किन्नर
किन्नर
एक छोटी सी झोपड़ी जिसे मडै़या कहना ही ठीक होगा उसमें सोया हुआ किशोर अपनी ही चिंता में मग्न था। वह समझ ही नहीं पाता था कि वह लड़का है या लड़की। कभी तो उसका मन खूब सजने -सवरने को करता तो कभी लड़कियों के साथ बातें करने का। अपनी इन्हीं सोचों में वह मशगूल था कि अम्मा आ गई वह चुपचाप पड़ा रहा तभी अम्मा ने कहा "किशोर उठ देख तेरे लिए कितनी सारी मिठाई लाया हूँ।" किशोर के पूछने पर बताया कि आज बड़े बाबू के यहाँ दूसरा लड़का हुआ है उसी की खुशी में मिठाई बंटी है, उसने अम्मा से पूछा "अम्मा क्या मेरे पैदा होने पर भी मिठाई बंटी थी?" मासूम से इस सवाल ने अम्मा को दुखी कर दिया पर, हँसते हुए कहा, हमें इंसान कब समझा गया बच्चे? हम पर भगवान का कोप है तभी तो माँ-बाप ही हमें -हम जैसों के हवाले कर देते हैं।
आज अम्मा भी मूड में थीं उन्होंने किशोर को ताली बजाने, गाना गाने, फूहड़ इशारे करने और नाचने की तालिम देनी शुरू की। कुछ सालों के बाद अब किशोर एक जवान आदमी था, किन्नरों की सारी बातें सीख गया था,और अम्मा बूढ़ी हो गई थी। एक दिन किशोर ज़िद पर आ गया कि अम्मा मरने से पहले उसके माँ-बाप का नाम बता दे, उसकी बड़ी इच्छा है जानने की।
अम्मा ने कहा "लेकिन तू मुझे वचन दे कि, यह जानकर तू बिल्कुल परेशान नहीं होगा और न उन सब को परेशान करेगा , तुझे अम्मा की सौगंध।"
फिर बताया इस गाँव के बड़े ठाकुर तुम्हारे पिता हैं और बड़ी ठकुराइन तुम्हारी माँ।
किशोर के आँखों के आगे से पर्दा हट गया। अब उसे समझ में आया कि ठकुराइन उसे अपलक क्यों देखती हैं, फिर रूआंसी सी घर के अंदर चली जाती हैं। ठाकुर साहब भी अक्सर उसे पैसे-रुपये क्यों देते रहते हैं। और किशोर भी एक अलग सा, खिंचाव उन लोगों के लिए क्यों महसूस करता है।
सब-कुछ साफ हो गया था काई की तरह। पर अब क्या फायदा? समय को तो लौटाना संभव नहीं था, था तो वह एक किन्नर ही।