कल्पित बहाना की तड़प
कल्पित बहाना की तड़प
सरोज रोड पर अपनी गाड़ी को जोर से दौड़ा रहा था उसे अपने प्रेयसी से मिलने जाना जो था I
जब भी चौक आता वह खीझ जाता घड़ी को देखता I मोबाइल की ओर हाथ बढ़ाता पर बात करने का साहस न करता क्योंकि वह दस बार झूठ बोल चुका था कि बस वह पहुचने ही वाला है, I
यहां वे पाठकगण जो इस तरह मोबाइल पर झूठ बोलते हैं वे भली भाँति जानते हैं कि मोबाइल ऐसा जरिया है जिसमें दिल्ली को बाम्बे बता कर किस तरह काम को टाला जा सकता है I कहने का मतलब अपना काम बना या निकाल लेना I
पर सरोज का ये चाल आज उसी पर भारी पड़ गया था I हुआ यों की कल्पना जो सरोज की प्रेमिका थी आज सबेरे ही मोबाइल पर बात की और पूछा कि
"सरोज तुम कहाँ हो I तुम से कुछ काम था I"
सरोज ने सोचा कि कहीं कल्पना अभी आने के लिए न बोल दे ,क्योंकि वह उस वक्त जाना नहीं चाहता था I बोल दिया -- "मैं रायपुर में हूँ कल्पना मैं आज नहीं आ पाउंगा I कल मिलेंगे .और कुछ बताओ सब ठीक तो है ।नाराज मत होना मैं शाम तक आ जाऊँगा I "
कल्पना आश्चर्य होकर कहीं- "सच" अरे मिस्टर मैं भी तो यहीं हूं I चलो अभी आ जाओ हम साथ साथ मस्ती करते जाएगें क्योंकि मेरा काम हो गया है और मैं बस यहां से निकलने ही वाली थी I"
सरोज हड़बड़ाहट से बोल न पा रहा था वह उसे पसीने आने लगे जहां वह था वहां से रायपुर सौ किलोमीटर की दूरी से कम नहीं था I
वह सच बोल कर कल्पना के नजर में गिरना नहीं चाहता था ,I वह सोच में पड़ गया कि क्या किया जाये I इसी उधेड़ बुन में मिनट बीत गए वह सोचने लगा कि काश कल्पना फिर फोन कर कह दे की सरोज मैं जा रहीं हूं, I तुम अपना काम करके फुर्सत से आना ।
तभी मोबाइल का रिंग टोन बज उठा राकेश को लगा मानों उसके सोच सच होने वाले हों वह झट से काल रिसीव किया तभी कल्पना की आवाज सुन आवाक रह गया कल्पना कह रही थी --" राकेश कितनी देर लगा दी मैं अकेली यहां खड़ी हूं I नहीं आना है तो बोल दिए होते अब तो कोई साधन भी नहीं है तुम्हारे आशा में सब का टाइम्स मिस कर दिया I "
राकेश की हालत काटो तो खून नहीं जैसा हो गया वह अपने ही बातों में फंस गया था I
उसने गाड़ी निकाल रोड पर हवा से बात करने लगा पर बीच बीच में कल्पना का फोन को रिसीव करना I
वह मन ही मन सोच लिया कि अब वह कभी मोबाइल से झूठ नहीं बोलेगा I बस आज भगवान बचा ले I
