कोरोना : मज़बूर बेटा
कोरोना : मज़बूर बेटा
दो साल का नन्हा बालक मजे से वाकर ( हिंडोला ) चला रहा था अचानक से वाकर पलट जाता है बच्चे के गिरने से पहले ' हाथ के बर्तन को पटकते फुर्ती से न जाने कहां से माँ आती है बच्चे को गिरने से पहले अपनी गोद में छिपाकर अनगिनत चुम्मियों की बरसात करने लगती है नहीं बेटा कुछ नहीं हुआ कहीं चोट नहीं लगी दरअसल वह खुद को भी दिलासा दे रही होती अचानक बेटा छोटी छोटी ऊंगलियों से माँ के ऑसू पोछने लगता है दोनों के चेहरे पर मुस्कान फैल जाती है
बचपन याद करते हुए सुधीर बिस्तर पर पड़े पड़े चिहुँक उठता है मां माँ मैंने तुम्हें घर से निकाल दिया जिस समय तुम्हें सबसे ज्यादा सेवा की जरूरत थी वोभी उस समय मां मुझे नर्क में भी जगह न मिलेगी माँ वो रो
पड़ा और एक तेज खांसी का दौर जो दस मिनट में उसे बेहाल कर गया। सुधीर संस्कारो से धनी परन्तु किस्मत का मारा था बी काम करने के बाद उसने ईधर उधर बहुत हाथ मारे ' हरजगह असफल होने पर सेल्समैन की नौकरी स्वीकार कर ली
जीवन फिर भी अच्छे से चलही रहा था ' माँ ' ने घर घर खाना पकाकर बड़ी मुश्किल से पाला था वहभी माँ की छोटी छोटी जरूरतों का ख्याल रखता था पर
इस कोरोना ने उसे पस्त कर दिया उसकी पत्नी व बेटे के साथ माँ भी अछूती न रह पायी मां को बराबर उल्टियां हो रही थी ' ' स्वास्थ्य की थोड़ी धनी मां को कमजोर व दुर्बल सुधीर केलिए वाशरूम तक लेजाना मुश्किल हो रहा था ' अपने को बेज़ार देख अन्ततः उसने मामा को खबर करदी ' मां के प्यार से पगे मामा इंकार न करसके वह समर्थ और नेक बंदे थे मां वहां बेहतर इलाज व सुविधा पाएगी सोचकर उसने मां को भेजदिया
किंतु ग्लानि वशर्म उसकी बीमारी को लगातार बढ़ा रही थी ' उधर न जाने कैसे ये बात फैल गयी कि सुधीर ने मां को घर से निकाल दिया
माँ को गए दो दिन होगए थे मामा ने बताया मां में सुधार नहीं हो रहा ' वह बराबर तुम्हे याद कररही हैं ' ले आइए मामा कहकर वह खांसने लगा था उसने पानी पिया और कुर्सी पर बैठ गया मां एक घंटे में आ
जाएगी उसने धीरे से एक बार फिर पुकारा मां
और कुर्सी पर निढाल होगया '
मामा ने किवाड़ को ढकेला बहन ने सुधीर के कमरे की ओर इशारा किया कंधों से बहन को सहारा देते हुए वह उधर बढ़ गया
सामने निढाल सुधीर को देख मां की रही सही ताकत भी चूक गयी ' वह खड़ी न रह सकी जमीं पर बैठ अटकी अटकी आवाज़ में बोली सि धू ' सिधू उसके हाथ को सहलाते सहलाते मां ने अपना सिर सुधीर के हाथ पर रख दिया
दोनों मौन थे दोनो के बीच का प्यार विश्वास जिंदा था पर वे जिन्दा न थे कईयों ने उसे नकारा ' नालायक एहसान फ़रोश कहा
पर ' सच को जानने वाले दोनों चेहरों पर धूल पड़ी थी।