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Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

4  

Yogesh Kanava

Abstract Drama Romance

लिपस्टिक

लिपस्टिक

7 mins
242

यह प्राय हर दिन ही होता था गर्वित अपने दफ्तर के लिए निकलता तो लगभग उसी समय बस स्टैंड पर वो आती थी ! बस स्टैंड पर मौजूद सभी एक बार तो उसकी तरफ देख ही लेते थे, देखें भी क्यों ना, लगता था जैसे कोई शापित अप्सरा हो और इस मर्त्यलोक भूलोक में विचरण कर रही हो ! गर्वित का मन भी उस से बात करने का होता ही था किन्तु बात कैसे शुरू करे समझ नहीं पा रहा था ! वो तो ना किसी की तरफ देखती थी और ना ही किसी से बात करती थी बस चुपचाप आती और अपनी बस आते ही चली जाती थी उसमें ! क्या करती थी कहाँ जाती थी कुछ मालूम नहीं ! बस इसी तरह के ख़याल उसके मन में आते,विचलित करते और दिन भर के लिए गर्वित के मन में घर कर लेते थे ! लगभग यही नित्यकर्म था उसका ! बहुत चाहते हुए भी उसकी कभी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि आगे होकर उस से बात क्र ले ! कमान की तरह तनी हुयी भौंहें, बड़ी बड़ी सुरमई आँखें जिनमें ख़ामोशी तो नज़र आती थी किन्तु वाचाल भी कम न लगती थी वहीं गालों में पड़ते डिंपल तो माशाअल्लाह क़यामत ढहाते थे ! वो सोच रहा था कि भगवान ने उसे बहुत ही फुरसत से बनाया है, गर्वित लेखक तो नहीं था लेकिन उसके मासूम मन ने एक कविता कह डाली ----

देखकर तुमको

उद्वेलित हो जाता है

व्यथित हो उठता है मन

कौन जनम का मौन रिश्ता है

तुम ही कहो हे रूपसी

तुम कौन हो !

रूप, रस, रंग, गंध मकरंद

उर में उल्लास

अंग अंग में मादकता

और बांहों में मधुमास लिए

तुम ही कहो

हे रूपसी तुम कौन हो !

तभी अचानक एक आवाज़ ने उसे चौंका दिया

- ये मिस्टर यूँ टुकर टुकर क्या देख रहे हो

- नहीं वो देख रहा था

-क्या देख रहे थे

-वो आपने आँखों में काजल लगाया है ना

-नहीं लिपस्टिक लगायी कोई दिक्कत है तुम्हें

- जी जी वो जी नहीं आपकी आँखें

-क्यों क्या हुआ मेरी आँखों को

- जी कुछ नहीं

और तभी बस आ गयी वो अपनी बस में चढ़ कर चली गयी थी, गर्वित अवाक् सा उसे जाते देखता रहा, उसे क्या बल्कि वो जाती हुयी बस को देखता रहा ! इसी चक्कर में उसकी बस भी निकल गयी थी सभी लोग जा चुके थे केवल वो अकेला ही बस स्टैण्ड पर खड़ा सोच रहा था-

- क्या लड़की है यार एकदम शोला, बॉस आग बरसाती है आग लेकिन है गज़ब की खूबसूरत !

अगले दिन वो फिर उसी तरह से बस स्टैंड पर आयी लेकिन आज गर्वित की उसे देखने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी फिर भी ये दिल कहाँ मानता है सो कनखियों से उसे देख ही लिया वो उसी की तरफ देख रही थी लेकिन एकदम शांत, गर्वित ने झट से आँखें चुरा ली, तभी वो बोली-

- यूँ कनखियों से वो देखते हैं जिनके मन में डर होता या फिर मन में चोर, अब तुम बताओ तुम डर रहे हो या मन में चोर है

- जी वो ....... अब क्या बताऊँ आपको.... कुछ बोलूंगा तो आप फिर से झिड़क देगीं, इसलिए बस चुप रहना ही ठीक है!

