Sarita Maurya

Comedy

4.5  

Sarita Maurya

Comedy

कटी नाक कटी

कटी नाक कटी

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367


किसी गांव में दो भाई रहा करते थे। बड़े भाई का नाम था कटी और छोटे भाई का नाम था नाकटी। कटी, नाकटी दोनों भाई एक दूसरे पर जान छिड़कते थे। बस एक ही फर्क था कि बड़ा भाई जितना सीधा था तो छोटा भाई उतना ही शैतान। कभी-कभी तो यूं लगता मानो छोटे भाई ने हर जगह बड़े भाई की जिम्मेदारी उठा रखी हो। बड़े भाई की समस्यायें यूं चुटकियों में हल हो जातीं कि जैसे कोई समस्या ही न हो। यूं ही दोनों बड़े हो रहे थे कि गांव और आसपास के इलाकों में पानी की कमी हो गई। बारिश नहीं होने के कारण हर घर से एक या अधिक सदस्य दूसरी जगहों पर रोजगार की खोज में पलायन कर रहे थे। उन दोनों भाइयों ने भी रोजगार की तलाश में बाहर जाने की सोची। ऐसे में बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा ‘ मैं बाहर जा रहा हूं और तुम्हारे लिये कमाई करके लाऊंगा’ तुम कहीं बाहर मत जाना मेरी प्रतीक्षा करना। कहीं जाना मत क्योंकि मैं तुम्हें रोते भी नहीं देख सकता और खो भी नहीं सकता लेकिन साथ भी नहीं ले जा सकता क्योंकि तुम परेशान हो जाओगे। अगर मुझे किसी लालासेठ के घर पर अच्छा काम मिल जायेगा तो तुम्हें ले जाऊंगा’। छोटा नाकटी बोला -ठीक है भैया हम कहूं न जइबै, घर मां तुम्हार रस्ता देखबै’। कटी गांव-गांव काम की खोज कर रहा था। रोजगार के चक्कर में वह एक बड़े नगर में पहुंच गया और आवाज लगाने लगा, ‘‘मजदूर लेलो मजदूर, मजदूर लेलो...’ जिस गली में कटी आवाज लगा रहा था उसी गली में एक लालसेठ रहता था। लालासेठ बड़ा ही मक्खीचूस, कांइयां और गुस्सैल था। चमड़ी चली जाये पर दमड़ी न जाये वाली कहावत उसपर पूरी सही उतरती थी। उसने अपनी सेठानी पत्नी से मशवरा किया और कटी को आवाज लगाई, अरे मजदूर भाई हिंया आय जाओ हमको मजदूर चाही तुमको मजदूरी’। सेठानी बोलीं तुम्हारे साथ कोई टिकता तो है नहीं फिर भी बात कर लो, हां ये मजदूर खाना बहुत ज्यादा खाते हैं तो मुझसे खाना-वाना नहीं बनेगा। उसका इंतजाम पहले से बातचीत करके कर लेना। लालासेठ ने कहा ठीक है भागवान तू तो चैन से रह मैं तेरे काम हल्के करने की जुगत ही तो लगा रहा हूं। तो बताओ क्या-क्या काम आता है? लालासेठ कटी से मुखातिब हुआ। सीधेसादे कटी ने मजदूरी की आशा में बताया कि उसे खेत जोतने से लेकर बच्चों की देखभाल तक सारे काम आते थे।हम्म... लाला ने चतुराई से शर्त जोड़ी देखो भाई कटी क्योंकि मेरे घर में मजदूरों को आराम बहुत रहता है और उनपर कोई ध्यान देता नहीं इसलिये वे आराम के आदी हो जाते हैं और फिर कामचोरी करते हैं जब उन्हें काम के लिए कहा जाता है तो वे इधर-उधर के बहाने बनाते हैं और फिर भाग जाते हैं। इस नाते मेरी पहली शर्त है कि तुम बिना बताये घर से कहीं नहीं जाओगे, दूसरी शर्त मैं जितना कहूंगा उसका अक्षरशः पालन करोगे, और तीसरी सबसे अहम शर्त यदि मैंने तुम्हें नौकरी छोड़ने के लिए कहा तो तुम मेरे नाक-कान काट लेना और यदि तुम पहले नौकरी छोड़कर जाओगे तो मैं तुम्हारे नाक-कान काट लूंगा। चूंकि कटी को नौकरी चाहिये थी, उसके गांव में अकाल पड़ा था तो उसने सोचा लाला जी कहावत कह रहे होंगे कोई किसी के सच में नाक-कान थोड़े ही काटता है। लालासेठ ने अगला सवाल दागा ‘भई कटी, अब खाने पीने की बात हो जाये, तो ये बताओ कि खांड़ा टूका रोटी चाहिये कि पातभर भात? कटी ने सोचा कि टूका भर रोटी में तो उसका कुछ भला नहीं होने वाला था तो क्यों न पातभर भात मांग लिया जाये। उनदिनों गांव की शुद्ध परंपरा के अनुसार अधिकतर लोग महुआ, छूल, पुरैल इत्यादि के पत्तलों में भोजन किया करते थे। इस तरह कटी ने पातभर भात की मांग रखी और बाकी शर्तों पर अपनी सहमति देदी। शर्तों पर सहमति मिलते ही कांइयां लालासेठ ने कटी को काम पर लगा दिया और बोला देखो कटी-कामचोरी न करना अब तुम खेत पर हलबैल लेकर जाओ और सुबह का सूरज निकलने से पहले खेत जुताई शुरू कर देना और चांद के जाने के बाद अपना काम बंद करना। कटी काम मिलने से बहुत खुश था वह खेतों की तरफ हलबैल लेकर चल दिया। 

