मै मर्द हूँ
मै मर्द हूँ


डॉक्टर साहब की दुकान पर शाम को कोई मरीज नहीं था और वह खाली बैठे हुए थे । तभी उनके कुछ मित्र उनके पास आकर बैठ गए और राजनीतिक चर्चा शुरू होने लगी बातों बातों में इमरजेंसी की बात होने लगी कुछ लोग इसके पक्ष में तो कुछ लोग विपक्ष में चर्चा करने लगे । जब काफी देर तक कोई निष्कर्ष ना निकला तो डॉक्टर साहब ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा "मैं आपको इमरजेंसी से संबंधित एक घटना के बारे में बताता हूं इसे सुनने के पश्चात आप स्वयं निर्णय लें कि क्या सही है और क्या गलत" डॉक्टर साहब ने कहना शुरू किया .....
यह बात सन 1975 की है जब इमरजेंसी की घोषणा हो चुकी थी । सभी दफ्तर सुव्यवस्थित रुप से चल रहे थे ,कांग्रेसी अपने विरोधियों को ढूंढ ढूंढ कर जेलों में डलवा रहे थे ।उसी दौरान एक गांव में रामलाल नाम का युवक जिसने अभी हाल ही में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी आगे की पढ़ाई के लिए बरेली यूनिवर्सिटी आया हुआ था । वह बीए की डिग्री बरेली यूनिवर्सिटी से करना चाहता था । बरेली से मुरादाबाद वापसी के समय अपने मित्र के साथ वह रामपुर के बस स्टैंड पर उतर गया बस स्टैंड पर उसने कुछ लोगों की भीड़ देखी और वह भीड़ की ओर चल दिया । वहां जाकर उसने देखा की एक एंबुलेंस में कुछ लोगों को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाया जा रहा है । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 2 सिपाही उसके पास आए और बोले "इस लड़के को भी ले चलो " यह सुन रामलाल बुरी तरह घबरा गया और अपना बचाव का भरसक प्रयास किया लेकिन सिपाहियों के आगे उसकी एक न चली और उन्होंने रामलाल को एक एंबुलेंस में डाल दिया । सारे रास्ते रामलाल एंबुलेंस के कर्मचारियों से पूछता रहा "भाई हमें कहां ले जा रहे हो और क्यों" मगर किसी ने रामलाल की बात का कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ ही देर में एंबुलेंस सरकारी अस्पताल पहुंच गई वहां पहुंचकर सिपाहियों ने रामलाल को पकड़ा और ऑपरेशन थिएटर की तरफ ले गए । रामलाल की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है पूरा सरकारी अस्पताल पुलिस छावनी में बदला हुआ था। ऑपरेशन थिएटर पहुंचकर रामलाल ने रोते हुए डॉक्टर से पूछा "मुझे यहां क्यों लाया गया है" डॉक्टर ने कहा "हम एक मामूली सी जांच करेंगे उसके बाद तुम्हें घर भेज दिया जाएगा " रामलाल अभी भी कुछ नहीं समझ पा रहा था, कुछ समय पश्चात दो डॉक्टर आए और रामलाल को नशा सुघा कर उसके नाभि के नीचे कट लगाकर रामलाल का ऑपरेशन कर दिया । नशा कम होने पर जब रामलाल को होश आया तो वार्ड बॉय ने उसे बताया " तेरा बच्चे बदं का ऑपरेशन हो गया है " यह सुन रामलाल के पैरों तले जमीन निकल गई ।उसने रूआंसू होते हुए वार्ड बॉय को बताया कि " मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है " और जोर जोर से रोने लगा ।उसका रुदन सुन सारा स्टाफ इकट्ठा हो गया और सभी ने उसे समझाया कि अब कुछ नहीं हो सकता अगर विरोध करोगे तो जेल जाना पड़ेगा । यह सुन डर के मारे रामलाल चुपचाप वहां से अपने गांव आ गया गांव पहुंच कर उसने आपबीती पूरे परिवार को बताई । धीरे-धीरे यह बात उसके आस पड़ोस में भी पता लग गई । चूंकि राम लाल इंटर पास हो चुका था और इस उम्र में गांव देहात में लोग बच्चों की शादियां कर देते थे, अतः रामलाल के परिवार को भी यह उम्मीद थी कि अब उसके रिश्ते आने लगेंगे । लेकिन जब भी कोई लड़की वाला आता उसे कहीं ना कहीं से रामलाल के विषय में पता लग जाता की इसका बच्चे बंद का ऑपरेशन हो चुका है और यह नामर्द है । इस तरह कई रिश्ते आए और इन्हीं कारणों से टूट गए ।
