लाइफ इज सिंपल
लाइफ इज सिंपल
सिर्फ़ मैं और सिर्फ़ तुम…किसी कहानी या कविता की लाइन…
हक़ीक़तन तुम्हारे साथ जब भी मैं होता हूँ क्या मैं सिर्फ़ मैं रह पाता हूँ? क्या मेरे साथ तुम सिर्फ़ तुम रह पाती हो?
शायद नहीं…शायद नहीं…
सिर्फ़ तुम और सिर्फ़ मैं वाली यह बात एक अलग किस्म का जादू क्रिएट करती हैं…
वही लैला मजनूँ वाला जादू…
लेकिन यह सब तो पुरानी बातें हो गई हैं…
क्या आजकल वैसा वाला इश्क़, मोहब्बत, प्रेम, प्यार सब ख़त्म हो गया हैं?
क्या ग्लोबल वार्मिंग के कारण या फिर कार्बन ऐमिशन के कारण?
शायद मिथेन गैस की बढ़ती मात्रा के कारण?
डे बाय डे कटते जंगल भी एक कारण हो सकता हैं या फिर एसी के बढ़ते यूज के कारण?
हो सकता हैं की चैट जीपीटी भी शायद कार्बन फुट प्रिंट बढ़ा रहा हैं…
ग्लोबल वार्मिंग का इश्क़ मोहब्बत से क्या लेना देना? ये डेटा एनालिसिस्ट भी शायद ज़्यादा काम से एग्जॉस्ट से हो गये हैं…
अरे, ये कवि भी साइंटिस्ट जैसे ही बहक गया हैं…
साइंटिस्ट कहते हैं ये इश्क़ मोहब्बत तो दिमागी लोचा होता हैं…
केमिकल लोचा…
अब बेचारे वे लैला मजनूँ, शीरी फरहाद, हीर रांझा तो ऐसे ही थे…
दिमाग़ के केमिकल लोचा वाले…
नाहक ही लोगों ने उनकी मिसालें देना शुरू किया…
क्या करें अब?
ये आज कल की जनरेशन क्या जाने लैला मजनूँ के प्यार को?
वे हँसने लगते हैं सुन कर की मजनूँ ने लैला के प्यार में लोगों से पत्थर खाये थे…
उनकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं लेती हैं जब वह शीरी फरहाद की कहानी सुनते हैं…
फेस बुक, इंस्टा, टिंडर वाली ये जनरेशन अपने आप में मस्त रहती हैं…आज ये तो कल वो…
माय बॉडी माय लाइफ़ के प्रिंसिपल को माननेवाली जनरेशन…
सेल्फ सेंटर्ड जनरेशन…
नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड वाली जनरेशन…
बेपरवाही से जीनेवाली जनरेशन…
उनको क्या किसी की ज़रूरत?
टेक इट ईजी इन द एरा ऑफ़ स्विगी, ज़ोमैटो, ब्लिंकिट, फ्लिपकार्ट, अमेझोन और लिशियस…
बी कूल ड्यूड…लाइफ इज सिंपल..जस्ट एंजॉय…