सुबह का सूरज निकलने से पहले कटी ने खेत की जुताई शुरू कर दी। दोपहर की तपती धूप उसे परेशान कर रही थी लेकिन लालासेठ के डर से वह रूका नहीं। यहां तक कि शाम हो गई देखा तो आसमान में चांद चमक रहा था अब वह चांद के जाने का रास्ता देखने लगा। पर चांद तो कहीं गया नहीं। वह खेत में हल चलाता और चांद की तरफ टुकुर-टुकुर देखते हुए मिन्नत करता कि चांद कहीं चला जाये ताकि वह काम रोक सके। आखिरकार कटी थक कर जमीन पर गिर पड़ा। किसी तरह उठ कर घर पहुंचा तो लालासेठ से खाना मांगा उसे लगा चलो चौबीस घंटे बाद ही सही भरपेट खाना तो मिलेगा। लेकिन कटी की आंखें फटी रह गईं जब उसने देखा कि लालासेठ ने उसे इमली के पत्ते पर एक चावल का सीथ अर्थात भात का टुकड़ा रखकर दिया था। कटी ने लाला से सवाल किया-लालासेठ बात तो पातभर भात की हुई थी? लालासेठ कटी की बात काटते हुए बोला, ‘हां पात भर भात की बात हुई थी तभी तो तुम्हें पात भर भात दिया है, अब काम नहीं करना तो नाक-कान कटवा लो और अपना रास्ता नापो। कटी डर गया। एक सप्ताह के भीतर ही बिना ढंग की रोटी खाये वो लालासेठ से इतना परेशान हुआ कि उसने अपने नाक-कान कटवाने उचित समझे। नाक-कान कटवा कर कटी घर पहुंचा और रोते-रोते अपने छोटे भाई को अपनी आपबीती कह सुनाई। 

छोटे भाई को अपने भाई के अपमान पर बहुत गुस्सा आया और उसने सोचा कि वह लालासेठ से अपने भाई के नाक-कान वापस लाकर रहेगा। ........................

