Priyanka Gupta

Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational

कलेक्टरनी बहू

कलेक्टरनी बहू

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"मम्मी, आप ही पापा को समझाओ न। अभी 2-3 महीनों में मेरे PCS की मुख्य परीक्षा का परिणाम आ जाएगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि, मेरा चयन साक्षात्कार के लिए हो जाएगा। बस थोड़े से दिन और शादी की बात भूल जाइये। " रोली ने अपनी मम्मी के पास पापा तक उसकी गुहार पहुँचाने की अर्ज़ी लगाई।

रोली एक 25 वर्षीय पढ़ी-लिखी, सपने देखने वाली युवती है। रोली एक प्रतिभाशाली छात्रा रही है, शायद अगर छात्र होती तो जिन्दगी में कहीं और होती। रोली अपने पापा के कारण भोपाल, NIT में पढ़ने से वंचित रह गयी थी। रोली ने प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी, काउंसिलिंग के लिए फॉर्म भरकर पापा को दिया था और पापा ने उसकी वरीयताएँ बदल दी। रोली को मन मारकर अपने अजमेर शहर के वीमेन इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेना पड़ा था।

रोली का कैंपस सेलेक्शन भी हो गया था, लेकिन पापा ने घर से बाहर भेजने से इंकार कर दिया। रोली ने फिर सिविल सर्विसेज की तैयारी का निर्णय लिया। पापा ने यह सोचकर अनुमति दे दी थी कि, " सिविल सर्विसेज की तैयारी घर पर ही रहकर कर लेगी। लोगों में नाम होगा कि अग्रवाल जी अपनी बेटी को कितना प्रोत्साहित करते हैंउसे तैयारी करा रहे हैं। घर की घर में रहेगी तो शादी के लिए लड़के से मिलवाना भी आसान होगा। जैसे ही कोई अपनी हैसियत के अनुसार लड़का मिलेगा, इसकी शादी करवा देंगे। "

अपने पापा के मंसूबों से बेखबर रोली दिलोजान से परीक्षा की तैयारी में लगी हुई थी। एक तो PCS की रिक्तियां साल दो साल में आती हैं, दूसरा परीक्षा सम्पूर्ण होने की प्रक्रिया में ही सालों लग जाते हैं। रोली के लिए प्रथम प्रयास ही अंतिम प्रयास था। उसके लिए यह परीक्षा आर -पार की लड़ाई थी। रोली की मेहनत का फल भी उसे मिल रहा था।लेकिन असली सफलता अभी भी उससे थोड़ा दूर थी। इसी बीच इस लड़के रोहण का रिश्ता आ गया था।

घर और वर दोनों ही रोली के पापा को भा गए थे और अब वह इस लड़के से रोली की शादी करवाने का पूरा मंतव्य बना चुके थे।

लड़के -लड़की को मिलाना तो एक औपचारिकता मात्र थी। दोनों ही परिवार इस रिश्ते पर अपनी मुहर लगा चुके थे। शादी अभी कुछ समय तक टाली जा सके, इसके लिए रोली अपनी मम्मी से गुहार कर रही थी।

लेकिन रोली की मम्मी, उसके पापा को समझा नहीं सकी। " PCS के परिणाम कब तक आएंगे, इसका कोई भरोसा नहीं होता। इतना अच्छा रिश्ता फिर नहीं मिलेगा। लड़का और खानदान दोनों ही बढ़िया हैं। अगर रोली का चयन साक्षात्कार के लिए हो भी जाता है तो, शादी के बाद साक्षात्कार दे लेगी। PCS वालों ने शादीशुदा व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक थोड़े न लगा रखी है। ",अग्रवालजी, रोली के पापा ने कहा।

"PCS वालों ने तो नहीं लगा रखी, लेकिन अगर उसके ससुराल वालों ने लगा दी तो ?",रोली की मम्मी ने अपनी चिंता व्यक्त की।

