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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

5  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

क्षमा याचना …

क्षमा याचना …

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मैं अपने परिवार एवं अपनी कौम के माने जाने वाले धर्म पर अंध श्रद्धा रखता था। मैं अगर यह श्रद्धा अपने तक सीमित रखता तो शायद इसमें कोई बुराई भी नहीं होती मगर अपनी आस्था के कारण मैं अन्य कौम और उनके धर्म को अपने से हेय और उन्हें धिक्कारे जाने योग्य समझता था। अब मैं सोचता हूँ, मैं यह भी करता था तो इसमें कोई बुराई नहीं थी। 

वास्तव में मैं ऐसे मौहल्ले में रहता था जिसमें सब मेरी ही कौम के थे। उनमें से अधिकांश मेरे तरह सोचते और कहते भी थे। जहाँ मेरी छोटी सी दुकान थी वह इलाका अवश्य अन्य कौमों के व्यक्तियों के बाहुलता वाला था। मेरी दुकान पर आने वाले लोग भी अन्य कौम के ही अधिक थे। यहाँ मेरा दिमाग ठीक चलता था। जिनसे मुझे कमाई मिलती थी और मैं, मेरे परिवार का भरण पोषण कर पाता था, उनके प्रति अपनी वितृष्णा को नहीं कहता था। मैं दुकान पर व्यर्थ विवादों में नहीं पड़ना चाहता था। मेरी रोजी रोटी प्रभावित हो मैं यह खतरा मोल नहीं लेना चाहता था। 

तब एक दिन यह हुआ कि हमारे प्रवर्तक का किसी अन्य कौम वाले व्यक्ति ने अपने वक्तव्य में अपमान कर दिया। इससे हमारे मौहल्ले एवं धर्मस्थान में सभी भड़के हुए थे। मेरा भी इन सबके बीच रहते हुए खून खौल गया था। अगले दिन मैंने अपनी दुकान बंद रखी थी। मैं थोड़ी बहुत चित्रकारी भी जानता था। अपनी भड़की अवस्था में, मैंने गैर कौम के एक इष्ट देव को मजाक बनाती एक तस्वीर बना डाली थी। फिर उसे मैंने अपने धर्मस्थान में ले जाकर, हाथ पैर धोने के स्थान की दीवार पर चिपका दिया था। 

उस दिन, उस तस्वीर को देख कर धर्म स्थान में आने वाले सब व्यक्ति उस देवता की मजाक बनती तस्वीर को देख खुश हो रहे थे। फिर एक व्यक्ति ने उस पर थूक दिया था। देखा देखी दूसरे भी उस पर थूकने लगे थे। पहले तो मेरा मन किया कि मैं बता दूँ कि यह तस्वीर मैंने बनाई है। तभी मुझे लगा कि मैं मन से कुछ कमजोर हो रहा हूँ। मेरा मन कह रहा था जैसे कि मैंने उस देव की अनादर करने वाली हरकत करके अच्छा नहीं किया है। अचानक मुझे लगा जैसे वह देव मुझसे बदला लेने की बात कह रहा है। 

एक तरह से डरा हुआ मैं घर लौटा था। बिना मन से मैंने पत्नी का बनाया खाना खाया था। रात सोने पहुँचा तो मन अशांत था। नित दिन की भाँति पत्नी ने प्रेम की पहल की थी मगर मैंने उसे परे धकेल दिया था। मुझे नींद भी नहीं आई थी। हर समय खूबसूरत लगने वाली मेरी पत्नी अभी मुझे खूबसूरत नहीं लग रही थी। रात बढ़ी तो पत्नी सो चुकी थी मगर मैं जाग रहा था। 

कम वॉट के बल्ब की मद्धम रौशनी में, अब जब में पत्नी को देखता तो मुझे लगता कि पत्नी की शक्ल देव की बनाई मेरी तस्वीर जैसी हो रही थी। देव की तस्वीर पर अन्य सब हँस रहे थे। सब उस पर थूक रहे थे। अपनी पत्नी की ऐसी प्रतीत हो रही शक्ल पर ना तो मुझे हँसी आ रही थी ना ही मैं उस पर थूक पा रहा था, बल्कि पास सोई पत्नी से मुझे डर लगने लगा था। 

