माँ
माँ
सुबह के 7 बजे थे सुनंदा चाय लेकर अजय को बड़े प्यार से जगाने आई। ख़ुशी उसके चेहरे पर झलक रही थी।
"सुनो! आज बहुत खुश नजर आ रही हो तुम? क्या बात है? मुझे भी बताओ" अजय ने सुनंदा से कहा ।
अजय की बात सुन के सुनंदा ने जवाब दिया "आज मदर्स डे है, मैं अपनी माँ से मिलने जा रही हूँ आते वक़्त उन्हें साथ ले आऊंगी कुछ दिनों के लिए।"
अजय ने सुन के कहा "यहाँ लाने की क्या ज़रूरत है? मिल के आ जाओ और तुम्हारा मन कर रहा हो तो कुछ दिन वहाँ रुक जाओ।"
सुनंदा ये सुन के तुरंत आगबबूला हो उठी और बोली "सुनो वो मेरी माँ है कुछ दिन यहाँ रह लेगी तो तुम्हारा क्या जाएगा" अजय को लगा खामखाँ झगड़ा ना बढ़ जाए तो शांत मन से बोला "ठीक है जैसा तुमको ठीक लगे कर लेना"
फिर अजय ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया, तैयार होकर उसने नाश्ता किया और घर से निकलने वाला था कि सुनंदा ने उसे टोका और कहा कि "क्या तुम भी वृद्धाआश्रम जा के अपनी माँ से मिल के आओगे? मेरे ख्याल से मिल आना उनसे।"
अजय ने कहा "देखता हूं" और घर से निकल गया।
चलते-चलते उसे पुरानी सारी बातें याद आने लगी कैसे माँ ने उसे पाला था। बचपन में जब पिताजी की मृत्यु हो गयी थी तब माँ ने घर भी संभाला और उसे भी छोटे से छोटा काम कर के उसे पढ़ाया अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया उसकी शादी करवाई शादी के कुछ दिन पश्चात् ही से सुनंदा और माँ के बीच आए दिन किसी ना किसी बात को लेकर खींचातानी होने लगी। बार-बार सुनंदा के ताने और माँ को वृद्गाश्रम भेजने की बात इन सब से परेशान होकर कैसे माँ ने स्वयं आ कर अजय को कहा कि तुम मुझे वृद्धाश्रम छोड़ आओ, ये रोज रोज की खटपट से तुम्हारा काम और स्वास्थ्य दोनों ख़राब होगा फिर ना चाहते हुए भी उसने माँ को वृद्धाश्रम में रखा। ये सब सोचते सोचते अजय बस स्टॉप तक पहुँच गया। वहाँ पहुँचते ही उसे पता नहींं अचानक कुछ याद आया उसने हाथ दिखाकर एक टैक्सी को रोका और टैक्सी में बैठ के वो अपने मित्र संजय से मिलने चला गया उसका मित्र संजय पेशे से वकील था। संजय से उसने कुछ देर तक बात की कुछ कागज़ात तैयार करवाए और वहाँ से वृद्धाश्रम जा पंहुचा।
वृद्धाश्रम में अपनी माँ से मिलने उनके कमरे में गया तो देखा माँ सो रही थी। उसने माँ को नहींं जगाया उनके पैर के पास में बैठ गया और देर तक अपनी माँ को देखता रहा। माँ की नींद अचानक खुल गयी उसने देखा बेटा पास में बैठा हुआ है।
"अरे! अजय तुम कब आए? मुझे जगाया क्यों नहींं?" माँ ने पूछा।
अजय ने कहा "आप आराम कर रही थी इसलिए नहींं जगाया।आपकी तबियत कैसी है।"
"मैं तो ठीक हूँ, लेकिन तुझे क्या हुआ अचानक आज कैसे आना हुआ तेरा ?"
"माँ मैं तुमको घर ले जाने आया हूँ तुम्हारे बिन अब एक पल भी नहींं रहूंगा" ये कहते हुए अजय फफक के रो पड़ा।
माँ सर पर हाथ फेरते हुए पूछा "क्या हुआ सुनंदा से झगड़ा हुआ है क्या?"
अजय ने कहा "नहीं किसी से झगड़ा नहींं हुआ है आप बस अपना सामान पैक करो तब तक मैं वृद्धाश्रम का सारा हिसाब पूरा कर के आता हूँ।"
ये बोल के अजय बाहर चला गया। माँ ने अपना सामान पैक किया और तैयार हो के सोचने लगी आखिर क्या हुआ अजय को आज कुछ बता भी नहींं रहा है, इतने में अजय आया और बोला "आप तैयार हो गयी माँ चलो टैक्सी बाहर इंतज़ार कर रही है।"
इतने में अजय का फोन बजा उसने फोन उठाया उधर से सुनंदा ने उसे कहा वो माँ के पास पहुँच गयी है मेरे भाई भाभी उन्हें वृद्धाश्रम में रखने का सोच रहे हैं मैं सोच रही हूँ उन्हें घर ले आऊं आप क्या कहते हैं" अजय ने कुछ जवाब नहींं दिया "व्यस्त हूँ" बोल के फोन काट दिया।
माँ को लेकर अजय अपने घर वापस आ गया उसके सीने से एक पत्थर उतर गया हो उसे आज ऐसा महसूस हो रहा था।
शाम को सुनंदा जब घर पहुँची तो उसने देखा अजय माँ के साथ बैठा हुआ है। सुनंदा को काटो तो खुन नहींं वाली हालत हो गयी लेकिन उसने कुछ कहा नहींं अपने कमरे में चुपचाप चली गयी।
कुछ देर के पश्चात् अजय कमरे में आया तो उसका लावा फूट पड़ा चिल्लाते हुए अजय से कहने लगी "तुम्हारे लिए तुम्हारी माँ ही सबकुछ है मेरी माँ को तो लाने से मना कर दिया था तुमने।"
अजय ने सुनंदा को पहले शांत करवाया और उसे प्यार से समझाया और बताया की "तुम्हारी माँ का फोन कल ही मेरे पास आ गया था उन्होंने मुझे सब बात बता दी थी तुम्हें बताने के लिए मना किया था।"
फिर अजय बोला "देखो तुम्हारे कहने पर मैंने भी अपनी माँ को वृद्धाश्रम में रखा इतने दिन तक, जब तुम्हारा भाई माँ को वृद्धाश्रम में भेजने को तैयार हुआ है तो मैं उसे किस मुँह से समझाता की उन्हें वहाँ मत भेजो इस लिए मैंने पहले अपनी गलती सुधारी है।"
कल हम तुम्हारी माँ के पास चलेंगे तुम्हारे भाई को समझायेंगे अगर फिर भी नहींं माना तो माँ को हम यहाँ ले आएंगे हमे उनकी जायदाद का कोई हिस्सा नहींं चाहिए मैंने संजय से कागजात भी बनवा लिए है जिसमें तुम हस्ताक्षर कर देना, मैंने अपनी माँ को भी सब बातें बता दी है। वो बड़ी खुश है मेरा फैसला सुन कर।"
इतना सुन के सुनंदा रोने लग गई और अजय से माफ़ी माँगने लगी की "मैंने अनजाने में कितना बड़ा गुनाह कर दिया था।"
अजय प्यार से उसके सर पे हाथ फेर रहा था।