- क्यों आज आँखों में काजल नहीं दिखा क्या ?

- जी आयी ऍम सॉरी

- क्यों किस बात की

- जी वो कल

- कल क्या

- जी वो कल काजल सचमुच ही लिपस्टिक बन गया था एकदम सुर्ख, आज न मुझे काजल दिख रह है और न ही लिपस्टिक बस एम् सॉरी

- क्या.....

- जी वन्स अगेन सॉरी

- किस बात के लिए

- जी वो कल आपको पूछ लिया था ना उसके लिए

-अच्छा तो डर गए मियां, डरपोक कहीं के

-जी

- जी नहीं, हिम्मते मर्दा मददे ख़ुदा समझे मिस्टर...

- जी

- अच्छा ये बताओ कल कौन सी कविता बड़बड़ा रहे थे मुझे देखकर, क्या बोल रहे थे जरा बताओ तो

- जी मै कोई कविता नहीं जानता हूँ

- अच्छा तो कल क्या बोल रहे थे बताते हो या...

- जी वो कुछ नहीं

- देखो जो मन में हो वो कह देना चाहिए! मन में रखोगे तो नींद और चैन दोनों खो जायेंगे समझे, इसलिए जो सच उसको कहने की हिम्मत होनी चाहिए, वैसे भी बेबाकी से सच बोलने वाले लोग मुझे बहुत पसंद आते हैं

- जी

-तो फिर क्या बड़बड़ा रहे थे

-जी बड़बड़ा तो नहीं रहा था बस न जाने क्यों एक कविता सी बन रही थी

- ओह तो कवि हो

-जी नहीं

- तो फिर कविता

- सच तो ये है मोहतरमा आपको देखने के बाद ना जाने कैसे अपने आप ही जुबाँ पर आ गयी थी

- ओह तो जरा सुनाईये ना

-- छोड़ देवलोक को

धरा पे तुम उतर आई हो

वन उपवन को पुलकित करने वालो

क्या कामदेव की सहचरी हो

तुम ही कहो हे रूपसी तुम कौन हो

- अरे वाह! क्या बात है--- लगता तो है आप कवि ही हैं

व दोनों यूँ ही बात कर रहे थे बेखबर से उनकी बसें आयी और चली गयी वो दोनों यूँ ही बस स्टॉप पर खड़े बातें करते रहे !

-वैसे आपका नाम क्या है इतनी बातें कर ली और देखो न मेरी बेवकूफी आपका नाम तक नहीं पूछ पाया !

- आप ही क्या मैं भी नहीं पूछ पायी,चलो पहले मैं बताती हूँ मैं - उर्वशी हूँ

- ओह जो उर को वश में कर ल वो उर्वशी, इन्द्र की अप्सरा हैं आप

- जी नहीं मैं कोई अप्सरा नहीं हूँ और न ही........

-जी नहीं ! आप बहुत ही सुन्दर हैं

-सचमुच

- जी हाँ

- आपने अपना नाम नहीं बताया

- ओह सॉरी, जी मेरा नाम गर्वित है

- ओह गर्वित,... ग्रेट.. सो क्यूट ना, आई लिखे दिस नेम

- मन उमंग भरा

नयन पुलकित

मैं उर्वशी

और तुम हो गर्वित

- अरे आप तो कविता कह रही हैं

- जी नहीं ये तो सांगत का असर है

- कुछ और सुनाओ ना

- मैं कोई कवयित्री नहीं हूँ बस जो मन में आया वो कह दिया, तुम कुछ सुनाओ ना

- तुम करते बात साधारण मनुज की

देवपुरुष तुम पर मोहित हो जाएँ

रूप का अथाह सागर हो तुम

सुंदरता तेरी दासी

यौवन की सखी हो तुम

रति की प्रतिकृति सी

पुष्पधनुर्धर जब चलाये

आम्रकुंजों से तीर पुष्पों के

प्रेम विव्हल हो जाता हर कोई

पर तेरे नयन बाण से

आज घायल हुआ कामदेव

वही पुष्पधनुर्धर !

