Bhawna Kukreti

Romance

4.6  

Bhawna Kukreti

Romance

कॉफ़ी

कॉफ़ी

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ट्रेन चलने वाली थी, विधि साइड बर्थ पर खिडकी के पास बैठी हुई लखनऊ से भोपाल पहली बार अकेले जा रही थी। उसके डैड उसे बिठाने आये थे और कहा था की भोपाल मे उसे चाचा जी लेने आएंगे, बीच रास्ते मे न किसी से कुछ बात करना न किसी का दिया कुछ खाना-पीना ।

ट्रेन चल दी, अभी थोड़ा स्पीड पकड़ी थी की एक पुलिस के सिपाही की सी यूनिफॉर्म पहने गेहुएं रंग का ,औसत कद काठी और भूरी आँखों वाला लड़का उसके सामने की सीट पर धम्म से आकर बैठ गया। " हेल्लो" मुस्कराते हुए उसने विधि को देखा , विधि ने उसे देखा और बिना कुछ जवाब दिये फिर खिड़की के बाहर देखने लगी।उस लडके के पास बाकी सामान के साथ घर मे सिला एक झोला था जिसमे शायद सामान ठीक से नहीं रखा था ।वह एक-एक कर उन्हे बाहर निकालने लगा। विधि आंख के कोने से देख रही थी । एक मफलर ,एक हॉट वॉटर बॉटल ,कुछ सैशे,एक गिलास,एक चम्मच, एक छोटी सी चीनी की डिबिया, दो नॉवेल ,एक टॉर्च और एक फैमिली फोटो। ट्रेन के झटके से बॉटल लुढक कर विधि की सीट के नीचे चली गयी ।वो लड़का फौरन लपका और उसका सर विधि के घुटने जोर से लगा। "ओ माँ!!" ," सॉरी-सॉरी" अपने सर को सहलाता वो लड़का पीछे हो गया।विधि ने सीट के नीचे से बॉटल निकाल कर दी।" थैंक्स यार। ","ईटस ओके" विधि ने कहा। विधि को नावेल पढ़ने का शौक था।उसकी नजरें बार बार न चाहते हुए भी उन दो नॉवेल पर जा रही थीं ।


" सो मिस आप भी भोपाल जा रहीं है !" झोले मे सामान करीने से जमाते हुए उसने एक नजर विधि पर डालते हुए कहा । विधि चौंक गयी की इसे कैसे पता चला ।" आपको, आपके पापा छोड़ने आये थे न! मैं वहीँ खडा था ,सब सुना।" अब ये सब विधि को कुछ कुछ डराने सा लगा। "अपने काम से काम रखिये मिस्टर ।" विधि ने बेहद रूखी आवाज मे उसको कहा। "मेरा नाम मोहन है।" अब वो थोड़ा फिल्मी सा हो गया।" मुझे लगा दोनो सेम ऐज ग्रुप के हैं रस्ता आराम से बातों मे कटेगा इसलिये आपके पीछे-पीछे आ गया, वर्ना मेरा वारंट 1स्ट क्लास का है।" वो कुछ देर चुप रहा। " अच्छा एक बात बताना जरा"। विधि ने उसकी ओर देखा। "तुम कम बोलती हो या जानबूझ कर नही बोल रही।", " मैं अजनबियों से बात करना पसंद नही करती"," अगर ये अजनबी तुमको तुम्हारे बारे मे कुछ ऐसा बता दे जो सिर्फ तुम जानती हो और कोई नही ,तो बात करोगी ?" विधि को ये बात अनोखी सी लगी।"बताऊँ?!"," बताईए।"," तुम सपनों की दुनिया मे ज्यादा रह्ती हो।" विधि ने मुह बना दिया।"अरे बाबा !! आगे भी सुन लो फिर मुह बिगाड़ना,मुझे ज्योतिष मे रुचि है इसलिये ।","ओके", "तुम्हारे गाल का तिल बताता है कि तुम्हारा पहला प्यार नाकामयाब रहा है ।" विधि हँस पड़ी, "पहला प्यार ?! इधर करीयर बनाने के अलावा कुछ सूझता नही और पहला प्यार !!" विधि साफ झूठ बोल गयी, कॉलेज मे वो प्यार सा ही तो था कुछ मगर तब शायद डर गयी थी ,"अरे नही हुआ तो जब भी होगा, तब सम्भलना।", "बोगस बातें हैं " मगर वो बोले जा रहा था "लेकिन उसके बाद दो और आयेंगे टूट कर चाहने वाले , समझदारी से चुनना, अरे एक मिनट!!" कह कर वो अपनी सीट से उठ कर जाने लगा बोला " मेरा सामान देखना प्लीज ,अभी आया।"विधि ने मन मे कहा, इसे मै क्या फालतू लग रही हूँ ?! वो चिढ गयी थी। 


