Ragini Pathak

Inspirational

4.7  

Ragini Pathak

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कंजूस जेठानी

कंजूस जेठानी

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"मान गयी,मैं तो आपकी भाभी(रमा) को,सच मे हद है उनकी कंजूसी की"

"आज तो मैं भी घरवालों की बात से सहमत हो गयी कि भाभी को इस कंजूसी की आदत लग गयी है। भला कोई महिला कैसे बाजार से अपने लिए बिना कुछ खरीदे खाली हाँथ झुलाये आ सकती है।मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा।आखिर किस बात की कमी है,भाभी को"शॉपिंग से लाये सामानों को कमरे में रखते हुए आश्चर्यचकित होती राधिका ने ये बात अपने पति राहुल से कही।

राहुल-"देखो राधिका तुम छ: महीने से देख रही हो, मुझे उनकी कंजूसी देखते-देखते 12 साल हो गए।वो हर चीज बड़े ही हिसाब-किताब से करती हैं,यहाँ तक कि बच्चों पर भी खर्चा उतना ही करती हैं जितना उनको सही लगता है।क्या मजाल जो बच्चों को एकसाथ दो खिलौने दिला दें।कितनी बार उनके और भैया के बीच इस बात को लेकर झगड़े होते हैं।भैया कितना समझा चुके की क्या पैसे मरने के बाद साथ ले जाओगी तुम,लेकिन उनको कोई फर्क नहीं पड़ता, चुपचाप बस सुनती रहती हैं।

राधिका-"हम्म, हो सकता है कि उनकी शादी से पहले परवरिश ही ऐसी हुई हो। हमे क्या करना उनकी मर्जी"

अगले दिन दोपहर में राधिका ने रमा को अकेले कमरे में बैठकर कुछ लिखते हुए देखा।उन्हें अकेला देखकर राधिका ने उनके कमरे के दरवाजे को खटखटाया

"भाभी अंदर आ सकती हूँ।"

"रमा-अरे! राधिका तुम आओ ना,इसमें पूछने की क्या बात है?"

राधिका कमरे में गयी तो देखा,कि रमा डायरी में ख़र्चे का हिसाब-क़िताब लिख रही थी।

"भाभी आप हिसाब लिख रही हैं।किसको देना है,क्या भाईसाहब आपसे हिसाब लेते हैं?"

रमा-"नहीं तो ये तो मैं खुद की जानकारी के लिए लिख रही थी।"

राधिका-"हद है भाभी सच मे,आप तो आज मुझे आपसे ये राज जानना ही है कि इतनी कंजूसी किस लिए भाभी।आपकी सरकारी टीचर की नौकरी है। आपको बुढ़ापे में पेंशन भी मिलेगी,भगवान की दया से दो बेटे हैं सिर्फ, बेटियां भी नहीं जिसके लिए आपको दहेज इकट्ठा करना है। हमारी तो एक ननद भी नहीं जिसे हमे नेग देने का खर्चा हो,माँजी-बाबुजी सबको मिलाकर सिर्फ आठ लोग हैं हमारी फैमिली में और हम चारो कमाने वाले।फिर भी आप इतना क्यों सोचती हैं खर्च करने से पहले।"

मुझे और राहुल को देखिये। प्राइवेट नौकरी है लेकिन फिर भी दिल खोलकर खर्चा करते हैं हम दोनों।जब जो मन करे खाओ,पहनो खरीदो।और जो है आज है कल का क्या भरोसा कल हो ना हो। मेरी बात मानिए तो आप भी यही करिए।

"अरे!किसको समझा रही हो बहू,रमा को समझाना और पत्थर पर अपना सिर मारना एक समान है।जो काम हम सब 12 साल में नहीं कर पाएं वो तुम क्या कर पाओगी।" व्यंग्य करते हुए बोल पड़ी सासु मां सरिता जी।

"अरे!माँजी आप कब आयीं मैं तो यू ही बस भाभी से बात कर रही थी।" लड़ाई और गुस्से के डर से सकपकाई सी जेठानी की तरफ़ देखती हुई बोली राधिका।

रमा-"माँजी आप,आइये ना बैठिए। हाँ तो राधिका तुम क्या कह रही थी कि इतनी कंजूसी क्यों?"

