Hansa Shukla

Inspirational

4.4  

Hansa Shukla

Inspirational

कृष्णा

कृष्णा

5 mins
271


आज मिसेस पांडे बहुत खुश थी। खुशी का कारण कोई बड़ी वजह नहीं बल्कि एक छोटी सी बात कि उनका माली कृष्णा सवेरे -सवेरे उन्हें दिखा था। उनका दस साल का नाती निखिल बगीचे में नानी को बिना किसी बात के मुस्कुराते देखकर पूछा नानी क्या बात है, आप क्यों मुस्कुरा रही है? कुछ नहीं बेटा, आज कृष्णा अभी दिखा था लगता है अपने गांव से वापस आ गया उसके घर में सब ठीक है। निखिल नानी की मुस्कुराहट के कारण को ठीक से समझ न पाया लेकिन प्रतिउत्तर में मुस्कुरा कर चला गया। घर के सारे काम निपटा कर मिसेस पांडे इत्मीनान से बैठी तो पुरानी सारी बातें उनके सामने किसी फिल्म के फ्लेशबैक की तरह घूमने लगी।

बीस वर्ष पहले जब इस नए घर में आई थी तो कॉलोनी में दो-चार घर थे और काम करने वाले बड़ी मुश्किल से मिलते थे, तब कृष्णा हाथ में टोकरी और सफाई का सामान लिए सामने सड़क से निकल रहा था मुझे बगीचे में टहलते देखकर बोला, आंटी कुछ काम है क्या टालने के उद्देश्य मैंने कहा, आज नहीं पंद्रह दिन बाद आना, आत्मविश्वास और चमकती हुई आंखों के साथ कृष्णा बोला, आंटी मैं बगीचे की साफ-सफाई ,पानी टंकी की सफाई, खिड़की दरवाज़ा चमकाना सब कर लेता हूं। उसकी बातें मुझे अच्छी लगी लेकिन आज घर में ऐसा कोई भी काम नहीं था फिर मैंने उससे कहा, कृष्णा आज कुछ काम नहीं है बाद में आना। पंद्रह दिन बाद सवेरे दस बजे डोर बेल बजने से मेरा ध्यान दरवाज़े की ओर गया कृष्णा बाहर खड़ा था, मुस्कुराते हुए कहा, आंटी क्या-क्या काम करना है? उसके पूछने के लहजे से प्रभावित होकर मैंने कहा गार्डन की सफाई करो उसके बाद खिड़की दरवाज़े साफ करना है। कृष्णा काम करते हुए ओड़िया में गाना गा रहा था और पूरी तन्मयता से अपना काम कर रहा था। काम पूरा होने पर बोला, आंटी काम देख लीजिए तब पैसा देना पूरे काम का मुआयना करने के बाद मैं खुश हो गई और मैंने कृष्णा को उसकी मजदूरी के साथ खाने का सामान भी दिया। फिर तो एक सिलसिला ही शुरू हो गया कृष्णा दस-पंद्रह दिन में आता सफाई करता उसके काम करने का तरीका दूसरों से बिल्कुल अलग था वह अपनी भाषा में गाना गाते हुए खुश होकर काम करता था। कभी-कभी काम के बीच में मैं उसके परिवार के बारे में पूछती उससे एक अपनेपन का रिश्ता बंध गया था, बातों से पता चला उसकी पत्नी और दो बच्चे गांव में उसके माता-पिता के साथ रहते हैं और वह काम के लिए छत्तीसगढ़ आया है।

