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Sneha Dhanodkar

Inspirational

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Sneha Dhanodkar

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कोरोना.. प्रकृति को तोहफा

कोरोना.. प्रकृति को तोहफा

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आज सुबह नमित छत पर घूम रहा था.. हवा इतनी सुहानी लग रही थी मानो पहले थी ही नहीं... शहर के बाहर की पहाड़ी भीं साफ नजर आ रही थी जो पहले कभी नहीं आयी.. हल्की सी लालिमा लिये जैसे ही सूर्य के दर्शन हुए ऐसा लगा जैसे पता नहीं कहां खड़ा हुँ जैसे अपने घर नहीं प्रकृति की गोद मे कही दूर जाकर वन मे खड़ा ये नजारा देख रहा हूँ।

घर के पीछे बहती नदी के पानी की आवाज़.. पक्षियों का कलरव सब कुछ इतना मनोरम लग रहा था की निचे से बेटी आशी की आ रही आवाज़ भीं सुनाई नहीं दी... जो मुझे चाय पीने बुला रही थी.... उसने आखिर ऊपर आकर कहा" अरे पापा... तब उसे देखा.. फिर बोली.. "पापा कब से आवाज़ लगा रही हुँ..  आप सुन ही नहीं रहे।"

तो मन ही मन हसीं आ गयी खुद पर... फिर मुस्कुरा कर उसे बोला... "अरे बेटा खो गया था इस प्रकृति की गोद मे कहीं।" आशी को समझ नहीं आया.. वो थोड़ी आश्चर्य चकित नजरो से देखती हुयी बोली.. "चलो मम्मी बुला रही है चाय के लिये।"

मैं नीचे जा रही हुँ गार्डन मे..  पौधों को पानी देने.. प्लीज आ जाना आप... मैं फिर ऊपर नहीं आउंगी।" कहती हुयी वो धड़धड़ाती सीढ़िया उतर निचे चली गयी.. मेरा मन तो नहीं था पर फिर भीं नीचे आ गया... निशा चाय बना इंतजार कर रही थी.. उसने पूछा "क्या हुआ इतनी देर से बुला रही है.. कौन दिख गयी छत पर.... कह कर वो हसने लगी।"

मैंने भीं मजाक मे कह दिया "आज एक नई प्रकृति नजर आयी... उसने दो सेकंड मुझे ऐसे देख जैसे सच मे मैं किसी लड़की से मिल कर आया हुँ..।" और फिर मुझे देख मुस्कुराने लगी...

तभी नीचे से बेटी आशी की आवाज़ आयी... "पापा मम्मी.. हमने बालकनी से नीचे देखा.. वो बोली "देखो कितनी सारी तितलियाँ और चिड़िया.. पापा को पक्षियों के दाने का पैकेट दे दो ना..  अब ज्यादा हो गए पक्षी तो ज्यादा दाना रख देती हुँ.. मुझे अच्छा लगा। हमारा बगीचा भीं एक बड़े वन जैसा ही नजर आ रहा था मुझे।" मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था।

टीवी पर आती खबरें देखते हुए मैं सोच रहा था की चाहे सबके लिये ये कोरोना और लॉक डाउन कितना भी बुरा क्यूँ ना रहा हो.. इसने प्रकृति को तो रेनोवेट कर दिया है।धरती फिर से मुस्कुराने लगी है. नदियां साफ हो गयी है.. हवा का प्रदूषण स्तर कम हो गया है... पेड़ लहलहाने लगे हैं..  पक्षी गुनगुनाने लग गए हैं। सब सुहाना हो गया है।

मैंने निशा से कहा "कुछ और हो ना हो पर हर साल कम से कम पंद्रह दिन का लॉक डाउन तो होना ही चाहिये  इस प्रकृति के लिये।"



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