"ऐसे लोग नहीं हैं। उनकी खुद की बेटी किसी बड़े कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रही है। लड़का भी अच्छा पढ़ा -लिखा है। रोली का पिता हूँ, उसका दुश्मन नहीं। उसके भले के लिए ही अभी शादी करवा रहा हूँ। उम्र बढ़ने के बाद अच्छे रिश्ते नहीं मिलते। बाकी तो रोली की किस्मत है। लड़के वाले आते ही होंगे, तैयारी करो। रोली को भी समझा देना, कोई आलतू -फ़ालतू बात न करे। ",ऐसा कहकर रोली के पापा चले गए थे।

रोहण बैंगलोर में एक आईटी कंपनी में अच्छे पैकेज पर काम करने वाला सुलझा हुआ लड़का था। रोहण अपने मम्मी -पापा के साथ रोली को मिलने के लिए आया। रोहन के मम्मी -पापा तो उसके चाचा -चाची, बुआ, मासी को भी साथ लाना चाहते थे। लेकिन रोहण ने यह कहकर इंकार कर दिया था कि, "इतने लोगों को ले जाकर, किसी लड़की को नुमाइश की वस्तु बना देना उसे पसंद नहीं है। "

रोहण और उसका परिवार अग्रवालजी के घर रोली से मिलने मतलब उसे देखने के लिए पहुँच गए।अग्रवालजी के घर पर बाकी की औपचारिकताओं के बाद रोली और रोहण को एक -दूसरे से बात करने के लिए भेज दिया गया।

रोली को भी रोहण सुलझा हुआ लगा। रोहण को भी रोली जीवन साथी के रूप में अच्छी लगी। रोली ने रोहण से बातों -बातों में पूछा था कि, "अगर आपकी पत्नी का राज्य सेवाओं में चयन हो जाए तो आप क्या करेंगे ?"

रोहण ने जवाब दिया, "अव्वल तो कोई उच्च पद पर आसीन लड़की, मुझ जैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर से शादी क्यों करेगी ?अगर कर भी ले तो निश्चित तौर पर मुझे या तो वर्क फ्रॉम होम लेना होगा या अगर वर्क फ्रॉम होम नहीं मिला तो, बैंगलोर की नौकरी छोड़कर, उसी राज्य में आकर रहना होगा।छोटी जगहों पर मुझ जैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए नौकरी हो भी सकती है और नहीं भी।हर बार पत्नी ही नौकरी क्यों छोड़े ?वह भी इतनी अच्छी नौकरी, जो इतनी प्रतिस्पर्धा के बाद मिलती है। जरूरत पड़ी तो मैं तो घर भी सम्हाल सकता हूँ।एक राज की बात बताऊँ ?"

"हाँ, बताओ न। ",रोली ने कहा।

"मैं तो खुद भी तैयारी करना चाहता था। लेकिन किताबों की इतनी लम्बी लिस्ट देखकर डर गया था। सही में इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले लोग किसी दूसरे ग्रह के ही प्राणी होते होंगे। ",अपनी बात ख़त्म करते हुए रोहण की मुस्कराहट हँसी में बदल गयी थी।

रोली भी रोहण की बातें सुनकर खिलखिलाने लगी थी। रोली को रोहण की बातों ने आश्वस्त सा कर दिया था।

दोनों के घरवालों ने दो महीने के अंदर रोली और रोहण का विवाह भी करवा दिया था। शादी के 15 दिन बाद ही रोली, रोहण के साथ बंगलोरे आ गयी थी। बैंगलोर आये रोली और रोहण को 15 दिन ही हुए थे कि, रोली का PCS का परिणाम आ गया। रोली का इंटरव्यू कॉल हो गया था। ख़ुशी के मारे रोली के पाँव, जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसने रोहण को अपने परिणाम के बारे में बताया। रोहण को आश्चर्य के साथ ख़ुशी भी हुई।

उसने कहा, "तुम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली। लेकिन अभी मेरे मम्मी -पापा को अपने रिजल्ट के बारे में मत बताना। "

रोली ने पूछा, " क्यों? उन्हें बताना जरूरी है, उन्हें भी तो अपनी बहु की उपलब्धि जानकार ख़ुशी होगी?"