तो मेरी बात ध्यान से सुनना क्योंकि जो मैं करती हूं उसे मेरी नजर में कंजूसी नहीं कहते।जानती हो राधिका आज से कुछ साल पहले मेरे माता-पिता भी यही सोचते थे।इसलिए उन्होंने कभी कोई बचत नहीं की।जो थोड़ा बहुत बचत था,वो सब मेरी शादी में खर्च कर दिया। पापा का मानना था,कि दो बेटे हैं।आगे चलकर सब सम्भाल लेंगे।

लेकिन कहते है कि वक्त बदलते देर नहीं लगती,दोनो भाइयों की भी शादी हुई बड़ी भाभी के जब दूसरा बच्चा हुआ,तो बड़े भाई का एक्सीडेंट में देहांत हो गया।अब घर की सारी जिम्मेदारी छोटे भाई पर आ गयी, और छोटे भाई ने भी शुरू के महीनों में थोड़ा बहुत तो किया,लेकिन फिर जिम्मेदारी से बचने के लिए वो भी अलग हो गया।आज मेरे मम्मी पापा को इस बार का पछतावा होता है।

जब शादी करके ससुराल आयी तब से आजतक यही देख रही हूं कि ज्यादातर फिजूलखर्च किये जाते हैं। सिर्फ समाज में दिखावे के लिए कभी दो साल में फ्रिज बदल दिया जाता है,तो कभी मोबाइल।एक इंसान को दो मोबाइल क्यों चाहिए?ये सब फालतू खर्चे नहीं तो और क्या है।

अब रही बात बेटा-बेटी की तो क्या बेटों को पढ़ाने और बड़ा करने में पैसे नहीं लगते।उनके स्कूल फीस से लेकर कपड़े तक सब कुछ पैसों से ही आता है।ये हमारे नजरिये और सोच का फर्क है,कि बेटी की माँ का खर्चा ज्यादा होता है।बेटो को माँ का कम होता है। वैसे ये मेरी सोच है,क्योंकि मेरा मानना है,कि कुछ खोने के बाद हम सबक लें इससे अच्छा की पहले ही सीख ले।

वैसे छोड़ो इन बातों को बताओ कि डॉक्टर ने फिर कब बुलाया है और अब अपना ज्यादा खयाल रखा करो।माँ बनना भी बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है।

जवाब में राधिका ने हम्म कहा और वहाँ से चली गयी।

 रमा कुछ दिनों से देख रही थी,कि राधिका और राहुल किसी बात से परेशान हैं। एक दिन रमा ने मौका पाकर पूछा तो पता चला कि कम्पनी में घाटे की वजह से ऑफिस में स्टाफ की छटनी शुरू हो गयी और दोनों की नौकरी चली गयी है।

रमा ने राधिका को हौसला देते हुए कहा,"कि तुम चिंता मत करो मैं हूं ना।"

 उसके बाद एकदिनसरिता जी को अचानक रात में दिल का दौरा पड़ा,आनन-फानन में अस्पताल लेकर गए तो डॉक्टर ने कहा"हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी।"

इतना सुनते रमा के पति उमेश और राहुल अपना सिर पकड़ कर बैठ गए,रमा को जब ये बात पता चली तो उसने उमेश को अपना कार्ड दिया और कहा जाकर पैसे जमा कर दो सरिता जी की सर्जरी हुई ही थी कि इधर समय से पहले राधिका को प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी।

अस्पताल में राधिका ने सातवें महीने ही ऑपरेशन से प्री मैच्योर बेटे को जन्म दिया। बच्चे को एनआईसीयू में रखा गया। इस तरह आयी मुसीबत ने पूरे घर को आर्थिक और मानसिक तौर पर हिला कर रख दिया।

एक दिन रमा के ससुर जी ने कहा "बड़ी बहु हम गलत थे तुम कंजूस नहीं हो,आज तुम्हारी वजह से ही हमे दो वक्त की रोटी नसीब हो पाई वरना क्या होता ये तो भगवान ही मालिक था।" तभी पीछे से राहुल और राधिका ने कहा "हाँ बाबुजी, आप बिलकुल सही कह रहे हैं।"

राधिका ने कहा "भाभी आप सही थी हम ही नहीं समझ पाए कि हमारा कल हो ना हो लेकिन हमारे अपने तो रहेंगे ही ना और हमारी आज की बचत ही कल हमारे या परिवार के काम आएगी। ये महंगे ब्रांडेड कपड़े, पॉकेट में दो-दो फोन, महंगा इंटीरियर हमारे दुख में काम नहीं आएगा, ना ही जिस समाज को दिखाने के लिए हम ये सब कुछ करते है वो हमारे काम आएगा।"



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