• करीब 19 माह के लंबे अंतराल के बाद इमरजेंसी खत्म हुई और लोगों ने राहत की सांस ली अब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। रामलाल का परिवार डॉक्टर साहब से काफी परिचित था और अपना इलाज कराने अक्सर उनके पास आया करता था उन्होंने डॉक्टर साहब कोअपनी आपबीती बताई और उनसे कुछ मदद करने का आग्रह किया । डॉक्टर साहब के प्रयासों से रामलाल के परिवार को स्थानीय विधायक, सांसद व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक मिलवाया गया और रामलाल के परिवार ने अपनी आपबीती उन्हें सुनाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं सांसद के प्रयासों से रामलाल का पुनः ऑपरेशन हो गया, जिसमें डॉक्टर ने बच्चे बंद की गांठ को खोल दिया। अब राम लाल का परिवार काफी प्रसन्न था ।उन्हें यह उम्मीद थी की उनके ऊपर जो नामर्दी का धब्बा लगा है वह धुल गया है और शीघ्र ही रामलाल की शादी हो जाएगी। परंतु ऑपरेशन के काफी समय बाद तक शादी का कोई प्रस्ताव नहीं आया और जो भी प्रस्ताव आए वह लोग इस बात से संतुष्ट नहीं हुए की रामलाल की मर्दानगी वापस आ गई है गांव में लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि रामलाल का कोई ऑपरेशन नहीं हुआ है यह झूठ बोलते हैं ।अब राम लाल अपना दुखड़ा लेकर डॉक्टर साहब के पास पहुंचा और और उन्हें सारी बात से अवगत कराया ।उसने कहा कि " मेरे घर कोई रिश्ता लेकर नहीं आ रहा है सभी को इस बात पर संदेह है कि मै पूर्णता स्वस्थ हो गया हू और बच्चा पैदा करने में सक्षम हूँ " अब उन्हें कैसे समझाएं कि मेरा ऑपरेशन हो चुका है और" मै पूरी तरह मर्द हूँ " उसकी बात सुन डॉक्टर साहब भी पशोपेश में पड़ गए और उन्होंने कहा कि मैं इसमें तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं क्योंकि उस समय तक ऐसा कोई तरीका नहीं था जो यह साबित कर सके कि रामलाल बच्चा पैदा करने में सक्षम हैं । रामलाल अब 35 वर्ष का हो चुका था विवाह की सभी संभावनाएं करीब-करीब खत्म हो चुकी थी एक दिन अचानक वह घर से रात को कहीं चला गया पूरे परिवार ने उसे बहुत ढूंढा पर कोई नतीजा न निकला, रामलाल का कहीं कोई पता ना था। रामलाल को घर से गए करीब 6 माह का समय बीत चुका था ।परिवार को भी लगने लगा कि वह अब जीवित भी है कि नहीं ।तभी गांव का एक व्यक्ति भागा भागा उनके घर आया और उसने बताया कि करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव में एक मंदिर है वह उसमें जो महात्मा है उसकी शक्ल रामलाल से बहुत मिलती है। पूरा परिवार भागा भागा उस मंदिर में पहुंचा तो उन्होंने देखा की रामलाल महात्मा बन चुका है। उन्होंने रामलाल को बहुत समझाया लेकिन रामलाल ने घर जाने से मना कर दिया और अपना पूरा जीवन मंदिर की सेवा में लगाने का फैसला उन्हें सुना दिया। परिवार के लोग यह सुन मायूस मायूस होकर घर वापस आ गए।
डॉक्टर साहब ने अपनी वाणी को विराम दिया और उनके मित्र भी चुपचाप उनके समीप बैठे रहे ।तभी डॉक्टर साहब का कंपाउंडर भागा भागा उनके पास आया और बोला "डाक्टर साहब मंदिर वाले महात्मा जी का निधन हो गया हैं " यह सुन डॉक्टर साहब तुरंत उठ कर महात्मा जी के अंतिम दर्शन को चल दिए ।
इमरजेंसी तो सरकार ने लगा दी लेकिन उसके परिणामों के बारे में नहीं सोचा ।इमरजेंसी में यदि पहला प्रेस की आजादी दूसरा फैमिली प्लानिंग तीसरा विपक्षी दलों के व्यक्तियों को जेल यह तीनों कृत्य ना किए गए होते तो वह समय भारत के लिए बहुत ही अनुशासन वाला था। लोग ऑफिसों में समय पर आते थे सभी काम सुव्यवस्थित चल रहा था। परंतु फैमिली प्लानिंग के चलते कस्बों में लगने वाली बाजारो में सालों तक प्रौण महिलाएं ही आती रही और पुरुष डर के मारे घरों और खेतों में दुबके रहे ।असल में फैमिली प्लानिंग का फैसला सरकार की मंशा को दर्शाता है सरकार की मंशा तो ठीक थी क्योंकि जनसंख्या पर नियंत्रण भी जरूरी था परंतु उसका तरीका बहुत गलत था। अतः इसका दुष्परिणाम भी देखने को मिला और रामलाल जैसे लोगों को यह दंश जीवन भर झेलना पड़ा ।