Bharat Bhushan Pathak

Drama

5.0  

Bharat Bhushan Pathak

Drama

मासूम की भूख

मासूम की भूख

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वह थी तो केवल आठ साल की।पर देखकर उसे कौन कह पाता कि वो केवल आठ साल की है।निष्ठुर विधाता ने इस मासूम से माता-पिता को छीनकर क्रुरता की हद ही कर दी थी।अब वह और उसका मासूम भाई ही तो रह गया था इस संसार में।पर कहा जाता है न विधाता ने मनुष्य को एक अंग देकर उसके साथ न्याय व अन्याय दोनों ही कर दिया है।न्याय इस तरह से कि पेट के कारण ही मनुष्य अपना भरण-पोषण कर पाता है।

यह पेट ही तो है जो मनुष्य को साधारण काम से जघन्य अपराध तक करने को मजबूर कर देती है और यहाँ तो दो दो पेटों का सवाल था,उसका और उसके भाई का।अपनी भूख तो वह भूल भी जाती पर भला कैसे भूल सकती थी वो उस मासूम के भूख को...

इसलिए तो मैंने शुरुआत में ही लिखा है कि अपराजिता आठ साल के होने के बावजूद भी बहुत बड़ी थी।देखने को तो वो छोटी थी पर किस्मत ने उसे मन से बहुत बड़ा बना दिया था।कहा भी गया है ,"मनुष्य की जिम्मेदारियाँ उसको समय से पूर्व ही बड़ा बना देती हैयही तो मासूम अपराजिता कर रही थी अब...खिलौने पकड़ने वाले हाथों ने भारी -भरकम सीमेन्ट की बोरियाँ उठाने और स्कूल बैग ढोने वाले कंधे उन बोरियों को ढोना शुरु कर दिया था।

किसी ने मासूम अपराजिता से कभी यह पूछने का ज़हमत नहीं उठाया कि वह स्कूल क्यों नहीं जाती ? क्यों वह इस उम्र में ऐसे काम कर रही है ? आखिर क्या बात है जो उसे ये सब करना पड़ रहा है पूछते भी कैसे वो लोग और किस अधिकार से पूछ सकते वो अपराजिता से ।उन्होंने उसके लिए कभी कुछ किया भी तो नहीं ।

वो अपने छोटे से भाई के लिए केवल अब बहन नहीं रह गयी थी बल्कि अब वही तो उसके लिए माँ और बाप दोनों रह गयी थी।

वह थी तो खुद भी मासूम ही न इसलिए कभी -कभार जब परेशान हो जाती तो वह अपने मासूम भाई के माथे पर चूमते हुए उससे बात करते हुए कहती थी बेटा अब मैं ही तुम्हारी माँ हूँ और मैं ही तुम्हारी बाप हूँ ,अब हम दोनों को ही एकदूसरे का ख्य़ाल रखना होगा।तुम चिन्ता मत करना मैं तुम्हारी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ूँगी ।उसके ये शब्द उसके दृढ़ निश्चय को ही तो दिखला रहे थे......


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