दूसरे दिन नाकटी ने अपने सिरपर बड़ी सी पगड़ी बांधी और चल दिया काम की तलाश में। सीधेसादे बड़े भाई ने उसे बहुत समझाया कि लालसेठ बहुत ही सख्त और उसूलों के पक्के थे लेकिन नाकटी ने कहा भाई उसूलों को बदलना मुझे बड़ा पसंद है फिर भी तुम कहते हो तो मैं वहां नहीं जा रहा लेकिन घर चलाने के लिए काम तो करना पड़ेगा न! कटी ने अपने आशीर्वाद के साथ नाकटी को काम पर जाने की इजाजत देदी। नाकटी ठीक अपने भाई की तरह से आवाज लगाते उसी मुहल्ले में चक्कर लगाने लगे जहां लालासेठ का घर था। लालासेठ ने फिर से मजदूर लेलो की आवाज सुनी तो सोचा ‘चलो दूसरा मुर्गा आ गया, अब इससे घर के काम भी कराने हैं और बाहर के भी। उधर नाकटी गली में चिल्लाये जा रहा था ‘ मजदूर लेलो, बिना पैसे का मजदूर लेलो’! लालासेठ और खुश हुए कि भई मुफ्त का मजदूर मिल रहा है। लालासेठ ने नाकटी को जोर से आवाज लगाई और बोले अरे भाई मजदूर इधर आ जाओ, नाकटी झट से दौड़ा आया। लालासेठ ने उसका मुआयना किया और मन ही मन सोचा कि ये पगड़ीधारी तो ज्यादा बलवान लगता है, एक सप्ताह तो टिक ही जायेगा। उधर नाकटी मन ही मन सोच रहा था लाला एक सप्ताह और तू नहीं या मैं नहीं। यूं लग रहा था मानो मन ही मन शेर बिल्ली को और बिल्ली शेर को चुनौती दे रहे हों। बस लालासेठ की शर्तों में नाकटी ने पातभर भात की मांग दो बार रखी कि उसे सुबहशाम दोनों समय चाहिये होगा। लालासेठ ने भी अपनी चतुराई के अनुसार हां कर दिया ओर सोचा कोई बात नहीं एक की जगह दो इमली के पत्ते और दो सीथ भात।

लालासेठ की खुशी का ठिकाना नहीं था,उसने नाकटी के साथ खाने पीने की सभी पुरानी शर्तें दोहराईं और बोला तो भई नाकटी तेरे नाक और कान मेरे पास गिरवी! नाकटी ने नहले पर दहला मारा ‘लालासेठ तुम हमका आपन भाई बनाय लिये हौ तौ तुमका एक पते की बात बताय देई कि तुमहू आपन नाक कान हमरे पास गिरवी रख दिये हौ, यू न भूल्यो’’। लालासेठ बोला हां-हां चल अब काम पर लग जा और हां खाने में तूने पात भर भात की मांग की है भूलना मत। हां-हां लालासेठ भूलूंगा कैसे मैं तुम्हारी तरह जुबान का एकदम पक्का हूं और जानता हूं कि खाये बिना काम नहीं होता इसीलिये चलो जल्दी से मेरा पातभर भात दे दो बडे जोर की भूख लगी है और कहने के साथ ही नाकटी ने अपने पीछे से केले का बड़ा सा पत्ता निकाल कर फैला दिया। लालासेठ शर्त के मुताबिक कुछ नहीं बोल सकता था क्योंकि पत्ता कौन सा होगा इसपर कोई चर्चा शर्त में नहीं हुई थी, उसने सोचा इससे होशियार रहना पड़ेगा पहले ही दिन नाक कान कटने की बारी आ गई, चलो आज तो सेठानी को किसी तरह मनाता हूं। 

रसोई का सारा भात नाकटी की केले की पत्तल पर था। नाकटी ने भरपेट खाया और बाकी बचा हुआ भात गली में ही साथी बने कुत्ते को प्यार से खिला दिया। लालासेठ और उसका पूरा परिवार नाकटी को टुकुर-टुकुर देख रहे थे। लालासेठ ने गुस्से में लेकिन चेहरे पर प्यार की परत चढ़ाकर नाकटी को आदेश दिया -नाकटी भाई खेत जाओ और गन्ने की निराई करो। लालासेठ से खेत का रास्ता पूछकर नाकटी चल दिया। शाम को जब काफी देर हो गई तो लालासेठ को चिंता हुई कि नाकटी अभी तक निराई करके नहीं आया कहीं डर के मारे भाग तो नहीं गया जाकर खेत पर देखता हूं। 

