लो चली मैं अनजान नगरिया में
लो चली मैं अनजान नगरिया में
जिंदगी चलते रहने का नाम है ,
चलते रहो सुबह शाम।
ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ हमारे ससुर साहब पदराडा गांव से महाराष्ट्र महालक्ष्मी मनोहर में गए।
वहां से उदयपुर आकर बसे
वहा उन्होंने बच्चों को शिक्षा दी और बच्चे जब बड़े हुए स्थाई होने का समय आया तो हमको उदयपुर छोड़ना पड़ा।
पापी पेट के खातिर
नौकरी अच्छी जगह ढूंढना।
यह सबके लिए जरूरी हो जाता है। जहां सारी सुविधाएं मिले ।
उदयपुर बहुत अच्छी जगह है इसमें कोई दो राय नहीं।
पर नौकरी तो सरकारी होती है तो आज इधर कल उधर।
इसी चक्कर में राजस्थान में 10 जगह घूम हमने पाली से राजस्थान को बाय बाय कर दिया है।
और गुजरात का रास्ता पकड़ा।और इस बड़ौदा ने हमको इतना जकड़ा। यह अनजान नगरिया हमारे लिए हमारा स्थाई निवास बन गया। अब यहां से कहीं जाने की इच्छा नहीं
1985 मई ःः
लो चली में अपने कुनबे को साथ लेकर ।
अपने सारे सामान को समेट कर।
एक अनजान नगरिया की ओर ।
ना जाना जिसके बारे में कभी पहले ऐसी थी ।
यह नगरिया मेरे लिए ।
चल पड़ी में सामान बांध
अपने पिया और परिवार संग।
सोचा ना था कि यह नगरिया मेरी अपनी हो जाएगी ।
और मैं इस नगरिया में बस जाऊंगी। अनजान नगरिया से यह मेरी प्यारी नगरिया बन जाएगी संस्कार नगरी। बड़ौदा ।
आईए इसके बारे में विस्तार से जाने
वड़ोदरा जिसे पहले बड़ोदरानाम से जाना जाता था, गुजरात राज्य का तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। यह एक शहर है जहा का महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय अपने सुंदर स्थापत्य के लिए जाना जाता है। वड़ोदरा गुजरात का एक महत्त्वपूर्ण नगर है। वड़ोदरा शहर, वडोदरा ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय, पूर्वी-मध्य गुजरात राज्य, पश्चिम भारत, अहमदाबाद के दक्षिण-पूर्व में विश्वामित्र नदी के तट पर स्थित है। वडोदरा को बड़ौदा भी कहते हैं।
इसकी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के कारण, जिले को संस्कारीनगरी के रूप में जाना जाता है। कई संग्रहालयों और कला दीर्घाओं, उद्योगों की इस आगामी हब और आईटी के साथ पर्यटकों का पसंदीदा स्थल है। राजा चन्दन के शासन के समय में वडोदरा को 'चन्द्रावती' के नाम से जाना जाता था और बाद में 'वीरक्षेत्र'( अर्थात् 'वीरों की धरती' या 'वीरावती' ) विश्वामीत्रि नदी के तट पर बरगद के पेड़ की बहुतायत के कारण वडोदरा को 'वडपात्रा' या 'वडपत्रा' के नाम से जाना जाने लगा और यहीं से इसके वर्तमान नाम की उत्पत्ति हुई। बड़ौदा प्राचीन शब्द वादपद्रक से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘बरगद के नीचे स्थित आवास”। बड़ौदा को सन 1971 से ही वडोदरा के नाम से जाना जाता है।
वड़ोदरा में स्थित महाराजा गायकवाड़ विश्वविद्यालय गुजरात का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। इसमें जो लाइब्रेरी है हंसा मेहता लाइब्रेरी यह बहुत बड़ी लाइब्रेरी है और बहुत ही अच्छी एवं लक्ष्मी विला पैलेस स्थापत्य का एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण है। वड़ोदरा में कई बड़े सार्वजानिक क्षेत्र के उद्यम गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स (GSFC), इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड (अब रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के स्वामित्व में IPCL) और गुजरात एल्कलीज एंड केमिकल्स लिमिटेड (GACL) स्थापित हैं। यहाँ पर अन्य बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां जैसे, भारी जल परियोजना, गुजरात इंडस्ट्रीज पावर कंपनी लिमिटेड (GIPCL), तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और गैस प्राधिकरण इंडिया लिमिटेड (GAIL) भी हैं। वड़ोदरा की निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों में स्थापित विनिर्माण इकाइयां जैसे; जनरल मोटर्स, लिंडे, सीमेंस, आल्सटॉम, ABB समूह, TBEA, फिलिप्स, पैनासोनिक, FAG, स्टर्लिंग बायोटेक, सन फार्मा, L&T, श्नाइडर और आल्सटॉम ग्रिड, बोम्बर्डिएर और GAGL (गुजरात ऑटोमोटिव गियर्स लिमिटेड), Haldyn ग्लास, HNG ग्लास और पिरामल ग्लास फ्लोट आदि शामिल हैं।
1960 के दशक में गुजरात की राजधानी बनने के लिए बड़ौदा की साख, अपने संग्रहालयों, पार्कों दिया, खेल के मैदानों, कॉलेजों, बहुत सारे जैन मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर बहुत सुंदर सुंदर EME मंदिर,
शिव मंदिर ,सर्व धर्म मंदिर, मंदिरों, बहुत सारे अस्पताल सर सयाजीराव गायकवाड अस्पताल अस्पतालों, उद्योग (नवजात यद्यपि), प्रगतिशील नीतियों, और महानगरीय जनसंख्या के कारण सबसे प्रभावशाली थी। परन्तु बड़ौदा के राजसी विरासत और गायकवाड़ों के मराठा मूल से होने के कारण इस शहर को लोकतांत्रिक भारत में एक राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित होने से रोका।
ऐसी प्यारी बड़ौदा नगरी ने हमको अपना बना लिया और हम यही बस गए। जो मेरा बचपन से सपना था कि अगर मेरे बच्चे पूरे तो उनको मैं एमएस यूनिवर्सिटी में पढ़ाऊंगी वह सपना अपने आप ही पूरा हो गया
जो कल तक थे अनजाने शहर
आज हमें जान से भी प्यारे हो गए।
ऐसे शहर में हम रह गए।
इस शहर में मेरा घर है पधारो मारे देश।
