STORYMIRROR

Rekha gupta

Others

3  

Rekha gupta

Others

अंतिम इच्छा (लघुकथा)

अंतिम इच्छा (लघुकथा)

3 mins
223

शिखा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। माता-पिता उसे प्यार से गुड़िया कहते थे। वह दोनों की ही बहुत लाड़ली थी। माता-पिता ने उसे बहुत संस्कारी और समझदार बनाया था। बड़े धूम-धाम से बहुत अच्छे घर में उसकी शादी की थी। उसका पति और परिवार भी बहुत अच्छा था। 

शादी के चार साल बाद ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण माँ उसके साथ रहने लगी। शिखा अपनी माँ के बहुत करीब थी। दोनों में मित्रवत स्नेह था। वे अपनी हर बात एक दूसरे को बताती थीं। माँ सारे दिन भजन गुनगुनाती रहती थी। शिखा को माँ के भजन बहुत अच्छे लगते थे। माँ की इच्छा थी कि अंतिम समय उनके मुंह से भगवान का नाम ही निकले। ईश्वर में उनकी अटूट आस्था थी। एक दिन अचानक माँ का ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ जाने के कारण उनके आधे शरीर के हिस्से में लकवा मार गया। उनकी आवाज़ भी चली गई। शिखा ने बहुत इलाज करवाया किन्तु उनकी सेहत में कुछ फर्क नहीं पड़ा। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर लिए थे।

माँ दिनोंदिन बहुत कमजोर होती जा रहीं थीं। शिखा तो एकदम शांत सी हो गई थी। किसी से कोई बात नहीं करती थी। बस चुपचाप एक कोने में बैठी माँ के विषय में सोचती रहती थी। उससे माँ की ये हालत देखी नहीं जा रही थी। वह माँ के मुंह से अपना नाम सुनने को तरस रही थी। वह माँ के पास बैठकर कहती माँ अपनी गुड़िया को आवाज़ दो। माँ मुझे डांटो। तुम भजन सुनाओ माँ ! माँ बोलने की बहुत कोशिश करती पर आवाज़ न निकलने पर जोर-जोर से रोने लगती थी। शिखा भी रोने लगती थी। 

वो सबसे कहती थी कि अंतिम सांस से पहले माँ मुझसे बात करें और मुझे आशीर्वाद देकर जाएं। शिखा माँ को दिन भर "हरि-ओम" बोलने के लिए प्रेरित करती। जिससे माँ की अंतिम इच्छा पूरी हो सके। दो महीने हो गये थे। शिखा का ज्यादातर समय माँ के आसपास ही बीतता था। वह उनको भजन सुनाती। उनसे ढेरों बातें करती। उसे पूर्ण विश्वास था कि वह एक दिन माँ की आवाज़ फिर से सुन पाएगी। एक दिन शिखा माँ के सिरहाने सिर नीचे किए हुए बैठी थी। माँ के विचारों में डूबी होने के कारण उसको झपकी सी आ गई थी। तभी अचानक उसे अपने सिर पर माँ के हाथ का स्पर्श महसूस हुआ। वह हड़बड़ाकर सिर ऊपर करती है। तो माँ का हाथ अपने सिर पर पाती है। जिस माँ का हाथ हिलता तक नहीं था। वही माँ उसे हाथ उठाकर आशीर्वाद दे रही थी। माँ ने दो बार तुतलाते हुए "हरि ओम" शब्द बोला और अंतिम सांस ली। अपने मन की चाह को पूर्ण होता देख शिखा खुशी और ग़म के मिश्रित आँसुओं के साथ बस माँ को प्यार किए जा रही थी। माँ की अंतिम इच्छा भी पूरी हो गई थी। 

कहते हैं अगर इच्छा शक्ति प्रबल है तो पत्थर से भी पानी निकाला जा सकता है। 



Rate this content
Log in