खेत का नजारा दूर से देखते ही लालासेठ को दिल का दौरा पड़ते-पड़ते बचा क्योंकि गन्ने के खेत में घास तो वैसे ही पड़ी थी लेकिन गन्ना खेत से बाहर पड़ा हुआ था। वह भागता-भागता खेत पर पहुंचा और नाकटी पर जोर से चिल्लाया नाकटी भाई ये तूने क्या किया ये सारा गन्ना क्यों निरा दिया मैंने तो.............वाक्य पूरा होने से पहले नाकटी बोल पड़ा ‘‘बस लालासेठ आपने गन्ने की निराई करने के लिए कहा था मैंने कर दी देख लो बाकी आपकी घास पूरी सुरक्षित है। अब आपको काम पसंद नहीं आया तो बोलो नौकरी से निकालते हो क्या? लालासेठ के होश फाख्ता हो गये। अगर मैंने इसे नौकरी से निकाला तो ये मेरे नाक कान........याद करते ही लालासेठ का तनमन सिहर उठा। लालासेठ ने अपने पर काबू पाया और बोला कोई बात नहीं अब ये गन्ना उठाओ और घर ले जाओ। ‘लालासेठ घर मां गन्ना कहां रखबै? नाकटी ने पूछा। सेठानी से पूछ लेना लाला ने उत्तर दिया। नाकटी ने गन्ने का बड़ा से बोझा बनाया और लालासेठ की मदद से सिर पर लेकर घर पहुंचा और बाहर से जोर से सेठानी को आवाज लगाई! सेठानी जी गन्ना कहां रक्खि देई? सेठानी जी गुस्से में थीं तमतमाती हुई बाहर निकलीं और बोली-‘‘हमरी खोपड़ी पर डार दियो’’। नाकटी ने आवदेखा न ताव झट से गन्ने का बोझ सेठानी की खोपड़ी पर डाल दिया। सेठानी बोझा संभाल नहीं पाईं और भरभराकर गिर पड़ीं। गिरने से उनकी कमर में चोट लगी से अलग! वह दर्द से हाय हाय करने लगी। इतनी देर में लालासेठ लौट आये, सेठानी की दशा देखकर वे नाकटी पर चिल्लाये-नाकटी तूने क्या किया? नाकटी ने मासूमियत से उत्तर दिया लालासेठ नौकरी से भले निकार दियो पर हम तौ वहै करेन, जउन सेठानी जी कहिन रहैं। तौ लालासेठ हमका बिना गलती के निकरिहौ का? लालासेठ के पास कोई उत्तर नहीं था, वह सेठानी को चुपचाप उठाकर भीतर ले गया। इससे पहले कि लालासेठ कुछ सोच पाता नाकटी ने पातभर भात के लिए आवाज लगा दी और साथ में लाया केले का पत्ता बिछा दिया।

रात में लालासेठ ने सेठानी से मशविरा किया। देखो सेठानी ये नाकटिया तौ बहुतै चतुर है, अइसा कीन जाये कि थोड़े दिन के लिए तुमरे मइके भागि चला जाये, ओ जब यहु भूखन मरी तो चला जाई, हम पंच फिर वापस आ जाबै, सेठानी ने हामी भर दी। दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर सेठानी ने खूब अच्छे-अच्छे पकवान बनाये और रास्ते के लिए खाना रख लिया। इतना ही नहीं घर का कीमती सामान उन्होंने दूसरे बक्से में रखा और तेल घी इत्यादि के लिए भी अलग से तैयारी कर ली। लालासेठ और सेठानी ने तय किया कि जब नाकटी सो रहा होगा तो वे चोरी से आधी रात को निकल जायेंगे। नाकटी के सोने के बाद सेठानी और लालासेठ धीरे से उठे एक बक्सा सेठानी ने अपने सिर पर रखा और दो बक्से लालासेठ ने अपने सिर पर। बक्सों में इतना वजन था कि लालासेठ सेठानी पर गुस्साये और वजन कम करने के लिए कहा तो सेठानी ने उन्हें समझाया- अरे दो से तीन दिन का सफर है तो रास्ते में खाने पीने के लिए सामान तो चाहिये, और सुनो किसी कुएं पर ही चलकर रूकेंगे ताकि जहां आराम करने के लिए रूकें वहां पानी मिल जाये। झुटपुटे अंधेरे में सिरपर भारी बक्सों का बोझ लिए लालासेठ और सेठानी घर से निकल गये। 

