Madan lal Rana

Abstract Inspirational

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Madan lal Rana

Abstract Inspirational

कर्मा

कर्मा

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    "भौजी.. क्या करने लगी .?आओ ना जल्दी" ‌भाभी को पुकारती हुई किशोरी द्रौपदी भंसा (रसोई घर) पहुंच गयी। देखा भौजी रोटियां सेंक रही हैं। अपने लहंगे को दोनों हाथों से संभालते हुए उसके नजदीक जाकर थोड़ा गुस्से का प्रदर्शन करती हुई फिर बोली---"ये क्या भौजी तुम अभी तक यहीं बैठी हो, मेरी पूजा की थाली कौन सजाएगा..? देर हो रही है, चलो ना.!!"

       " और थोड़ा सबर कर दुरपतिया काहे औला-बौला हो रही है, बस..!दो-चार रोटियां ही तो रह गयी हैं सेंकने को।"

      "ओफ्...तुम समझ नहीं रही हो भौजी, वहां सब तैयारियां हो गयी हैं। कजरी, बिजली, शारदा, परबतिया सब तैयार हो पूजा की थाली लेकर आ चुकी हैं।आंगन लीप-पोतकर "करम डार"(करम गोसाईं का प्रतिकात्मक रूप जो एक खास प्रकार के पेड़ की डाल होती है। जिसे संपूर्ण झारखंड क्षेत्र में प्रचलित पर्व "कर्मा"के व्रतधारियों द्वारा घर के आंगन के बीच गाड़कर,उसे फूल-मालाओं और दीपों से सजाकर पूजा जाता है। जिसके लिए कुंआरी लड़कियां दिन भर उपवास करती हैं। यह त्योहार हर वर्ष भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।)सजाया जा चुका है।"

     "अरी पगली...जब देर हो रही है तो इत्ता सा काम अम्मा से नहीं करा सकती.? जा देख अम्मा कहां है"

     "नहीं, तुम ही सजा दो अम्मा से नहीं होगा"


     "क्यों.???"


     "अम्मा वहीं बैठी है पूजा मंंडप के पास राधा की अम्मा के साथ। बोली जा भौजी से पूजा की थाल सजवाकर ले आ"

     "अच्छा ठीक है चलो मेरी अम्मा मैं ही सजा देती हूं। बस हो गया....ये देखो आखरी लोई है।तब तक तू एक काम कर, जा जाके बक्से में से एक बड़ी वाली कांसे की थाली निकाल ला और उसे अच्छी तरह से धोकर रख। मैं तुरंत आती हूं"

     "ठीक है भौजी"---कहकर छमछमाती हुई चली गयी।

     थोड़ी देर में भाभी ने आकर कांसे की थाल में भिगोया हुआ चना, मूंग कतरे हुए खीरे ,बताशे,केले,फूल,अक्षत ,रोली, सिन्दूर बिना जलाये दीपक, माचिस आदि रखकर सजा दिये और कहा--"        

      "ले... लेके जा, हो गयी तैयार तेरी पूजा की थाली। फिर ना कहना कि देर हो रही है और सुन थाली में माचिस और अगरबत्तियां भी रख दी हैं। मंडप में जाकर सबसे पहले अगरबत्ती जलाकर गोबर की लोई में खोंस देना फिर दीपक जलाकर नीचे थोड़ा अक्षत् रखकर उस पर दीपक रख देना। उसके बाद करम गोसाईं को फल, फूल ,नैवेद्य अर्पित कर पूजा कर लेना ठीक..?"

     "ठीक है भौजी...पर तू नहीं जाएगी वहां क्या.?" द्रौपदी ने पूजा की थाल उठाते हुए पूछा।

     "मेरी प्यारी देवरानी...पूजा तुम करोगी या मैं..? देर हो रही है जाओ। मैं आ रही हूं पीछे से।"

     "हुं...."---सर हिलाकर वह चली 

     द्रौपदी जैसे ही पूजा मंडप में पहुंची कजरी और बिजली उसपर बरस पड़ी---"कहां रह गयी थी रे.? जानती हो तुम्हारे चलते पूजा में देर हो रही है। चलो जल्दी करो।"‌‌

    फिर सबने मिलकर पूजा आरंभ की। करम डार के चारों तरफ लड़कियां एक गोल बनाकर अपनी-अपनी पूजा की थाली लिए पूजा करने बैठी। दीपक अगरबत्तियां जलाई गयीं। करम देव को फल-फूल नैवेद्य चढ़ाया गया और‌ दंडवत् कर हाथ जोड़ किशोरियां अपने-अपने प्रिय भाइयों के लिए मंगल कामनाएं करने लगीं।

     पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद वितरण किया गया। सबने श्रद्धापूर्वक उसे ग्रहण किया.द्रौपदी की मां भी वहीं खड़ी बच्चियों की खुशी में शामिल होकर आनंदित हो रही थी। तभी द्रौपदी ने आकर उसे भी प्रसाद दिया पैर छूकर आशीर्वाद लिया और पूछा--- ।     "भौजी नहीं आई अम्मा..?"

    "मालूम नहीं बेटी, आयी होगी तो यहीं कहीं होगी भीड़ में। ढूंढो तो सही"

    " नहीं अम्मा, नहीं आयी है मैंने अच्छी तरह देख लिया है"

    "ओफ्फ्..! ये बहू भी ना गजब करती है। क्या कर रही है घर में, जाकर देखो तो जरा।"---मां ने खीजते हुए कहा।

     द्रौपदी प्रसाद की थाल लिये लपककर घर गयी। देखा भौजी कपड़े बदलकर तैयार हो रही थी। देखते ही गुस्साकर बोली पड़ी।----"भौजी तुम भी गजब करती हो, तुम्हें जरा भी अपनी ननद की चिंता नहीं। पूजा समाप्त भी हो गयी तबतक तुम नहीं पहुंची"

     "क्यों नाराज हो रही है मेरी बच्ची...लो मैं तैयार हो गयी, अब चलो"----भाभी ने उसका माथा चूमते हुए कहा--"तुम तो जानती ही हो अपने घर में कितना काम होता है"

     "हां...हां समझ गयी, लो पहले प्रसाद लो"

   ‌  "दो" ----उसने हाथ में प्रसाद लेते हुए पूछा---"मुन्ना वहीं था.?

     "हां भौजी शैतान वहीं है, बहुत परेशान किया मुझे पूजा करते समय। कभी यहां कभी वहां कभी मेरे पास कभी अम्मा के पास।"

     "ठीक है चलो चलकर देखते हैं।"

     दोनों ननद भाभी पूजा मंडप में पहुंची। वहां का दृश्य बड़ा ही मनोरम था। बच्चे-बच्चियां, औरतें और अन्य श्रद्धालुओं की भीड़ जमा थी। करम डार को फूल-मालाओं और दीपों से अच्छी तरह से सजाया गया था। नीचे जल रहे धूप-दीप और अगरबत्तियों से निकल रही सुगंध वहां की वातावरण को सुवासित कर रहा था। साथ ही करम डार के चारों और फैले धुएं के बीच से छन-छन कर दीपों की जो रोशनियां निकल रही थी, ऐसा लग रहा था मानो करम डार के चारों तरफ शाखाओं से लगाकर मोटी-मोटी ट्यूब लाइटें बांध दी गयी हों।

     थोड़ी देर में नगाड़े वाले आकर वहां की विशिष्ट शैली में नगाड़े बजाने लगे और उसी की धुन पर औरतें एक-दूसरे की कमर में हाथ डालते हुए करम डार के गिर्द गोल घेरा बनाकर नाचने और गाने लगीं----

     "देहो करम गोसैं देहो आशीष हे...,"

     "धिया-पुता जियते लाखों बरीस हे...!"


इस कहानी के स्थान ,पात्र व घटनाएं हमेशा काल्पनिक हैं, इसलिए किसी भी प्रकार का मेल मात्र संयोग होगा।


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