काफी देर हो गयी थी ।कोई स्टेशन भी आ गया था ,ट्रेन रुकी हुई थी मगर अभी तक मोहन लौटा नहीं था, विधि इधर उधर कोच मे झांकने लगी "कहां चला गया, इडयट ।", तभी एक स्मार्ट ,गोरा,खूबसूरत सा लड़का, रेबैन का चस्मा, बैक पैक लगाये और मोहन की सीट पर आकर बैठने लगा," एक मिनट मिस्टर ,ये रीजर्व सीट है। " विधि ने अपने दोनो हाथ उस सीट पर रख दिये । "ओके-ओके" अपने दोनो हाथ उपर हैंडस अप की मुद्रा मे उस लड़के ने खड़े कर दिये।तब विधि को अह्सास हुआ की उसने शायद उसे डाँट दिया था। अचानक वो लड़का बड़ी जोर से खुशी मे चहका "अरे मेरी जान!!! कहां रह गया था यार!!" और विधि के बगल मे आकर उसने किसी को गले लगाया। विधि ने देखा ,मोहन था।



"उधर मत बैठ, रीजर्व है!!!" उस लड़के ने बड़े तल्ख अन्दाज़ मे विधि की ओर इशारा कर्ते हुए मोहन को कहा। मोहन ने विधि को देखा" रियली!!?" और मुस्कराया। "जफर मीट.... " मोहन झुका और धीरे से विधि के कान मे फुसफुसाया " तुम्हारा नाम क्या है यार ,बता दो , नही तो बेइज्जती खराब हो जायेगी " विधि को उम्मीद नही थी की मोहन ऐसे उसके इतने करीब आकर कान मे कुछ फुसफुसाएगा। उसे कानों मे गुदगुदी लगी । धीमी आवाज मे "विधि" कह कर वो एक तरफ हो गयी। " विधि ये जफर है हम दोनो सागर मे रहते हैं ,भोपाल मे एक ही अकेडेमी मे हैं, सागर जगह जानती हो ? भोपाल से आगे।" विधि चुप रही । जफर और मोहन कोच मे कुछ आगे जाकर खड़े हो गये ।


" मिल गया जनाब को साथी,शुक्र है पीछा छूटा।"विधि का दीमाग बोलने लगा। तभी "इतनी जल्दी पीछा नही छोड़ने वाला मैं, अभी भोपाल दूर है " कहते हुए मोहन फिर सामने की सीट पर आकर बैठ गया। विधि आश्चर्य मे उसे देख रही थी। वो रास्ते भर उसे अपने बारे मे बताता रहा की पिता विक्रम चलाते है,उसकी माँ घरों मे काम करती है, । दीदी की शादी मे छुट्टी पर आया था। उसकी ट्रेनिंग 6 महिने मे पूरी हो जायेगी वगैरह वगैरह। विधि को अब उसका बात करना अच्छा लग रहा था। सच बहुत बोरिंग होता ट्रेन मे अकेले बैठे- बैठे । " तुम अपना भी कुछ बताओ?!" विधि ने भी बताया "पी जी हो गया है, अभी सी डी एस के इंटरव्यू के लिये जा रही हूँ देखो क्या होता है?", " उन्हूं, तुम्हारा सिलेक्शन तो होगा पर आगे कुछ होगा नहीं" विधि को ये कतई अच्छा नही लगा। उसके चेहरे के भाव पढ़ते ही वो बोला " एक मिनट यार !!तुम पूरी बात सुने बिना रीअक्ट क्यूँ करती हो?!", " सीरियसली, कीप यौर माऊथ शट " विधि ने बेहद नाराजगी मे कहा " तुमने इस फील्ड मे जाना ही नही है", उसकी हथेलियों को ,हाथों मे लेकर बोला " साहित्यिक क्षेत्र या जहाँ पढ़ने लिखने का काम हो वहाँ जौब करोगी, और बहुत अच्छा करोगी।" विधि ने अपना हाथ छुड़ा लिया।वो और भी जाने क्या-क्या बोलता चला गया मगर विधि को अब उसकी किसी बात पर इंटरेस्ट नही था। "अच्छा छोड़ो ये सब, भोपाल आने वाला है,फिर तुम अपनी मंजिल मैं अपनी मंजिल को होंगे ।"विधि ने मोहन की ओर देखा। ,मोहन अपनी गर्दन पर हाथ फिरा रहा था । विधि को उसे देखता ,देख ने मोहन दूसरी ओर देखना शुरु कर दिया । विधि ने फिर मुह खिड़की की ओर कर लिया ।