रोहण ने समझाते हुए कहा, "जब तुम अंतिम रूप से चयनित हो जाओ, तब बताएँगे। नहीं तो अभी से सब तुम से उम्मीदें लगा लेंगे। उम्मीदें टूटें तो बहुत बुरा लगता है न?"

रोली ने कहा, "कह तो ठीक ही रहे हो।"

रोहण ने रोली को तो अपनी बातों से बहला लिया था। अभी किसी भी प्रकार का तनाव रोली के इंटरव्यू की तैयारी में बाधा डाल सकता था। रोहण जानता था कि उसके मम्मी -पापा चाहे प्रगतिशील होने की लाख दुहाई दें लेकिन अभी भी उन्हें यह मान्य नहीं होता कि बहु की नौकरी के लिए बेटा नौकरी छोड़े या वर्क फ्रॉम होम करें। उनके अनुसार तो वर्क फ्रॉम होम का मतलब हाउस हस्बैंड बनना था।

बेटा घर पर रहकर घर की देखरेख करें और बहु बाहर जाकर काम करें। यह तो उन्हें कतई स्वीकार नहीं था। यह तो धारा को विपरीत दिशा में मोड़ने की बात थी। उनका नज़रिया भी तो उनके परिवेश, समाज और कंडीशनिंग के आधार पर बना था। 

अगर अभी उन्हें रोली के चयन के बारे में पता चले तो शायद वह उसको इंटरव्यू ही न देने दे। बहु का पद, बेटे के पद से बड़ा उन्हें किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगा। बहू का दर्जा बड़ा हो गया तो बहू के परिवार वालों का दर्जा भी बड़ा हो जाएगा फिर लड़के वाले होने के अहंकार और श्रेष्ठ्ता का क्या होगा ?

जब पति -पत्नी आपसी समझ और चर्चा के आधार पर निर्णय करते हैं तब भी ऐसे जोड़े के प्रति समाज का नज़रिया यही रहता है कि, " पति जोरू का ग़ुलाम है। ", कभी कोई पति की हर बात को आँख मूंदकर मानने वाली पत्नी को तो 'शौहर की ग़ुलाम 'कहकर ताना नहीं मारता । हमारा नजरिया ही ऐसा बन गया है कि ग़ुलामी, चुप्पी, सिर्फ कर्तव्यों का पालन करना ही संस्कारी और अच्छी महिला होने का अर्थ मानते हैं।

खैर आगे जो होगा देखा जाएगा। लेकिन अभी तो रोली को पूरी तरीके से तनाव रहित रखना होगा ताकि वह अच्छे से तैयारी कर सके। अंतिम चरण पर पहुंचकर अगर चयन न हो तो कितना बुरा लगेगा रोली को।

रोली ने अपने मम्मी -पापा को अपने चयन के बारे में बता दिया था, इस हिदायत के साथ,  कि वे उसके सास ससुर से इस बारे में ज़रा भी चर्चा न करें।

रोली बैंगलोर में रहते हुए ही तैयारी कर रही थी। रोहण उसे घर के कामों में मदद कर देता था वाकई में बड़े काम तो रोहण ही करता था सलाद काटने, थाली पोंछने, डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने जैसे काम रोली करती थी। खिचड़ी, दलिया, पुलाव, दाल -चावल आदि आसानी और जल्दी से बनने वाला खाना बनाया और खाया जा रहा था।

रोली का साक्षात्कार अजमेर था अपने घर पर बिना बताये रोहण रोली को साक्षत्कार दिलवाने अजमेर ले गया। रोली का साक्षात्कार बहुत ही अच्छा रहा। उसे अंतिम रूप से चयनित होने की पूरी उम्मीद थी। रोली और रोहण वापस बैंगलोर लौट गए थे।

२ महीने बाद सुबह ६ बजे रोहण का फ़ोन बजा.........ट्रिंग।........ट्रिंग।........ट्रिंग रोहण ने उनींदी आँखों से फ़ोन की स्क्रीन पर देखा तो, पापा का नाम चमचमा रहा था। " आज पापा ने इतनी सुबह क्यों फ़ोन किया है ?घर में सब सही तो होगा न ",ऐसा सोचते हुए रोहण ने फ़ोन उठा लिया।

