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Rekha gupta

Abstract

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Rekha gupta

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लघुकथा-दरवाजा

लघुकथा-दरवाजा

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याद रखना, जिस दिन तुमने मुझ पर हाथ उठाया, उसी वक्त मैं ये घर छोड़ दूंगी और फिर कभी इस घर के दरवाजे पर पैर नहीं रखूंगी। मुझे भी आत्मसम्मान से जीने का पूरा हक है।

सुमन ने ये बात संजय को शादी के कुछ दिनों बाद ही बता दी थी।

उस दिन माँ और पत्नी में कुछ कहासुनी हुई, माँ ने संजय से शिकायत की। संजय अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख सका, और शादी के तीस साल बाद उसका हाथ सुमन के ऊपर उठ गया।

सुमन बर्दाश्त नहीं कर पाई और रात ढाई बजे उसे दिल का दौरा पड़ गया और वो हमेशा के लिए उस घर के दरवाजे से तो क्या, दुनिया के दरवाजे से बाहर चली गई।

संजय के हाथ लगा मात्र पछतावा, तीस साल पहले कहे सुमन के शब्द, और अपने थप्पड़ की आवाज उसके कानों में गूंज रहीं थी।


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