माँ ज़िंदा रहेंगी तब तो (भाग-5)
माँ ज़िंदा रहेंगी तब तो (भाग-5)
अब तक आपने पढ़ा कि....मां की बीमारी जानकर दोनों बहने बहुत परेशान थी।
फिर...दोनों बहनों ने तय किया ज़ब रात में सब सो जायेंगे तब दोनों फिर से इस बारे में बात करेंगी. रूचि किसी तरह मीतू को फोन पर तो ढाँढस बँधा रही थी पर अंदर से उसका मन ज़ार ज़ार रो रहा था.
मीतू से बात करके ज़ब कमरे में आई तो अमन यूँ ही बेड पर लेटा था. वह रूचि की आँखों में आँसू देखकर चौंक गया.रूचि ने ज़ब माँ के कैंसर होने की बात बताई तो अमन भी चिंतित हो गया.
उसने पूछा...." क्या हुआ रूचि ? तुम्हारी आंखों में आंसू क्यों है...? "तो रूचि बिना कुछ बोले उसके गले लग गई। कुछ देर अमन रूचि का पीठ सहलाता रहा। और रूचि....? उसने जैसे मूक होकर अपनी सारी व्यथा कह डाली थी। पति का साथ पाकर रूचि भी थोड़ा अच्छा महसूस कर रही थी।अमन ने तुरंत रूचि के साथ जाने की तैयारी शुरू कर दी.अमन ने फिलहाल चार दिनों की छुट्टी ली और रूचि ने भी छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया.दोनों अगले दिन ही रवाना हो गए.
वहाँ जाकर माँ को देखने के बाद रूचि एकदम सकते में आ गई. माँ बहुत कमज़ोर सी दिखी जैसे पहचान में ही नहीँ आ रही थी.
पापा बिल्कुल उजड़े उजड़े से लग रहे थे.और मीतू उससे लिपटकर इतना रोई कि उसके कांधे का दुपट्टा पूरा गीला हो गया था. शायद इतने दिनों सब कुछ अकेले सँभालते सँभालते टूट सी गई थी.थोड़ी देर में सब संयत हुए तो रूचि ने साहस करके माँ के टेस्ट और इलाज के सारे पेपर देखे. फिर अगले दिन अमन और रूचि भी सबके साथ डॉक्टर के पास गए.पापा के दोस्त का बेटा अपोलो में था. इसलिए माँ का इलाज अच्छे से हो रहा था. डॉक्टर ने कहा कि अब किमोथेरेपी जल्दी शुरू कर देना चाहिए वरना कैंसर और फ़ैल सकता है.
पर......साथ ही ये भी कहा कि अभी माँ इतनी कमज़ोर हैँ कि.... ये ट्रीटमेंट सह नहीँ पाएंगी.
हॉस्पिटल से घर आकर माँ को हल्का फुल्का खाना खिलाकर सुला दिया गया था.सोते हुए माँ बिस्तर पर एक पतली गठरी जैसी लग रही थी.
शानदार व्यक्तित्व की मालकिन माँ को ऐसे देखकर रूचि का मन हाहाकार कर रहा था.पापा को खाना परोसते हुए रूचि ने देखा तो पापा कुछ खा नहीँ रहे थे.बस थाली में हाथ इधर से उधर घूमा रहे थे. रूचि ने उनके कंधे पर हाथ रखा तो वो फफ़क़कर रो पड़े. बार बार यही कह रहे थे.. बड़ी बहू ने नहीं खाया तो मैं कैसे खाऊँ?कितनी कमज़ोर है देखो. उसका इलाज ऐसे कैसे शुरू होगा ज़ब वो इतनी कमज़ोर है बेटा! फिर भावुक होकर हाथ जोड़कर कहने लगे,
"बड़ी बहू को बचा लो बेटा, अपनी माँ को बचा लो. मैं उसके बिना नहीं जी सकता ".फिर पापा बिना कुछ खाये हाथ धोकर भगवानजी के आगे जाकर बैठ गए. अस्फुट स्वरों में मंत्र पढ़ते जाते और उनके आँसू जैसे थम ही नहीँ रहे थे.यह सब देखकर रूचि का मन ही नहीँ किया कुछ खाने का.उसने तो माँ से और दादी से यही सुना था.
वह पंद्रह साल की थी माँ ज़ब पापा के साथ ब्याहकर ससुराल आई थी और पापा शायद बीस साल के. दादी घर की बड़ी बहू होने के नाते माँ को इसी नाम से पुकारने लगीं थीं,
"बड़ी बहू ". उन्होंने अपनी बड़ी बहू के साथ यानि बस अपनी पत्नी के साथ जीवन की हर सांस से बांध ली थी।
क्रमशः
प्रिय पाठकों,
कहानी में आगे क्या हुआ इसके लिए पांचवा और अंतिम भाग पढ़ें।