लालासेठ और सेठानी अपने गांव से कोसों दूर आ चुके थे, नाकटी नाम का खतरा टल चुका था, वैसे भी आठ-दस कोस लगातार चलने के कारण वो लोग काफी थक चुके थे अतः आराम करने की सोची। एक गांव के किनारे कुआं देखकर दोनों लोगों ने वहीं विश्राम करने के लिए सलाह की और अपना बक्सा नीचे रखकर सेठानी जी ने लालासेठ का बक्सा नीचे रखने में मदद करने के लिए हाथ बढ़ाये! तभी बड़े बक्से से आवाज आई -‘‘लालासेठ पटक न दिहौ बक्सा धीरे उतारो धीरे धरो’’। सेठानी की तो लगभग चीख निकल गई। हैरान परेशान लालासेठ ने बक्सा नीचे पटका तो नाकटी हाथ में चाकू लिये बाहर आ गया। ‘‘देखो लालासेठ, तुम हमको भाई कहे रहे, अब भाई जैसे नौकर को तुम बिना बताये ससुराल भाग रहे हो गलत बात है, अउर जाय का है तो आपन शर्त पूरी करौ, लाओ नाक कान’’। लालासेठ को काटो तो खून नहीं था, उन्होंने नाकटी से दोबारा नहीं भागने की कसम ली और नाकटी से माफी मांगते हुए अपने नाक कान बख्श देने की गुहार लगाई।

नाकटी ने लालासेठ से कहा कि वह उन्हें माफ कर देगा लेकिन उन्हें उसे भी अपनी ससुराल लेकर जाना पड़ेगा। मरता क्या नहीं करता! लालासेठ राजी हो गये। नाकटी आराम से आश्वस्त होकर टहलने चला गया और इधर लालासेठ ने गुस्से में भरकर सेठानी के साथ नई योजना बनाते हुए कहा -देखो सेठानी आज रात हिंयई रूका जाय, अउर रात में या नाकटिया को कुइयां के पाट की तरफ सुलाया जाय, हम रात मां उठके धीमे से तुमसे कहबै कि ‘‘धक्का दई द्यो, धक्का दइ द्यो’’ और तुम मेरे साथ मिलकर इसको कुइयां में धक्का दई देना, फिर हम दोनो भागि चलब अउर इनकी स्वाहा। शाम का खाना लालासेठ ने नाकटी को बड़े प्यार से खिलाया, नाकटी भी घूमकर लौटते समय केले का पत्ता ले आया था तो वह तीन जनों का भोजन अकेले ही डकार गया। अब अपने सिर से पगड़ी उतारी और उसे बिछा कर कुएं की जगत पर चैन से सो गया और साथ ही सेठानी और लालासेठ भी लेट गये। थके होने के कारण लालासेठ को गहरी नींद आ गई। आधी रात को अचानक आधी नींद खुली तो बड़बड़ाये, ‘धक्का दई द्यो, धक्का दई द्यो, अगले ही पल लालासेठ की पूरी नींद सेठानी की हाय-हाय और बचाओ-बचाओ की आवाज से टूट गई। वे हकबका कर उठे तो चिल्ला पड़े - अरे नाकटी तूने ये क्या गजब किया सेठानी को कुएं में क्यों धक्का दे दिया? तबतक वहां भारी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी और नाकटी जोर-जोर से रोकर लालासेठ के पैर पकड़े चिल्ला रहा था, लालासेठ आपको ऐसा नहीं करना चाहिये, अरे कोई आपन पत्नी का कुंआ में धक्का देत है, आप हमसे अइसन पाप काहे करावत हो, अरे जल्दी से रस्सी लाव सेठानी को कुइंया से बाहर निकालो। पूरे गांव में लालासेठ की धज्जियां उड़ रही थीं, लोग बुरा बोल रहे थे कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ कितना बुरा बर्ताव किया। उधर उनकी घायल पत्नी ने आदेश दिया कि अब वे अपने नाक कान नाकटी को दे दें। 

