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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

कमाई पर डाका

कमाई पर डाका

2 mins
360

आज ऐसे ही घर मे टीवी के सामने बैठकर हम बातें कर रहे थे।किसी एक ने कहा,"चोरी चोरी होती है,चाहे छोटी हो या बड़ी।"

भाई ने कहा,"नही,नही!! बड़ी चोरी को डाका कहा जाता है।"और हम सब लोग हँस पड़े।त्योहारों के दिन थे।हम सब छुट्टियों में घर आये हुए थे।माँ बेहद खुश थी। एक एक की पसंद का ख़याल रखते हुए तरह तरह के पकवान बनाये जा रही थी।पूरे घर में त्योहार की खुशियाँ देखते ही बन रही थी।परिवार के सब लोगों का इकट्ठा होकर खाने पीने के साथ हँसी ठट्ठा और गुफ़्तगू का दौर भी चल रहा था। बातें भी कैसी कैसी ! कोई पलायन की बात कर रहा था तो कोई इकोनॉमी की !माँ ने कहा, "तुम लोग अपनी बातें करो। मैं जरा सुस्ता लेती हूँ।" सब ने एक सुर में कहा, "हाँ, हाँ !! वाक़ई आप थक गयी होगी। 

जबकी बात इकोनॉमी पर हो रही थी तो किसी ने कहा, "सरकार अगर औरतों के श्रम को सर्विस सेक्टर में काउंट कर उसपर सर्विस टैक्स लगा दे तो मंद पड़ी इकोनॉमी की रफ़्तार को गति मिल सकती है।"

सब लोग उसकी बात पर हँसने लगे।मैं सोच में पड़ गयी।वाकई अगर ऐसा है तो सरकार का कितने सारे टैक्स का नुकसान हुआ है ! क्योंकि सदियों से औरतें दिनभर काम करती रहती है......

लेकिन यह क्या ? 

मैं कैसे सोच रही हूँ यह सब? मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूँ? सरकार की टैक्स की बारें में सोच रही हूँ लेकिन औरतें सदियों से बिना किसी मुआवज़े से घरों मे काम करती जा रही है उनके बारें में किसी ने भी नही सोचा।मैनें भी नही सोचा।

क्या कहे इसे? 

स्वार्थ या फिर नासमझी? 

सरकारों के लिए टैक्स की चोरी हो गयी लेकिन मेरे जैसे हर घरवालों ने औरतों की कमाई पर डाका ही तो डाला है न?

आप क्या कहते है? क्या मैं ग़लत कह रही हुँ?

 क्या ख़याल है आपका इस बारे में?


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