कुछ देर की खामोशी के बाद अचानक मोहन बोला " मैं कॉफ़ी अच्छी बनाता हूँ, पियोगी?!" ," कोफ्फी!!?", " हाँ, मैं पूरी तयारी से चलता हूँ ,कहीं रहूँ कोफ्फी दिन मे एक बार जरूर पीता हूँ, हाँ थोड़ा महंगा शौक है मगर शराब गुटका सिग्रेट से लाख बेहतर है ।" कह्ते-कहते विधि के सामने उसने अपनी हॉट वॉटर बॉटल से गरम दूध, गिलास और बॉटल के कप मे डाला। कॉफी के सेसे और चीनी फेंट कर दो कॉफी बना डाली। " लीजिए विधि मैडम!!! आपके पहले अकेले सफर की ऐसे, ये आपकी पहली कोफ्फी होगी।", सॉरी आई कान्ट हैव ईट"," समझ गया,लो" उसने गरम-गरम कोफ्फी, गिलास ऊंचा करके थोडी सी पी और कुछ देर रुक कर बोला " मुझे कुछ हुआ क्या ?!" ,"नहीं ऐसी कोई बात नहीं,बस मुझे दूध और मीठा ज्यादा पसंद नही ।", " एक बात कहूँ ,तुमको मैं शुरु से फिल्मी लग रहा हूँ न!? मगर ये बात फिल्मी नही है।" विधि ने सवाल भरी नजर से देखा ।" तुमको मैने जब तुम्हारे पापा के साथ देखा था तभी तुम्हारी तरफ एक जबर्दस्त खिंचाव सा महसूस हुआ।" विधि मे उसको देखा" तुम वाकई फिल्मी हो,बकवास बन्द करो।", वो मुस्करा के रह गया। 



खिड़की से भोपाल का स्टेशन नजर आने लगा था ,ट्रेन आऊटर पर खड़ी हो गयी।"तुम्हारा लगेज लाओ निकाल दूँ " कह कर मोहन उसका सूट केस निकलने लगा।विधि भी उसका समान बटोरने लगी। "अच्छा सुनो, ये मेरे घर का पता है और मेरा अकादमी का भी।कभी याद आये तो लेटर लिखना।" उसने अपनी जेब से पेन और छोटा नोट पैड निकला और कुछ लिख कर नोट पैड से कागज फाड विधि की ओर बढ़ा दिया । विधि के एक हाथ मे मोहन का झोला था 

और दूसरे मे उसका पर्स । मोहन ने उसके पर्स 

में वो कागज डाल दिया और अपना झोला ले लिया।

ट्रेन फिर चल पड़ी,और स्टेशन पर आ कर रुकी। उतरने से पहले मोहन बोला" एक आखिरी बात बताऊँ?! तुम्हे मेरी याद जरूर आयेगी देखना ", " अब बस करो कितना फिल्मी होगे , गुड लक तुम्हारे फ्यूचर के लिये ।" मोहन मुस्कराया " तुमको भी विधि, अच्छा लगा तुमसे मिल कर। जैसी भी हो मगर तुम याद रहोगी"।


विधि के चाचा जी और कजिन उसे रीसीव करने आईं थीं। वो नीचे उतरी ,उसकी बहन दौड़ कर उसके गले लग गयी" वैल्कम दी,यकीं नहीं हो रहा की तुम अकेले आ गयीं।" विधि ने चाचा जी को प्रणाम किया । ट्रेन की सीटी बजी , विधि ने पलट कर देखा मगर उसे मोहन नजर नही आया। वो फिर इधर-उधर देखने लगी मगर मोहन जैसे अचानक से उसके सामने आकर बैठा था वैसे ही ओझल भी हो गया था ।" किसे ढूंढ़ रही हो?" चाचा जी ने पूछा , " जी चाचा जी एक दोस्त भी था साथ मे " विधि के मुँह से निकल गया।, "ओके , कूलीऽऽऽ" , चाचा जी कूली को बुलाने चले गये।


विधि ने आखिरी बार मोहन को एक नजर ढूंढना चाहा, मगर वो नही दिखा। थोडी ही देर मे" अच्छा दी उधर देखो , वो तो नहीं आपका दोस्त ?! " कजिन ने कुछ दूरी पर बैंच की ओर इशारा किया ।विधि ने देखा मोहन वहाँ बैठा उसे मुसकराते हुए देख रहा था। "कसम से पूरा फिल्मी है ये ", विधि सोच कर मुस्कराई , मोहन ने फिर इशारा किया " लेटर लिखना।" और वो उठ कर चल दिया ।


विधि का सिलेक्शन तो हुआ मगर टॉप 21 मे वो नहीं आई।उसने गुस्से मे मोहन का दिया कागज बिना पढ़े ही फाड़ कर फेंक दिया।समय बीतता गया, उसे मोहन की बाते याद आती। मोहन की कही एक एक बात सही हो रही थी । अब विधि का करियर वही था जो मोहन ने कहा था। एक उसे टूट कर चाहने वाला 'अखिल' भी उसकी जिन्दगी मे था, मगर विधि को मोहन के साथ की वो ट्रेन की मुलाकात भुलाए न भूलती । वो जिन्दगी का पहला अकेला सफर ,एक ख्वाब सा था जिसमे मोहन ही मोहन था । अक्सर सोचती की काश उसने गुस्से मे वो कागज न फाड़ा होता। इस वजह से विधि को जब अखिल ने प्रोपोस किया उसने मोहन के बारे मे बता कर उसके साथ ऐसे किसी रिश्ते मे आगे बढ्ने से इन्कार कर दिया।इस बात पर अखिल हैरान भी था की महज एक मुलाकात की याद पर वह रुकी हुई है। उसने एक अच्छे दोस्त की तरह बाद मे कई बार उसे समझाना चाहा मगर वो खुद को जैसे भटकते देना चाहती थी। आखिरकार विधि के कसम दिलाने पर अखिल ने अपना घर बसा लिया। 

कई बरस बीत गये। एक सुबह उसे पता चला की उसे एक सेमिनार मे विभाग की तरफ से प्रतिभाग करना है , जिसके लिये उसे तुरन्त मुंबई निकलना होगा ।इसलिये आज वो मुंबई की फ्लाइट मे थी। फ्लाइट मे चढ़ते ही उसने देखा काफी सीटस वेकंट थी। उसके पास की विंडो सीट भी खाली थी।वो उस सीट पर जा कर बैठ गयी ।उसके दिल मे फिर वही आस उठी जो हर यात्रा पर जाने पर उसके दिल मे हूक उठाती थी कि शायद किस्मत उसे फिर से इन रास्तों मे कभी मोहन से मिला दे । फ्लाइट के टेक ऑफ़ करने के बाद उसे एयर होस्टस ने को बुला कर कहा "कॉफी प्लीज"।होस्टस बहुत विनम्र भाव से कुछ ही देर मे कॉफ़ी ले आई। 


"तो अब कॉफी पीने लगीं विधि मैडम!!?" एक फुसफुसाती आवाज ने उसके कानो मे कहा। विधि को लगा की फिर मोहन की याद ने उसे छेड़ा है । "मोहन!!!" एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ उसके मुहँ से निकला ।