लालासेठ ने अपनी पत्नी से वादा किया कि ससुराल जाकर वे पक्का नाकटी को रवाना कर देंगे क्योंकि उनके पास संदेशा भेजने के लिए दूसरा कोई हरकारा अर्थात संदेशवाहक नहीं था। और प्रथा के अनुसार ससुराल में सीधे जाने की प्रथा नहीं थी बल्कि जंवाई का रूतबा तभी बड़ा माना जाता था जब वो अपने आने का संदेश अपने संदेशवाहकों जैसे नाई से भिजवाये। प्रथा के अनुसार अपनी ससुराल के गांव के किनारे पहुंचकर लालासेठ ने नाकटी से कहा कि वह उनकी ससुराल में जाकर आने की सूचना देदे, और खबरदार वहां यह न बताये कि वह संदेशवाहक अर्थात नाई नहीं था। नाकटी ने लालासेठ की ससुराल पहुंच कर उनके आने की सूचना दी और साथ ही उनके ससुराल पक्ष को खबरदार किया कि लालासेठ को मजाक, आवभगत, एकदम पसंद नहीं थी बड़े सादा और धर्मात्मा इंसान हैं आपके जंवाई अउर आजकल खाने में सिर्फ एक चम्मच बिना घी नमक डाले चावल का मांड पीते हैं, उससे ज्यादा पूछा जायेगा तो वो नाराज हो जायेंगे पर हां उनको जुकाम थोड़ा ज्यादा हो गया है तो चाहते हैं कि सासूमां स्वागत करते समय हाथ से नाक खींचने की बजाय थोड़े गरम चिमटे से उनकी नाक दबा दें, लेकिन चिमटा मैं ही गरम करके दूंगा ताकि सही गरम हो कम या ज्यादा नहीं। ससुराल पक्ष के सब लोग डर गये और किसी ने भी लालासेठ के स्वागत की कोई तैयारी नहीं की। लालासेठ ये देखकर सन्न रह गये कि सेठानी को तो ससुराल वाले पालकी में ले गये लेकिन उन्हें पैदल ही छोड़ गये। यहां तक कि घर पहुंच कर किसी ने उन्हें बैठने तक के लिए नहीं कहा। थोड़ी ही देर में नाकटी के सामने तो पकवानों से सजी थाली रखी हुई थी जबकि उन्हें एक चम्मच चावल का मांड पीने के लिए थाली में सजाकर रख दिया गया था। घी से तर पकवानों के साथ मिठाइयों की खुश्बू ने लालासेठ की भूख को और बढ़ा दिया लेकिन वे शरम के मारे कुछ नहीं कह पाये। अब सासू मां द्वारा स्वागत किये जाने की बारी थी। उन्हें घर के अंदर बुलवाया गया तो घूंघट में से झांकती सासूमां दरवाजे पर उनके स्वागत के लिए चिमटा लिये हाजिर थीं। लालासेठ चूंकि विवाह के बाद पहली बार ससुराल गये थे तो उन्हें लगा कि शायद उनकी नज़र उतारने की कोई रसम अदा होने जा रही थी। उधर सासूमां ने एकदम सटीक निशाना लगाते हुए एक ही बार में लालासेठ की नाक पर नाकटी का गरम किया हुआ चिमटा चप्प से चिपका दिया, लालासेठ अपना स्वागत सत्कार छोड़कर भाग रहे थे, और हैरान परेशान ससुरालवालों को नाकटी समझा रहा था कि उन्होंने ने शायद लालासेठ को ज्यादा नाराज कर दिया था, उन्हें ज्यादा मांड नहीं पिलाना चाहिये था, अब उसे लालासेठ को समझाबुझा कर वापस लाना पड़ेगा। 

लालासेठ आगे-आगे भाग रहे थे और नाकटी उनके पीछे-पीछे! रूक जाओ लालासेठ रूठकर मत जाओ, लालासेठ की ससुराल वाले नाकटी और लालासेठ के पीछे दौड़ रहे थे तो गांववाले उन सबके पीछे कि आखिर मामला क्या था? लाला चिल्लाते जा रहे थे-छोड़ दे मेरे भाई गलती हो गई अब नहीं करूंगा, मान जा मेरे भाई कटी नाक कटी, कटी नाक कटी। 



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