जीवन की सांझ
जीवन की सांझ
मधु अपनी आदत अनुसार सुबह जल्दी उठकर घर के कामों में लग जाती थी। रसोई के काम करना, बाहर का चबूतरा धोना, पौधों में पानी डालना आदि सभी काम अपने आप करती थी। मधु को अस्थमा की बीमारी है। ठंड में उसकी सांस उखड़ने लगती है। आज भी मधु अपने रोजमर्रा के काम कर रही थी कि तभी उसका पति अशोक बाहर आता है और बड़े प्यार से कहता है अरे! मधु तुम्हें कितनी बार कहा है कि तुम पानी का काम मत किया करो। तुम्हारी तबीयत ख़राब हो जाती है। तुम आज फिर सुबह-सुबह पानी के काम करने लगीं। तुम्हें अस्थमा है फिर तुम्हारी सांस उखड़ने लगेगी। ये सब काम तो मैं भी कर सकता हूं। तभी मधु बोल पड़ती है। हाँ अब बहत्तर साल की उम्र में तुम यह सब काम करोगे।
अशोक कहता है कि हमारे तीनों बच्चे तो विदेशों में जाकर बस गए हैं। अब हम बुड्ढे बुढ़िया ही एक दूसरे का सहारा हैं। काम तो करना ही पड़ेगा चाहे तुम करो या मैं करूं। हमें अपने बच्चों से तो किसी भी तरह के सहयोग की उम्मीद है नहीं। हमने तो उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपना फर्ज पूरा कर दिया। अब जीवन की इस सांझ में उनकी बारी है। पर वे सब अपने सुख में डूबे हैं। कभी कभी फोन कर लेते हैं। हमारे लिया इतना ही बहुत है। अचानक मधु को अस्थमा का अटैक आ जाता है। वह खांसते हुए कहती है सुनो जी सच बताऊं ! अब तो ऐसा लगता है इन सांसों से मुक्ति का समय आ गया है। जीवन की सांझ ढलने लगी है। पर बच्चों को हमारी कोई सुध नहीं है। तुम्हें तो बच्चों को बाहर भेजना था। हमारे देश में क्या नहीं है। क्यों हम सब अपने बच्चों को बाहर भेजकर अपाहिज बनना चाहते हैं। देखते देखते मधु की पलकें बंद होने लगीं और वह अपने बच्चों को याद करते हुए धरती पर गिर पड़ी।
अब निर्णय आपके हाथ में है देश या विदेश।