कुमार संदीप

Tragedy

5.0  

कुमार संदीप

Tragedy

कोल्डड्रिंक

कोल्डड्रिंक

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सूर्य के असहनीय किरण का वेग सहन करते हुए अनाथ गोविंद ठेले पर शिकंजी बेच रहा था। आज पूरा दिन गुज़र गया, "मगर दिन भर में मात्र बिक्री हुई 100 रूपये। गोविंद जहाँ पर ठेला लगाता था, वहीं पास में कोल्डड्रिंक्स का बड़ा-सा दुकान था। भला इस दौर में पैसों की अहमियत वही समझ सकते हैं, जो दिन भर पसीने बहाकर मेहनत से पैसे कमाते हैं। प्यास बुझाने के लिए सभी पैसे वाले अमीर घराने के लड़के कोल्डड्रिंक ही पीते हैं। गोविंद की शिकंजी की ओर वे सभी झाँकते भी नहीं थे! गोविंद प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करता कि 'हे' ईश्वर आज बिक्री अच्छी हो जाए। तभी तो बहन मुन्नी की शादी अच्छे से करूंगा! आखिर माता-पिता के गुज़र जाने के बाद, मैं ही तो मुन्नी का माता-पिता हूँ। ये ज़ालिम दुनिया बिना दहेज़ के बेटे की शादी भी तो नहीं करती है।

सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन तो, मुझे स्वयं ही करना है। गरीबी की मार भला क्या कम थी, जो ईश्वर आपने मुझे अपाहिज बनाकर भेजा। भला ऐसा जीवन आप देते हीं क्यूँ हैं किसी ग़रीब को!

ठेले पर शिकंजी बेचते हुए, अनगिनत प्रश्न ईश्वर से प्रार्थना करते वक्त वह कह रहा था। कोल्डड्रिंक के सामने गोविंद का शिकंजी फिका पड़ चुका था।

अमीर व्यक्ति महँगे सामानों को ख़रीद कर अमीरी का प्रदर्शन करते हैं। क्या उनका ह्रदय द्रवित नहीं होता है? कि एक ग़रीब ठेले पर रोज़ धूप की तपिश को सहन कर सामान बेच रहा है, तो हम उसी से सामान खरीदें। मगर भला इस कलयुग में गोविंद जैसे अनेक निर्धनों के दर्द को कौन समझता है।


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