धीरे धीरे कृष्णा घर के सदस्य के जैसा हो गया और कभी जरूरत हो तो वह मेरे से पैसे उधार लेता और अपने कमाए हुए पैसे मेरे पास जमा करता। घर में सब मुझसे नाराज़ भी होते की तुमने कृष्णा को बहुत सर चढ़ा लिया है वह कभी भी रुपयों के लिए आ जाता है, मैं मुस्कुरा कर कहती बच्चे जैसा है जरूरत पर किसी का काम पड़े तो इसमें बुराई क्या है? एक दिन शाम को कृष्णा आया और पाँच हजार मांगते हुए बोला आंटी गांव से फोन आया था मेरे बेटे की तबियत खराब है मुझे गांव जाना होगा मैं गांव से वापस आ कर तुरंत आपका पैसा दे दूँगा। मुझे लगा यदि मैं कृष्णा को पैसे नहीं दी तो वह रो पड़ेगा मैंने कहा थोड़ी देर रुक मैं पैसे लेकर आती हूं मन में कशमकश चल रहा था इतनी बड़ी रकम देनी चाहिए या नही मन के किसी कोने से आवाज़ आई कि इतने रुपए शॉपिंग में ऐसे ही खर्च कर देती हो किसी जरूरतमंद को देना है तो इतना सोच क्यों रही हो मन की बात मानकर मैंने तुरंत अलमारी से पैसे निकाले और कृष्णा को दे दिए और कहा बेटे का अच्छे से इलाज कराना और गांव से आते ही मुझे खबर करना।

10- 15 दिन के 2 महीने हो गए लेकिन कृष्णा नहीं आया मन में निराशा के भाव पहले आते हैं मुझे लगा पांच हजार उसके लिए बहुत है हो सकता है बेटे की बीमारी का बहाना बनाकर गाँव चला गया हो और मन ही मन मैंने यह मान लिया कि मेरे रुपये डूब गए, घरवालों के ताने शंका को और बढ़ा रहे थे रुपए पेड़ पर तो नहीं लगते अब तो तुम्हारा कृष्णा नहीं आने वाला है इसलिए आज सवेरे कृष्णा को देखकर जान में जान आई और लगा सब राजी खुशी है। दोपहर में आएगा तो अच्छी खबर लूँगी इतने दिनों में गांव से आया और घर की ओर बिना देखे आगे बढ़ गया, दोपहर दरवाज़े पर दस्तक से सोचने का सिलसिला टूटा दरवाज़ा खोली तो सामने कृष्णा खड़ा था मैं कुछ कहती उससे पहले शर्ट की जेब से पाँच हजार निकालकर मेरे हाथ में देते हुए बोला आंटी आपका रुपया देने में देर हो गया मुझे माफ़ कर देना। मैंने धीरे से पूछा कृष्णा रुपए की बात नहीं है पहले यह बता तेरे बेटे की तबियत कैसी है? उसे अपने साथ लाया की गांव में छोड़ दिया है कृष्णा ने सामान्य भाव से कहा आंटी मेरा बेटा नहीं बचा लेकिन मेरे घर में आने वाली बेटी का पूरा खर्च आपके पैसे से ही हुआ, अब मेरी पत्नी और बेटी दोनों ठीक हैं इसलिए फिर काम पर वापस आ गया हूं। थोड़े दिन में अपने परिवार को यहाँ ले आऊंगा कृष्णा के सुलझे हुए विचार को देखकर आश्चर्य हो रहा था की इतनी जल्दी इतने बड़े ग़म को भूल कर उसने खुशी को आत्मसात कर लिया है और उसके बारे में मैं क्या-क्या सोच रही थी। कृष्णा ने आज मेरा मन जीत लिया अपनी ईमानदारी से और अपने सुलझे हुए विचारों से! मैं उसके विषय में सोचते ही जा रही थी कि उसकी आवाज़ से मेरे सोचने का तारतम्य टूटा, आंटी फिर काम हो तो जल्दी बुलाना खूब काम करूंगा और जल्दी अपने परिवार को भी ले आऊंगा कृष्णा तो चला गया लेकिन उसके व्यवहार से लगा कि गीता पढ़ना और भगवान कृष्ण के बताएं कर्म के मार्ग पर चलना अलग बात है। आज अनपढ़ कृष्णा जीवन का वह सार सीखा गया जो इतनी बार गीता पढ़कर भी हम समझ नहीं पाये थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational