कोविड-19 (विवाह) मैरिज ..
कोविड-19 (विवाह) मैरिज ..
कोविड-19 (विवाह) मैरिज ..
पत्रक
हमने, माधुरी-जयेश दोनों को साथ वीडियो कॉल पर लेकर बात की है। दोनों ने स्वेच्छा से शपथ पूर्वक परस्पर, एक दूसरे को जीवन संगिनी / साथी स्वीकार किया है।
अतः समय एवं परिस्थिति को देखते हुए, इस नई रीति (कोरोना विवाह) के साक्षी होकर, हम माधुरी-जयेश के विवाह को स्वीकार करते हैं।
दिनाँक 05.04.2020 भवदीय
जयेश एवं माधुरी ने ऐसे प्रमाण पत्र, क्रमशः अपने मम्मी-पापा, अपने मामा-मामी, अपने बुआ-फूफाजी एवं दो पड़ोसी युगल से, वीडियो कॉल उपरांत विवरण पत्र, जैसा लिखवाया था।
इस पर, उनके दिनांकित, हस्ताक्षर करवाये थे। फिर इन विवरण पत्रों की मोबाइल स्कैनर से, पीडीएफ इमेज, व्हाट्सअप के जरिये प्राप्त कीं थीं। उनके प्रिंटआउट लेकर तीन सेट्स तैयार किये थे।
इन के साथ इन्होंने, अपने अपने घोषणा पत्र की, एक प्रिंटेड प्रति भी लगा दी थी।
अपने घोषणा पत्र में दोनों ने यह घोषित किया था-
घोषणा पत्र
मैं माधुरी /जयेश अपनी अंतरात्मा को साक्षी रख यह घोषित करती/करता हूँ कि अपने इस जीवन के लिए, मैं जयेश/माधुरी को अपना/अपनी जीवन साथी/संगिनी स्वीकार करती/करता हूँ।
दिनाँक 05.04.2020 भवदीय
वास्तव में, तीन माह पूर्व जयेश-माधुरी की सगाई हुई थी। एवं तब ही विवाह तिथि 5 अप्रैल 2020 की नियत हुई थी।
कोरोना विपदा के कारण जारी किये गए, लॉक डाउन से, 26 मार्च को ही, दोनों को एवं परिवार को, यह विवाह तिथि स्थगित करनी पड़ी थी। यूँ तो बाद की तिथि पर, विवाह हो जाना कोई विचित्र बात नहीं थी। मगर इस स्थगन को, माधुरी के अति आधुनिक तरह के विचार वाले मस्तिष्क ने, अलग तरह से लिया था।
उसने, जयेश से मोबाइल पर, कोविड-19 मैरिज की अपने दिमाग में उपजी, पद्धति से अवगत कराया था।
जयेश ने, इस पर कहा था कि यह तो लिव इन रिलेशन तरह से हो जाएगा, जिसमें, कोई धर्म सम्मत, विवाह रस्म नहीं रहेगी।
माधुरी ने कहा था, निभाना हम दोनों को है। जब हम इसे लिव इन रिलेशन नहीं विवाह ही मानेंगे तो समस्या कहाँ है?
वैसे भी यदि लॉक डाउन नहीं होता तो, हमारा विवाह तो, समाज परंपरा अनुसार ही, संपन्न होने वाला था।
फिर, जैसे ही कार्यालयों में कामकाज सामान्य होगा। हम जाकर, वहाँ, अपना विवाह पंजीकृत (रजिस्टर्ड) करा ही लेंगे।
जयेश ने फिर सवाल किया था कि, विवाह, रीति रस्म पूर्वक नहीं होने से हमारे आगे के जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। माधुरी ने इस पर कहा था कि, जयेश, दुनिया भर के हर हिस्से में, लोग अपने अपने धर्म सम्मत रीति रिवाजों से शादी करते हैं। तब भी खासी बड़ी सँख्या में ये विवाह, विच्छेद, तलाक या डिवोर्स के जरिये टूट रहे हैं।वचन अदायगी रस्म जैसी ही होती है, वचन निभाने के प्रति ज्यादा लोग नहीं गंभीर दिखते हैं।
ऐसे में हम, आवश्यकता जनित, इस नई आविष्कृत पद्धति से, शादी करें तथा इसे गंभीरता से निभा दिखायें तो, यह अन्य के लिए भी अनुकरणीय होगा।
जयेश ने फिर शंका उठाई कि तुम्हारे तर्क, मैं सहमत भी कर लूँ तो, हमारे परिवार-रिश्तेदारों में सहमत करा लेना, कठिन होगा।
तब माधुरी ने हँसते हुए कहा था, आप भूल रहे हो कि आप, योग्य अधिवक्ता और मैं, चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। हम यदि तर्कपूर्ण ढंग से, उन्हें समझायेंगे तो, हमारे प्रस्ताव को सम्मति मिलने में कठिनाई ना होगी।
ऐसा तय किये जाने के बाद से, दोनों ने परिवार में चर्चा और अपने अपने परिचित रिश्तेदारों को मोबाइल कॉल के जरि
ये मनाना आरंभ किया था।
दोनों के मम्मी-पापा को, राजी करने में, दोनों को ही, विशेष प्रयास करने पड़े थे। दोनों ही इकलौती संतान थे। दोनों के पालकों की, उनके विवाह के, भव्य आयोजन की कामना थी। तब माधुरी ने तर्क रखा था, हम जैसे परिवार समाज में आडंबर की खर्चीली रीति रखते हैं। जिसकी नकल, आर्थिक रूप से कमजोर परिवार करते हैं। और अनावश्यक ही, स्वयं पर ऋण का बोझ बढ़ा लेते हैं। हम सादगी से विवाह का उदाहरण पेश करें तो समाज में इसका अच्छा प्रभाव पड़ सकता है। तब एक अटपटा तर्क उनके पालकों की ओर से आया था कि - ये हमारी नकल करने वाले लोग, औलाद (कम) पैदा करने में, हमारी नकल क्यों नहीं करते?
इस के उत्तर में, जयेश ने प्रश्न किया था कि अगर बच्चा एक ग़लती करता है, तो क्या माँ-पिता बदले में, उसके साथ, दूसरी ग़लती करते हुए दिखाई देते हैं?
इस तरह मान मनौव्वल के बाद उन्हें, सबकी स्वीकृति मिल गई थी।
फिर पूर्व तय विवाह तिथि 5 अप्रैल 2020 को ही, बिलकुल ही नई पद्धति से, दोनों ने, अपने को, विवाह सूत्र में बाँध लिया था।
हनीमून पर बाहर जाना संभव नहीं था। अतः परस्पर, दोनों के प्यार भरे दिल को समझने का, कोई नया तरीका भी खोजना था।
समय अनुकूल तथा परिस्थितियों अनुसार प्रासंगिक दोनों ने फिर कुछ तय किया था।
जयेश ने अपने मित्र, प्रसिद्ध बेकरी कारोबारी से, एक करार किया एवं अगले दिन 6 अप्रैल से ही, उसकी बेकरी के प्रतिदिन के उत्पाद को, उसके ही सप्लाई वैनों के प्रयोग से, गरीब मज़दूर के परिवारों में, जिनके दैनिक अर्थ उपार्जन के काम लॉक डाउन से, संभव नहीं हो पा रहे थे में, मुफ्त वितरण करवाना आरंभ करवा दिया था।
परोपकार के इस कार्य में, माधुरी और जयेश, पूरे दिन साथ होते थे। वे, एक दूसरे के दिलों को समझते थे। और अपने ह्रदय को, नित परोपकार की सुखद अनुभूतियों से, भरते थे।
उन्हें आत्मिक सुख अनुभव होता, जब भूखे गरीब बच्चे, उनकी मानवीय संवेदनाओं से प्रेरित वितरित की जा रही भेंट को पा, खुश होते थे।
जयेश माधुरी ने यह काम 3 मई 2020 तक नियमित जारी रखा।
देश में, 4 मई 2020 से कोरोना उन्मूलन के साथ ही, जन जीवन सामान्य होना आरंभ होने लगा और जयेश-माधुरी ने, इस परोपकारी कार्य की आवश्यकता न बचने से, तब इस क्रम को, विराम दिया था।
माधुरी सी.ए. थी, जिसने इस कार्य में, व्यय राशि 27 लाख 83 हजार होना बताई थी।
जयेश-माधुरी ने इसे, विवाह रिसेप्शन एवं हनीमून पर व्यय निरूपित किया था।
साथ ही, लगभग एक माह के इस समय को, अपना हनीमून बताते हुए, दोनों ने साथ ठहाका लगाया था।
पूरे घटना क्रम पर दृष्टि रखते हुए, दोनों के, परंपरागत विचार वाले पालकों ने अनुभव किया था, कि समय की माँग अनुसार अगर हम परंपराओं में अच्छे परिवर्तन लायें तो यह हमारी, बुध्दिमानी एवं समाज हित होते हैं।
उन्हें, इधर उधर, जब माधुरी-जयेश की प्रशंसा होती सुनने में आता तो, वे गौरव अनुभव करते, वे, प्रसन्न होते और सोचते कि संतान किसी की हों, तो ऐसी हों।
विवाह कार्यालय में, अपना विवाह पंजीयन करवाने जब दोनों पहुँचे थे तो, एक अधिकारी ने टिप्पणी की थी कि ,
बिन रीति रिवाज के, आपके विवाह के भविष्य को, जानने की मुझे जिज्ञासा रहेगी।
इसके उत्तर में, जयेश माधुरी को कुछ कहना नहीं पड़ा था। बल्कि, उत्तर, वहाँ उपस्थित अन्य अधिकारी ने दिया था - आप, शायद इन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं।जयेश-माधुरी, इस समय हमारे शहर के, सबसे ज्यादा चर्चित नाम हैं।
विवाह उपलक्ष्य में, इन्होंने जो परोपकारी कार्य का उदाहरण रखा है, वह राष्ट्र भावना एवं मानवता का अव्दितीय उदाहरण है।
इस पावन कर्म की बुनियाद पर आधारित, इनका दांपत्य बंधन, निश्चित ही अनुपम होगा, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं।
जयेश माधुरी ने हाथ जोड़ अभिवादन एवं आभार व्यक्त करते हुए मुस्कुराते हुए विदा ली थी एवं वहाँ उपस्थित लोगों को छोड़ा था, उनके पीठ पीछे की, चर्चा के लिए ...