फ़ोन उठाते ही विस्फोट सा हुआ। "बरखुरदार अब इतने बड़े हो गए हैं कि घर के पास से चले जाएंगे लेकिन घर नहीं आएंगे। जयपुर आकर चले गए। वह तो आज के अखबार से हमें पता चला। ",रोहण के पापा फ़ोन पर दहाड़ रहे थे।

रोहण सोचने लगा अखबार से कैसे ?तब ही उसे याद आया कि, " पापा आपको बताने ही वाले थे। एक बार रोली का अंतिम रिजल्ट आ जाए यह सोचकर नहीं बताया था। रिजल्ट आ गया क्या ?"

तब तक फ़ोन माँ ले चुकी थी, " अभी भी तुझे उस कल की आयी लड़की की फ़िक्र है हम तो अब तेरे कुछ रहे ही नहीं। हाँ आ गया रिजल्ट। तेरी रोली ने टॉप किया है अखबार में फोटो भी आयी है। सुबह से कई लोगों के फ़ोन आ गए हैं। सब हम पर ताना कस रहे हैं। अब तो बहु कलेक्टरनी बन गयी है बेटा -बहु दोनों ही राजस्थान आ जाएंगे। अब बेटे को नौकरी की क्या जरूरत है ? बहु ऑफिस जायेगी बेटा घर देखेगा। बेटा, तू हमारी खूब जग हंसाई करवा रहा है। हमें पता होता कि महारानी जी कलेक्टर बनने के सपने देख रही हैं तो कभी तेरी शादी ही नहीं करवाते। "

रोहण ने कहा, " मां तुम तो चाहती थी कि मैं तैयारी करूँ। मैंने ही मना कर दिया था। तुम्हे तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारी बहु ने ही सही तुम्हारा सपना पूरा कर दिया। "

"तू ही खुश हो ले। जोरू का ग़ुलाम बनकर। मैं क्या इस बात की ख़ुशी मनाऊं कि मेरा बेटा अब मेरा नहीं रहा। ",माँ ने कहा।

" माँपत्नी अर्धांगिनी होती है यानी कि पति का आधा अंग तो अपने आधे अंग की उपलब्धि पर तो खुश होना चाहिए। पति चाहे रोली का बन जाऊं लेकिन बेटा तो तुम्हारा ही रहूंगा। माँ की जगह कभी पत्नी थोड़ी न ले सकती है। " रोहण ने समझाने की कोशिश की।

"अब तू बेकार की बातें मत बना। परीक्षा दे दी पास भी हो गयी लेकिन अब ज्वाइन करने का विचार उसके दिमाग से निकलवा दे। तू बैंगलोर में और वह यहाँ राजस्थान में गृहस्थी कैसे चलेगी। "माँ ने अंतिम पत्ता फेंकते हुए कहा।

"माँ, हम लोग दो दिन बाद जयपुर आते हैं फिर विस्तार से बात करेंगे। ",ऐसा कहकर रोहण ने फ़ोन काट दिया था।

रोली चुपचाप अपने आंसू जज्ब किये ,रोहण और उसके मम्मी -पापा की बातें सुन रही थी। रोली को यह तो एहसास हो गया था कि उसका चयन हो गया है और इस बात से रोहण के मम्मी -पापा खुश नहीं है वाकई में बहुत नाराज़ हैं ।

आँखों में आंसू भरे हुए रोली ने रूंधे गले से कहा, " रोहण इसे यही ख़त्म करते हैं। आप मेरे लिए वह कर रहे हो जो मेरे पापा ने भी नहीं किया। मेरे पापा भी शायद ऐसे ही रियेक्ट करते। हम मम्मीजी को अभी फ़ोन करके बोल देते हैं कि मैं ज्वाइन नहीं करूंगी। वैसे भी चयनित होना मेरा सपना था चयन के बाद नौकरी करूँ या न करूँ मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । "

" लेकिन मुझे फर्क पड़ता है।तुम केवल चयनित नहीं हुई हो तुमने टॉप किया है।तुम यह नौकरी, पद, प्रतिष्ठा सब डेसेर्वे करती हो। अगर तुम मेरी जगह होती तो मेरे सपने के लिए, तुम भी तो वही करती जो मैं करना चाहता हूँ। बहुत ख़ुशी -ख़ुशी करती। हमेशा लड़की ही नौकरी क्यों छोड़े?जब तुम्हें मुझसे बेहतर नौकरी मिली है तो मुझे अपनी नौकरी छोड़नी चाहिए। "रोहण ने कहा।

"लेकिन रोहण लोग क्या कहेंगे ?कहेंगे मैंने तुम्हे तुम्हारे घरवालों से दूर कर दिया। तुम मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान क्यों करोगे ? लोग मुझे कुसंस्कारी लड़की कहेंगे। ",रोली ने सुबकते हुए कहा।

" यह लोगों का नज़रिया है।स्त्री और पुरुष दोनों के समान निर्णयों को दो अलग नज़रिये से देखते हैं। स्त्री नौकरी छोड़े तो एक सामान्य घटना है जैसे उन्हें तो यही करना चाहिए। अगर उसी वजह से पुरुष छोड़े तो एक असामान्य घटना बन जाती है। यह कोई बलिदान -वलिदान नहीं है एक इंटेलीजेंट निर्णय है। सरकारी नौकरी ज्यादा सुरक्षित होती है दूसरा हमें हमारे लोगों के साथ रहने को मिलेगा। तुम मुझे मेरे घरवालों से अलग नहीं कर रही हो बल्कि उनकी खुद की संकीर्ण सोच और नज़रिया उन्हें हमसे दूर कर रहा है। धीरे -धीरे वे समझ जाएंगे कि उनका बेटा सही कर रहा है।", रोहण ने समझाने की कोशिश की।

" लड़की को बाहर काम करने की अनुमति मात्र मिल जाए हम लड़कियों के लिए तो उतना ही काफी होता है। तुम्हारी बातें तो पता नहीं किस स्तर की हैं। ",रोली ने अपनी बड़ी -बड़ी आँखों को और बड़ा करते हुए कहा।

" हम केवल नारों में स्त्री -पुरुष समानता की बात करते हैं। वास्तविक धरातल पर तो बहुत कुछ किये जाने की ज़रुरत है। लोगों के नज़रिये को बदलने की ज़रुरत है। लड़की को अनुमति क्यों मांगनी पड़े ? अनुमति अगर मांगनी पड़ती है तो उसका अर्थ ही यह है कि लड़की पर हम अपना एकाधिकार मानते हैं। लड़की जब बाहरी परिवेश से प्रभावित हुए बिना अपना निर्णय लेगी तब ही सशक्त होगी। मैं कोई महान कार्य नहीं कर रहा हूँ। अगर कल को मुझे तुमसे बढ़िया पद मिल जाए तो तुम भी वही करना जो अभी मैं कर रहा हूँ। " रोहण ने कहा।

" मैंने तो कभी इसपर गौर ही नहीं किया। मैं तो यही सोचती थी कि घर तो पूरी तरीके से लड़की की जिम्मेदारी है। लड़का चाहे तो मदद कर सकता है। ", रोली ने कहा।

" इसी सोच के कारण तो हर कामकाजी महिला से यही प्रश्न पूछा जाता है कि आप अपने घर और काम में तालमेल कैसे बिठाती हैं ? कभी किसी पुरुष से तो यह पूछा नहीं जाता। उसके बाद भी स्त्री -पुरुष समानताका ढोल पीटते हैं। ", रोहण ने कहा।

" तुम सही में 'ही फॉर शी' हो ", रोली ने रोहण के गले लगते हुए कहा।

" चलो, अब रेडी हो जाओ।मेरी अर्धांगिनी ने PCS टॉप किया है सेलिब्रेशन तो बनता ही है। मेरे आधे अंग की उपलब्धि मेरी ही तो उपलब्धि हुई। ",रोहण ने रोली का माथा चूमते हुए कहा।


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