मुझे लगा मैं दुःस्वप्न देख रहा हूँ। मैंने अपने गाल पर अपने नाखून गड़ाए थे। इसकी चुभन से मुझे समझ आया कि मैं जाग रहा था और अगर मैं जाग रहा था तो यह दुःस्वप्न कैसे हो सकता था। अब मैं पत्नी की तरफ देखने का साहस भी नहीं कर पा रहा था। डरा हुआ मैं आँखे भींचकर सोने का प्रयास कर रहा था मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी। 

मैं पत्नी से दूर बरामदे में पड़ी खटिया पर जाकर लेटा था। नींद मुझे वहाँ भी नहीं आई थी। पूरी रात मुझे लगता रहा जैसे वह देव कह रहा है - तू मुझे पूजता नहीं इसमें कोई बुराई नहीं थी मगर तूने मेरे अपमान के लिए मेरा चरित्र हनन करने वाली घिनौनी तस्वीर बनाई है। मैं इसका दंड तुझे अवश्य ही दूँगा। 

अगले दिन मैं दुकान पर गया था। तब नींद न होने के कारण मेरे सिर में दर्द और शरीर में शक्ति नहीं रही प्रतीत हो रही थी। दोपहर तक बाजार में हलचल बढ़ी एवं आसपास के लोग उग्र हुए प्रतीत हो रहे थे। मेरी दुकान पर कोई ग्राहक नहीं आया था। मैं क्या बात हुई है यह समझने के लिए पड़ोस की दुकान पर गया था। वहाँ दुकानदार ने मुझे अपने मोबाइल पर एक तस्वीर दिखाई, यह वही देव की तस्वीर थी। जिसपर पान की पीक थूककर किसी ने सोशल साईट पर डाल दिया था। 

वह दुकानदार क्रोध में था। उसने कहा - जिसने यह तस्वीर बनाई है अगर वह मुझे मिल जाए तो मैं उसका गला घोंट दूँगा। 

मैं डर गया था। मैं कैसे कह सकता था कि यह तस्वीर मैंने बनाई है। मैं वापस अपनी दुकान पर आया था। कुछ देर में मेरे मन में डर बढ़कर मुझे बेचैन करने लगा तो मैंने दुकान बंद की और घर की ओर निकल गया था। रास्ते में दूसरी कौम वाले लोग जुलूस निकालकर, तस्वीर बनाने वाले दोषी आदमी को फाँसी देने की माँग कर रहे थे। 

मैं मन ही मन सोच रहा था कि यह अच्छा है, कोई नहीं जानता कि यह तस्वीर मेरी बनाई है। मैं घर पहुँचा था। सामने मेरे बूढ़े पिताजी मिले। उन्होंने पूछा - अज्जू दुकान से जल्दी कैसे आ गए। 

मैं रो पड़ा मैंने पूरी दास्तान उन्हें कह सुनाई। पूछा - पिता जी क्या सचमुच ऐसा कोई देव होता है जो अपने अपमान का बदला लेता है। 

पिताजी ने कहा - मैंने उनका धर्म ना पढ़ा और ना ही जाना है। फिर भी मुझे लगता है जिन बेजान पत्थरों एवं तस्वीरों में करोड़ों की आस्था होती है, उसमें सचमुच ही बड़ी शक्ति आ जाती है। तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था। 

मैंने पूछा - अब प्रायश्चित क्या है?

पिता जी ने कहा - उसी देवता की शरण में जाकर उनके सामने की जमीन पर नाक रगड़ कर क्षमा याचना करके आ जाओ। शायद तुम्हें शांति मिले। 

पिता जी की सुनकर, मैं ऐसा ही करने देवस्थान की तरफ चल पड़ा था। चलते हुए मैं सोच रहा था, मुझे मेरी पत्नी में खूबसूरत पत्नी ही दिखाई दे, देव नहीं। इसके लिए मैं देव के सामने नाक रगड़ कर अवश्य ही क्षमा याचना करूँगा। 


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