लड़कों का दर्द
लड़कों का दर्द
आदतन छोटे भाई 'अनुज' को अकसर बिना उसकी पूरी बात सुने ही डाँट देती - "क्या बात-बात पर रोने लगते हो। लड़के कहीं रोते हैं।"
हर दिन उसके साथ ऐसा ही होता उसकी बात सुने बिना ही डाँट पड़ती - लड़का हो कर रोते हो। फलस्वरूप उसकी आदत हो गई अपने दर्द को छुपा लेने की। जैसे जैसे वो बड़ा हुआ मैंने महसूस किया कि वो कुछ छुपा रहा है। लाख तरह से पूछो पर कुछ कहता नहीं। शायद उसे लड़का होने का एहसास हो चुका था। फल ये हुआ कि वो अपनी छोटी-छोटी बीमारी भी किसी को नहीं बताता। बीमार पड़ता तो चुपचाप सोया रहता। यदि कोई उसके पास जाता या उसका सर सहलाता तो कह देता, नहीं मुझे चुपचाप सोने दो। ये सब अच्छा नहीं लगता। माँ के साथ हम सब भाई-बहन यही सोचने लगे कि बीमार पड़ने पर उसे अकेला शांत रहना अच्छा लगता है।
धीरे-धीरे वो अपनी दुनिया में मगन रहने लगा। किसी ने इसे गलत नहीं समझा सबको लगा हर आदमी का स्वभाव अलग-अलग है। वो लड़का है इसलिए अपना दर्द छुपाता है। इस बात का एहसास तो तब हुआ जब बड़े भैया को पाईल्स की शिकायत हुई और उन्हें डॉक्टर के यहाँ माँ लेकर गई। डॉक्टर के यहाँ से आने पर आदतन वो किसी से पूछा ही नहीं कि डॉक्टर के यहाँ भैया क्यों गए थे। उसने सोचा भैया माँ को दिखाने गए हैं। अतः जब माँ भैया को आराम करने कह के डॉक्टर के कथनानुसार भैया के लिए हल्का खाना बनाने आई तो वो माँ पर नाराज हो गया कि, तुम्हें आराम करना चाहिए तुम किचेन में क्यों आई हो।
तब उसे भैया की बीमारी के बारे में पता चला। कुछ देर चुप रहा फिर बोल पड़ा, ये कौन सी बड़ी बात है ऐसा तो मुझे अकसर होता है।
तुमने कभी कहा क्यों नहीं पूछने पर एक ही जवाब-"लड़की हैं क्या जो छोटी-छोटी बात से परेशान हो रोने लगे। हो गया तो हो गया। अपने आप ठीक हो जाएगा।"
उसकी इस बात पर उस दिन पूरा परिवार चिंतित हो गया। हम सभी अपने-अपने ढंग से उसे समझाए कि इन सभी बातों को इस तरह से नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। ये कभी भयावह रूप भी ले सकता है। मगर उसकी तो एक ही रट थी, लड़को को छोटी-छोटी बात से फर्क नहीं पड़ता।
उस दिन वर्षों बाद जब मैंने उसे रोते देखा तो आदतन अचानक मुख से निकल पड़ा, 'लड़का हो कर रोते हो..?'
उस वक्त वो विफर पड़ा -"हाँ..मैं लड़का होकर रो रहा हूँ। आज पता चला लड़का हो, लड़का हो बात पर कह दिया जाता है और लड़के गौरवान्वित हो चल देते हैं अपना दर्द बिना किसी को बताए उसका फल क्या होता है।"
“तुमको पता है मेरा मित्र रोहण को आज डेंगू हो गया है और वो जीवन मौत के बीच झूल रहा है। किसी वक्त भी उसके जीवन की डोर टूट सकती है सिर्फ इसलिए कि बुखार होने पर वह सोचता रहा -'अरे मैं लड़का हूँ, मुझमें इतनी ताकत है कि हर तकलीफ मैं झेल लूँगा ये तो हल्का बुखार है।’ बुखार बढ़ता गया उसने किसी को नहीं कहा। जब कमजोरी से गिर पड़ा तब उसके रूम मेट को उसकी बीमारी का एहसास हुआ और वो उसे अस्पताल ले गया। फिर हमलोगों को तथा उसके घर खबर किया।”
"मगर उसने ऐसा क्यों किया उसे किसी को बताना चाहिए था।"
“उसने ये सोच कर नहीं बताया कि यदि अपनी तकलीफ किसी से भी कहेगा तो वो खबर उसके घर पहुँच जाएगी और उसके मम्मी-पापा नाहक परेशान हो जाएँगे। उसकी मम्मी खुद बीमार रहती है, वो उन लोगों को और परेशान करना नहीं चाहता, इसलिए वो कभी भी अपनी परेशानी किसी को नहीं बताता। अब तो बहुत देर हो चुकी है। वो शायद ही हम लोगों के बीच वापस आ पाए,” कहते कहते अनुज सिसक कर रो पड़ा।
मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया, मेरे नयन भी टपकने लगे। बिना कुछ कहे मैंने उसे अपने सीने से लगा लिया। मन तड़प-तड़प कर कह रहा था लड़कों को भी दर्द होता है काश कोई समझ पाता…