लक्ष्मण रेखा
लक्ष्मण रेखा
"सुनो सुमित आज शाम को मॉल चलेगे आज कोई बहाना मत बनाना, 1 महीने से बोल रही हूँ हर सन्डे मैं प्लान बनाती हूँ ओर तुम जरूरी काम का बहाना देकर निकल जाते हो। सोनू को भी वक्त दिया करो एक रविवार ही तो मिलता है।" "अच्छा बाबा चलेगे पिया। तुम तो शुरू होने के बाद रुकती ही नहीं हो।
पहले शॉपिंग फिर सोनू की बच्चे वाली लायन किंग मूवी फिर डिनर, ठीक है।" सोनू उछल पड़ा, "लव यू पापा।"
पिया भी जल्दी जल्दी काम ख़तम कर लेना चाहती थी। बहुत दिनो बाद आज सुमित के साथ जाने का मौका मिला है। पता नहीं कहाँ ध्यान रहता है सुमित का पहले तो ऐसे नहीं थे 3 महीनों में कितने बदल गए है। मोबाइल भी नहीं छूने देते, शक... नहीं नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता। सुमित ऐसे नहीं है। बहुत प्यार करते हैं ज़रूर ऑफ़िस का काम होगा तभी वक़्त नहीं दे पाते। खैर आज तो खूब शॉपिंग करूंगी।
"सोनू आ बेटा तुझे तैयार कर दूँ फिर मैं हो जाती हूँ।" "पर मम्मा।"
"क्या हुआ बेटा उदास क्यूँ है मेरा बच्चा।"
"पापा तो बाहर गए। बोला मम्मी को बोल देना थोड़ी लेट चलेगे। डिनर करने। मतलब मूवी नहीं देखेगे हम।"
"देखेगे क्यूँ नहीं देखेगे। मम्मा ओर सोनू चलेगे। चलो अब रेडी हो जाओ।"
पिया को आज बहुत गुस्सा आया। पर उसने अपने बच्चे की खुशी के लिए अपना प्रोग्राम नहीं बदला। हर बार सुमित ऐसे ही करते हैं आज तो बात करनी ही पड़ेगी। सोनू और पिया मॉल में जाते हैं। सोनू खुश हो जाता है और सोनू को देख पिया।
"मम्मा मम्मा देखो पापा। वहां आइसक्रीम शॉप पर।"
"पापा यहां नहीं है बेटा आते तो हमारे साथ आते।" "आप देखो ना।"
सुमित यहां, किसके साथ। अरे ये तो रीता है, सुमित की दोस्त। पर ये दोनों साथ में हाथ में हाथ डाले।
एक पल के लिए पिया की साँस ही रुक गयी। अपने आप को सँभाला। क्योंकि बच्चे के सामने वो कमजोर नहीं होना चाहती थी।
पिया सोनू घर आए। देर रात सुमित भी आया। पिया ने कोई सवाल नहीं किया। बिल्कुल समान्य व्यवहार किया।
"कहाँ गए थे सुमित।"
"दोस्त का एक्सिडेंट हो गया था उसके पास गया था।"
"ठीक है ना तुम्हारा दोस्त। "हां ठीक है।"
अगले रविवार..
"सुमित आज मैंने रीता और उसके पति को खाने पर बुलाया है।"
"पर आज कैसे। तुमने बताया नहीं।"
"वो पिछले रविवार मैं और सोनू मूवी गए थे ना तुम तो दोस्त के साथ थे तब वहां मुझे रीता मिली थी। तब मैंने उसे आने को बोला। आज आएगी वो।"
सुमित को सब समझ आ गया, की पिया को सब पता चल चुका है। वह नज़र नहीं मिला पा रहा था। पिया ने भी कुछ ना कहते हुए भी नज़रों से अपनी नाराज़गी जाहिर कर दी। जैसे उसकी आँखें कह रही हो सुमित तुमने बरसों का भरोसा खो दिया क्या वापिस हासिल कर पाओगे।
शाम को रीता और उसके पति घर पर आए। पिया ने अच्छे से स्वागत किया। बातों बातों में पिया ने रीता के पति से पूछा "लगता है कि आप बहुत व्यस्त रहते हैं काम में। नहीं तो। मुझसे ज्यादा तो मेरी पत्नी व्यस्त रहती है। पिछले रविवार भी अपनी किसी दोस्त के साथ अनाथ आश्रम गयी थी। अब NGO चलाती है तो रविवार को भी वक्त नहीं मिलता।" "अरे रीता तुमने बताया नहीं अपने पति को पिछले रविवार के बारे में।"
रीता का चेहरे का रंग उड़ गया। "क्या नहीं बताया मैंने।"
"यही पिछले रविवार तुम मेरे साथ थी अपने साथ ही तो आश्रम गए थे। चलो रीता किचन में चलते है चाय भी बना लेते हैं बातें भी हो जाएगी।"
रसोई में पहुंच कर रीता ने पिया से कहा। "मुझे माफ़ कर देना। मेरे पति को कुछ मत बोलना पता नहीं कब मैं सुमित की तरफ झुकने लगी मुझे माफ़ करना।"
"देखो रीता तुम्हारा भी परिवार बच्चे है मेरे भी। मैं नहीं चाहती कि किसी का भी घर टूटे। हर रिश्ता एक हद तक सही होता है। ग़लती सुमित की भी है चाहूँ तो अभी भी उसे छोड़ सकती हूं पर क्या सुमित तुमसे शादी करेगा। कभी नहीं करेगा। ये प्यार नहीं आकर्षण है। तुम अपने पति बच्चों के बिना रह पाओगी कभी नहीं। इसलिए कह रही हूँ अभी वक्त रहते संभल जाओ तो सुमित ओर तुम्हारे लिए अच्छा है।
राम जी ने तो अपनी पत्नी की रक्षा के लिए लक्ष्मण रेखा खींची थी। मैं अपने परिवार के लिए लक्ष्मण रेखा खींच रही हूँ कभी उसे पार मत करना रीता।"
आप पिया की जगह होते तो क्या करते लड़ते झगड़ते रूठते क्या करते। आपके उतर के इंतजार में आपकी दोस्त