"कमाल है विधि !! मेरी आवाज याद है तुम्हे!?" अब विधि चौंक गई उसके दीमाग ने कहा ' ये भ्रम नही हो सकता!!' उसने सर घुमा कर देखा।


बगल मे मोहन उसकी सीट पर झुका उसे देख रहा था। विधि सन्न सी उसे देख रही थी ।ये वाकई मोहन था, हल्की नीली शर्ट में।चश्मा लग गया था और कुछ भर भी गया था जिसकी वजह से रंग भी साफ सा लग रहा था। विधि को बेहद खुशी भी हो रही थी और उसे यकीं भी नही हो रहा था।" तो मैडम ,क्या मैं यहांं बैठ सकता हूँ?!" मोहन अपने उसी फिल्मी अन्दाज़ मे था।विधि वैसे ही मुस्काई जैसे सालों पहले मुस्काई थी। 


कुछ देर दोनो ने इधर उधर की बातें की , एक दुसरे को अपनी जिन्दगी, जौब प्रोफाइल और फ्लाईट मे होने की वजह बतायी। मोहन की भी शादी नही हुई थी ,बकौल उसके उसे "विधि" जैसी कोई नहीं मिली। 

मोहन अब पोलिस डिपार्टमेंट मे ऊंचे ओहदे पर था, किसी केस के सिलसिले मे लखनऊ आया था और अब मुंबई जा रहा था। कुछ देर बाद विधि बोली " मुझे अब भी यकीं नही हो रहा की तुम और मैं साथ बैठे बात कर रहे हैं" , " एक बात बताओ, तुम्हे मैने एक कागज दिया था न ? ।"मोहन ने गम्भीर हो कर पूछा , विधि खामोश हो गयी । "तुम्हारा सलेक्शन नही हुआ और तुमने मेरा कागज स्वाहा कर दिया , है न!" ," सॉरी मोहन पर उसके बाद ....."," बहुत पछ्ताई होगी तुम , यही न!"।"तुम कैसे सब जान लेते हो .....हाँ सच मे ! बहुत याद आती थी तुम्हारी" विधि ने मन ही मन में कहा। "यार मैने बहुत मिस्स किया तुमको पर तुमको कहां ढूँढ़ता? फिर तुम्हारी दो साल पहले एक रचना अखबार मे पढ़ी, साथ मे तुम्हारी तस्वीर भी थी ।", "और उस से तुमने मुझे पहचान लिया?! झूठे !!! थोड़ा कम फिल्मी हुआ करो", " अरे यार !! फिर वही बात,पूरी बात सुना करो ,तुम थोड़ा सा गोलू-मोलू जरूर हो गयी हो मगर ये तुम्हारा तिल यहीं है, और तुम्हारी तुनकमिज़ाज़ी झलकती है तुम्हारे किरदारों मे। ", मोहन ने उसके गालों को हल्के से छुआ। विधि ने फिर उसका हाथ झटक दिया "बीहेव।"तब उसके कान मे फिर लगभग फुसफुसाते कहा।" बाई द वे, मैने अपनी कहानी भी पढ़ी है ।"

दुनिया जहां की बातों में समय कब बीत गया पता ही नही चला। फ्लाईट से उतरने के बाद दोनो एयरपोर्ट से बाहर निकले।मोहन के पोलिस डिपार्टमेंट से उसके सब ओर्डीनेट उसे रीसीव करने आये थे। विधि को उसने अपनी एम्बस्डोर मे साथ लिया। 

"कब तक हो यहां ?" अपने आई फोन पर देखते हुए उसने पूछा ,"बस कल शाम वापस", " नही। तुम कल नही जाओगी,मेरे साथ परसों चलना।", "ओके-ओके!!", मोहन ने उसकी आँखों मे देखते हुए कहा था । "पर तुम वापस लखनऊ?! क्यूँ ?! तुम्हारी पोस्टिंग तो जम्मू है न!? " ,"हद है विधि!!! मैं फिर तुमको पता दूँ और तुम फिर किसी बात पर ..... तो तुम्हारी चिट्ठी तो मिलने से रही।" विधि बेहद शर्मिंदा महसूस कर रही थी कि मोहन ने उसका हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा " हम दोनो का पता एक करने के लिये अब मुझे ही कोशिश करनी पड़ेगी न !!"




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