Vimla Jain

Abstract Classics Inspirational

4.5  

Vimla Jain

Abstract Classics Inspirational

कशमकश जिंदगी की

कशमकश जिंदगी की

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नीता अपने जिंदगी के सफलतम वर्ष कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में बिताकर रिटायर हो गई थी।

 उसने सोचा था कि वह अब अपनी जिंदगी अपनी तरह से जिएगी।रिटायरमेंट के बाद में कुछ दिन तो ठीक चलावो ख़ुश थी।

 अपनी पसंद से सब बच्चों को बना कर खिलाती। 

बेटा बहू और उनका बच्चा और वह खुद कुल मिलाकर चार जने घर में थे।

बेटा और बहू दोनों जॉब करते थे।और उनका बच्चा डेकेयर में रहता था।

 रिटायरमेंट के एक महीने बाद बहू ने अपने बच्चे को डे केयर नहीं भेजा, जब नीता ने पूछा कि आज इसको क्यों नहीं भेजा तो बहू बोलती है, अब क्या है आप दिन भर घर रहते हो रिटायर हो गए हो, कुछ काम धंधा तो है नहीं, तो आप बच्चे को संभालोगे, इसीलिए मैंने उसको नहीं भेजा।

नीता ने बोला कम से कम तुमको मुझसे पूछ तो लेना चाहिए था।

 फिर तुम इसको स्कूल नहीं भेजती।

अब मेरी यह मेरी हालत नहीं है, कि मैं बच्चे को रख सकूं, और उसके पीछे दौड़ सकूं, और तुम्हारे लिए खाना भी बनाऊँ। 

पर बहु बेटा पर कोई असर नहीं हुआ और वह गुस्सा हो कर के अपने ऑफिस को निकल गए।

 नीता एकदम हक्की बक्की रह गई

जो बहू और बेटा मांजी मांजी

 करते नहीं थकते थे।वह आज इस तरह से उनके ऊपर काम सौंप कर निकल गए हैं।

और बच्चे को भी थोप कर निकल गए हैं। उसने सोचा कुछ तो करना पड़ेगा इनको रास्ते पर लाने के लिए 

शाम को जब बहु घर लौटी तो वह मां जी पर बरस पड़ी, कि आपने बच्चे का ध्यान नहीं रखा, उसको अच्छी तरह खिलाया पिलाया नहीं कैसा हो रहा है।

और आपने अभी तक खाना भी नहीं बनाया। दिनभर पड़ी-पड़ी क्या करती रहती है घर में। 

नीता को बहुत दुख हुआ, और बहुत गुस्सा आया पर वह कुछ बोली

 नहीं।

थोड़ी देर बाद में किसी काम से वे अपने बहू के दरवाजे के पास में से गुजर रही थी, तो उसने बहू को फोन पर वीडियो कॉलिंग करते हुए सुना। वह अपनी मां से बोल रही थी मैंने तो मेरी सास को काम पर लगा दिया है। 

बच्चे को संभाले, घर संभाले, खाना बनाए। अब मैं जो है शांति से रह सकूंगी। और शांति से नौकरी कर सकूंगी।तफरी कर सकूंगी। उनको थोड़ा चढ़ाऊंगी तो खाना रोज अच्छा बनाएंगे। नीता ने यह सुना तो वह बहुत दुखी हुई।

फिर उसने सोचा ऐसे दुखी होने से और बेचारे होने से काम नहीं बनेगा। कुछ तो करना पड़ेगा। 

दूसरे दिन उसने अपनी फ्रेंड को फोन करा। और केरल घूमने का प्लान बनाया।

टिकट वगैरह अपने आप अरेंज कर ली। 

और शाम को जब बहू आई जॉब से, तो उसने देखा ना तो खाना बना हुआ है, माजी का सूटकेस तैयार है। 

बच्चे को भी तैयार करके छोड़ रखा है। वह एकदम हक्की बक्की रह गई।

बोलती है मांं जी आप कहां जा रही हो। यह क्या आपने खाना भी नहीं बनाया। बच्चे को भी अच्छी तरह से कुछ खिलाया नहीं है। 

और आपने मुझको बताया नहीं आप कहां जा रही हो।

मुझे कुछ पैसों की जरूरत है। मुझे पैसे दे दो जो आपके पेंशन आई है, वह मुझे दे दो घर खर्च के लिए।

नीता ने बोला हंसते हुए, अरे बहू यह तुम क्या कह रही हो।

मेरी पेंशन तो मेरे लिए है ना, उसको मैं मेरे भविष्य के लिए रखूंगी।

और उसी तरह से खर्च करूंगी,

अभी तक मेरा जितना भी पगार था, वह घर खर्च में हो रहा था।

मैंने कभी तुमको कुछ नहीं बोला मगर अब यह पैसा तो मुझे भी चाहिए ना।

मेरे को भी मेरी जिंदगी जीनी है।

बहुत गुस्सा हुई , फिर उसने देखा कि गुस्से से बात नहीं बनेगी।

 तो उनके मस्का मारने लगी, और प्यार से बोलने लगी।

माताजी यह घर तो आपका ही है यह आपका पोता है।आप इसे संभालो।

अब और आराम से घर में रहो।

आपकी क्या आपके पैसों की क्या कमी है।

 पेंशन घर के अंदर दो, तो खर्च थोड़े अच्छी तरह से निकलेंगे।

नीता ने एकदम मना कर दिया बोली यह मेरा पैसा है।मेरे भविष्य के लिए काम लगेगा, और मेरे लिए रहेगा।

तुमको अपने घर खर्च को खुद ही चलाना पड़ेगा। अगर तुम को नहीं पसंद आता है, तो अपना अलग ठिकाना ढूंढ लो।

अब तक मैंने तुमको पाला है।

और मेरे रिटायर होते ही तुम्हारी आंखें फिर गयी, ऐसा नहीं होना चाहिए।

अब मेरे पैसे के ऊपर तुम्हारा कोई हक नहीं है। और बोली हां, मैंने वापस आकर के एक शिक्षण संस्थान में सेवा देने का कार्यक्रम चालू कर दिया है। 

उसके लिए मैं सुबह 9:00 बजे जाऊंगी और शाम को 5:00 बजे आऊंगी।

इसलिए अपना घर तुम देख लेना। नहीं तो तुम्हारे को जो करना है वह करो।

और उन लोगों को हक्का-बक्का छोड़ कर के वे अपनी फ्रेंड्स के साथ में केरला घूमने निकल गई। 

आज वह बहुत खुश थी।और जिंदगी की उस कशमकश में से उसने छुटकारा पा लिया कि मैं क्या करूं क्या ना करूं।

यह कहानी मेरी, तेरी उसकी किसी की भी हो सकती है।क्योंकि रिटायरमेंट के बाद में स्त्रियों की स्थिति घर में बहुत ही तकलीफ देय हो जाती है। लोग उनसे उसी तरह की आशाएं करते हैं।

जैसे वह पहले काम किया करते थे।वैसे ही यह नहीं सोचते कि उनको भी आराम की जरूरत होती है। लेडीज को भी आराम की और अपनी तरह से जिंदगी जीने का हक है।

रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी उनकी अपनी होती है।

 उसके ऊपर उनके पति, बेटे बेटी किसी का भी हक नहीं होता।

 वह चाहे तो अपनी मर्जी से हक दे सकते हैं बच्चों को। मगर मैं सोचती हूं यह गिव एंड टेक का मामला है। इसलिए अपने भविष्य के लिए थोड़ा संभल कर के ही चलना चाहिए।


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