- तुम तो सचमुच कवि हो और जादूगर भी

और बस दोनों ही इसी तरह बातें करने में मशगूल अपने अपने दफ्तर नहीं जा पाए! दोनों ही आँखों में नए नए सपने ले अपने अपने घर चले गए! इसी बीच कुछ ही दिन के बाद गर्वित का तबादला हो गया दूसरे शहर में! आज वो बेचैन था उर्वशी से मिलकर यह बात कहने को लेकिन वो आज नहीं आयी थी ! न गर्वित के पा उसका मोबाइल नंबर था और ना ही घर का पता मालूम था ! उदास मन से वो बस में चढ़ा बैरंग चिट्ठी सा अपन गंतव्य को! कई दिन यूँ ह गुजर गए ना वो मिल पायी और गर्वित, वो तो एकदम उदास बस उसी के ख़यालों में गुम---


--- वो आयी मेरे टूटे झोंपड़े में

ताज़ी हवा के एक झोंके तरह

मेरे अंतस के तिनके तिनके को हिला दिया

ऊषा की लालिमा लिए गलों पर

होंठों पर गुलाब की मुस्कान

कुंचित केश, कनक कामिनी

घायल मैं, उसके नयन छोड़े प्रेम बाण

चुरा कर संध्या सुंदरी का रूप

ओढ़ लिया अपने तन पर

बनकर रजनीगंधा, महका दी रातें मेरी

ऐसा यौवन

मुझको कहीं और असंभव लगता है !


आज अचानक ही उसे वो फिर नज़र आ गयी थी, गर्वित तो जैसे उछाल ही पड़ा था! बस यूँ कहिए की मुर्दे में जान आ गयी थी!

- ओह उर्वशी कहाँ चली गयी थी तुम?

- गर्वित मैं अपने गांव गयी थी, आज बड़ी मुश्किल स आ पायी हूँ तुम्हें यह बताने कि मेरा इंतज़ार मत करना

- अरे ये तो बताओ कि हुआ क्या है

- गर्वित मेरी बात ध्यान से सुनो

यर सच है कि हमारी मुलाक़ात बहुत ज्यादा पुरानी नहीं है, लेकिन इतने से दिनों में ही मैं तुम्हें बेहद पसंद करने लगी हूँ बल्कि सच तो ये है कि चाहने लगी हूँ हाँ ये भी जानती हम की तुम भी मुझे बेहद प्यार करने लगे हो लेकिन......

- लेकिन क्या उर्वशी

- लेकिन यही कि मेरी शादी हो चुकी है, मैं तुम्हें भुलावे में नहीं रखना चाहती हूँ! मुझे अचानक ही गांव बुलाया गया था मुझे नहीं मालूम था कि वहां क्या चल रहा था जैसे ही मैं गाँव पहुंची बस चट मँगनी पट ब्याह ! मैं जब तक कुछ समझ पाती और रियेक्ट करती बहुत देर हो चुकी थी, न मैं बान बैठी ना हल्दी लगी बस, यूँ समझ लो कि मैं ब्याह दी गयी ! मैं अभी तक नहीं समझ पा रही हूँ कि इस शादी पर मुझे खुश होना चाहिए या दुखी ! कुछ मालूम नहीं हाँ बस तुम्हारे से मिलकर ये बताने की इच्छा ज़रूर थी, इसलिए सबसे झूठ बोलकर तुमसे मिलने आयी हूँ! एंड रेमेम्बेर आई लव यू !

- ओह उर्वशी यू आर सो लवली, कोई बात नहीं उर्वशी मेरी दुआ है कि तुम जहाँ भी रहो हमेशा खुश रहो

और वो बिना कुछ बोले ही सुस्त क़दमों से चुपचाप चला गया, उर्वशी का मन कर रहा था कि आगे बढ़ कर उसे रोक ले लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई केवल आंसू बहाती रही बड़ी देर तक और लौट गयी ..... !



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