'माँ'
'माँ'
अपने वृद्धाश्रम में लम्बी गाड़ी खड़ी देखकर सब चकित थे। गाड़ी से उतरने वाले को देखकर तो सबकी आँखें फटी की फटी रह गई, अरे यह तो धीरज है। जो कुछ साल पहले यहीं किसी के घर में काम करता था, बात -बात में रोता था, पूछने पर बोलता था "मैं बड़ा होकर पढ़-लिख कर माँ लाऊँगा।" सब हँसते थे कि मरी माँ को यह कहाँ से लायेगा, बाल बुद्धि इसका कारण है। पर जब -जब वह अपनी मालकिन को अपने हमउम्र सन्नी को पुचकारते देखता, प्यार से खिलाते देखता, लोरी गाकर सुलाते देखता तब-तब मन ही मन अपनी माँ पर गुस्सा करता वह क्यों उसे छोड़कर ईश्वर के पास गयी।
आज उसके दिन पलट गये थे पढ़ाई में तेज़ था कुछ मालिक का सहृदयपन और कुछ अपनी मेहनत, वजीफा मिलता गया और वह पढ़ता गया। बड़ी अच्छी कम्पनी में नौकरी मिल गई सारी सुख -सुविधाएँ मिली और आज वह अपना सपना पूरा करने वृद्धाआश्रम आया था अपने लिये माँ लेने। वह जैसे अंदर आया उसकी नजर एक ऐसी वृद्धा पर पड़ी जो पौधों में पानी डाल रही थीं। आँखों के आगे माँ की धुँधली छवि तैर गयी और उसने उन वृद्धा को माँ मान लिया।
आज धीरज अपनी गोद ली हुई माँ को घर लेकर आ गया जहाँ आतिशबाजियाँ हो रही थीं।