मैं और मेरी घड़ी
मैं और मेरी घड़ी
आज रजत बहुत खुश था हो भी क्यों ना, कल ही तो उसने शैरी( शैरी उसका पहला प्यार) से बात की और मिलने का वादा भी, ठीक उसी जगह, तय समय में जहां वो पहली बार मिले थे, और अपने प्यार का इज़हार भी किया था। रात भर रजत करवटें बदलता रहा, शैरी से बहुत समय बाद मिल रहा था, कॉलेज खत्म हुए भी काफी समय हो गया था, दोनों अलग अलग शहरों में रहते थे और सिर्फ लैंडलाइन ही एक मात्र सहारा था एक दूसरे से जुड़े रहने का। रात आँखो में ही कट गई, सुबह की पहली किरण में रजत अपना सामान बैग में रखकर शैरी से मिलने बस स्टेशन की ओर कूच कर गया। चलो खुशी की बात थी कि बस भी मिल गई और खिड़की वाली सीट भी, आज मौसम भी कुछ बदला बदला सा था, आसमान में बदल छाए थे और हल्की बूंदा बंदी हो रही थी, पर रजत खुश था वो अपने ख़यालों में ही खो गया था, कॉलेज का पहला दिन जब वो शैरी से मिला और पहली नजर में ही प्यार की कोपले उसके मन में प्रस्फुट हो गई थी, देखते देखते कब दोनों मिलने लगे एक दूसरे के हो गए पता ही नहीं चला।
समय के साथ कॉलेज पूरा हो गया और दोनों दुखी हृदय से अपने अपने शहरों को चले गए, तभी कुछ हल्ला हुआ और रजत की नींद खुल गई तो पता चला रोड ब्लॉक हो गई है, बहुत सा मलबा रोड पर आ गया, कंडक्टर सभी को नीचे उतरने को कह रहा था, रजत अपने बैग के साथ नीचे उतरा तो देखा दोनों तरफ रोड पर बहुत मलबा आया था और उसे अब अपनी यात्रा कुछ किलोमीटर पैदल चल कर पूरी करनी थी। सभी यात्रियों के साथ वो भी पगडंडियों से होते हुए कीचड़ में सने दूसरे रास्ते की ओर पहुंचा, अभी उसकी घड़ी में बहुत समय था, वो पूरे उत्साह से दूसरी ओर पहुंच कर टैक्सी का इंतजार करने लगा। मन में घबराहट भी थी कि कहीं समय ना निकल जाए और वो शैरी से ना मिल पाए, काफी इंतजार के बाद टैक्सी भी मिली और वो अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगा, अभी घड़ी में कुछ ही समय शेष बचा था, बार बार वो अपनी घड़ी में देख कर मिलने की उत्सुकता में व्याकुल हुए जा रहा था।
टैक्सी समय पर प्रिंस चौक पहुंच गई, रजत तेजी से पैसे देकर तय स्थान की ओर बढ़ गया और अपने उस जगह पहुंचने पर अपने बैग के उपर बैठ कर घड़ी में मिलने का समय देखने लगा, समय मानो थम गया हो, व्याकुलता में अधीर उसके होठ सुख गए थे, मगर आसमानी बारिश से वो भीगने लगा था। धीरे धीरे कोहरा भी लगने लगा था। रजत अपनी घड़ी के साथ शैरी का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा।
घड़ी में कुछ मिनट ही बचे थे मिलन की घड़ी के, उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था और वो समय के इंतजार में मरे जा रहा था, बारिश भी तेज होने लगी थी, कोहरा घना होने लगा था, तभी एक मारुति कार उसके पास रुकी, रजत खुश हो के अपने बैग से उठ खड़ा हुआ, चेहरे पर चमक और प्रियसी से मिलने की खुशी, अचानक कब काफुर हो गई जब कार से कोई दूसरा शख्स उतरा और उसने रजत के हाथ में एक लिफाफा देते हुए कार में बैठ कर चल दिया। रजत हैरान, परेशान, असमंजस में लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ने लगा, जिसमे लिखा था "रजत मैं आज भी तुमसे उतना ही प्रेम करती हूं जितना पहले करती थी", मुझे पूरी उम्मीद थी और है कि तुम समय पर उस जगह पहुंच गए होंगे जहां हम दिल से एक दूसरे के हो गए थे, रजत मैं अब नहीं आ पाउंगी, क्यों की मैं अपने माँ, पिताजी को नाराज़ नहीं कर सकती, उनकी समाज में इज्जत है और उनके प्यार,ममता,भरोसे का मैं ऐसे मोल नहीं चुका सकती, मैं अपने अरमानों का गला घोट सकती हूं पर उन्हें यूं धोखा नहीं दे सकती,इसलिए मैं नहीं आ सकती, तुम मुझे भूल जाओ।
आज मेरी सगाई है, तुम अपना ख्याल रखना, तुम्हारी सदा शैरी। बारिश पूरे शबाब में थी कोहरा घिर गया था, रजत अपने बैग के ऊपर बैठे उस पत्र को देख रहा था, जो उसके हाथों से होते हुए पानी में बहता चला जा रहा था, रजत अपने घड़ी में एक आखिरी बार देखता है,शायद अब समय उसके अनुकूल बिल्कुल भी नहीं था।