगने दी। वो बदल गई या मेरा प्यार बदल गया? तुम्हें याद है तीन साल पहले एक बार मैं तुमसे चार दिन नहीं मिला था। बस, इसी उधेड़बुन में था आखिर प्यार जीत गया और मैंने तुमसे ही शादी करने का निश्चय किया। रही माँ के सपने और उनके पोते-पोतियों की बात। तो गोद ले लेंगे। माँ मानेगी नहीं पर तब की तब देखेंगे। तो मेरी जान यही ना या और भी कुछ? वो कुछ नहीं बोली, उठकर रवि के पांव छूकर उसके गले लग गई। रवि को अपने सीने पर कुछ भीगा हुआ महसूस हुआ तो विजी के रोने का अहसास हुआ। एकाएक हड़बड़ाता हुआ "अरे-अरे भाई डूब जाऊंगा। बाढ़ आई तो बह जायेगा ये बंदा और खुद ही हँस पड़ा"


विजी को उसके निश्च्छल प्यार और बड़प्पन पर गर्व महसूस हुआ। मन ही मन नतमस्तक हो गई और कसके रवि से लिपट गई। बदले में रवि ने भी उसका माथा चूमते हुए उसे अपने में समेट लिया। अभी विजी की आंखें गंगा-यमुना हो ही रही थी। उसकी आंखों को पोंछते हुए बोला "लगता है बाढ़ आकर ही रहेगी। बह जाऊं उससे पहले शादी तो कर लो वरना ये बंदा बेचारा कुंवारा ही मर जायेगा" कहते हुए और भी बाहों की पकड़ मजबूत कर दी।


"ओ ओ ओ रवि, पहले प्यार ही करती थी, अब तो पूजा भी करने को मन कर रहा है। रियली-रियली यू आर सो ग्रेट। बस भरे गले इतना ही कह पाई और रवि के पांवों में गिरकर फफक पड़ी"


"नो ओ नो। माय डीयर नो, तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं बल्कि मेरे में दिल में है और मरते दम तक रहेगी"


"पर लोग। किसी को पता चला तो?"


"यार। भूल जाओ सब। मैं हूँ ना"


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