किन्नर दीदी : Ep.1 (दुखती रग )
किन्नर दीदी : Ep.1 (दुखती रग )


शादी के 15 साल बीत जाने के बाद भी औलाद के सुख से वंचित दीनालाल और दमयंती ने हर डॉक्टर , हर देवी देवता , ना जाने कितने ओझे और फकीरों के दरवाजो पर अपना सिर झुकाया पर उन्हें हमेशा निराशा ही हाथ लगी ।
लेकिन एक दिन पड़ौस के बिरजू के यहॉं पोते की बधाई लेने आई किन्नर की टोली को जब बिरजू ने यह कह कर अपने घर में नही आने दिया कि जिनके यहॉं पोता हुआ था वो तो उनके किरायेदार थे और वो अब वहाँ नही रहते । किन्नरों ने जब हुड़दंग मचाया , गंदी गंदी गालियाँ दी और शोर मचा तब दमयंती बिरजू के घर के बाहर खड़े सभी किन्नरों को अपने घर ले आई । सबको सप्रेम खाना खिलाया ,भेंट दी और साथ ही किन्नरो की उस्ताद सबीना को 21000 रुपये देकर विदा किया । कहते है कि किन्नरों के आशीर्वाद और श्राप में बहुत बड़ी ताकत होती है ।
दमयंती की झुकी नज़रे और उनमें आये सुनी गोद के कारण नमी को सबीना ने पढ़ लिया था । उसने सारी भेंट स्वीकार की पर पैसे ये कहकर लौटा दिए कि ये कम है अगले साल ब्याज के साथ गोद भराई पर पूरे सवा दो लाख लूँगी ।
उसने जैसे ही गोद भराई की बात कही दमयंती बिलख कर रोई और सबीना के गले लग गई । तभी अंदर से दीनालाल बाहर आये और सबीना को हाथ जोड़कर बोले " दीदी अभी ये ले लो गोद भराई पर आप जो कहोगी वो मिल जाएगा । "
सबीना ने अपनी साथी किन्नरों को आवाज दी और फिर से बैठने को कहा साथ ही दमयंती से कहा " भाभी जी जरा चावल और हल्दी ले कर आओ , आपका शगुन कर ही देते है । "
दीनालाल के मकान के बड़े से हॉल में जब किन्नरों ने महादेव और बाकी देवताओं के भजन गाने शुरू किए तो पड़ौस से भी लोगो का ताँता लग गया । किसी को कुछ समझ नही आ रहा था ।
दमयंती चावल और हल्दी लेकर आई । सबीना ने अपने पास में लटके हुए बैग से एक डिब्बा निकाला जिसे वो खजाना कहते थे और उसमें से एक चांदी का
सिक्का और एक छोटा सा लाल कपड़ा निकाला , सिक्के पर तिलक लगाकर चावलों के साथ एक छोटे से लाल कपड़े में बांधकर दमयंती को देते हुए सबीना बोली " भाभी ये अपने पूजा के स्थान पर रख देना , लोग कहते है कि हमारा आशीर्वाद कभी बेकार नही जाता । माँ आपकी गोद जल्दी ही भरेगी " । सभी को खुशी खुशी विदा करके दमयंती और दीनालाल को जैसे एक नई उम्मीद मिल गई थी ।
इधर लोगो के तानों की लिस्ट में कुछ ताने और जुड़ गए । बिरजू की पत्नी निर्मला ने मंदिर में सभी औरतों के सामने दमयंती को ताने मारते हुए कमलेश से कहा " देख कम्मो लोग कुछ भी कहे पर मैं तो कहती हूँ कि बच्चों की शादी टाइम पर होनी चाहिए और फिर बच्चे भी टाइम पर ही पैदा करने चाहिए नही तो टोने टोटकों में ही सारी उम्र गुजर जाती है । "
कमलेश आग में घी डालते हुए बोली " और क्या ठीक कहती हो बहन पोते पोतियों को खिलाने की बजाय अपने बच्चों से खेलना पड़े और उस पर लोग भी बच्चो को बुढापे की औलाद कह कह कर पुकारती है । "
उनकी जली कटी बाते सुन रही सुशीला जो कि दमयंती की हालत जानने वाली उसकी सबसे अच्छी सहेली थी निर्मला से बोली " भगवान के मंदिर में तो ऐसी बाते ना करो , तुम दोनों ज़रा भगवान से तो डरो । और सुनो बच्चे तो सुअर भी पैदा करते है पर वो और उनके बच्चे जिंदगी भर गंदगी ही खाते हैं । मेरा मुँह मत खुलवाओ, अगर बोलना नही आता तो चुप रहा करो । "
स्वभाव से ही सुशील और शराफत की मूरत दमयंती सुशीला के पास आई और बोली " रहने दो बहन इसमें इनका कोई कसूर नही है , कसूर तो मेरी किस्मत का है । आप चलो ! "
नम आँखों से दमयंती और उन दोनों को घूरती हुई सुशीला मंदिर से घर के लिए चली गई ।
दमयंती की दुखती रग और उनकी जिंदगी में आने वाले हर सुख और दुख का लेखा जोखा लेकर फिर मिलेंगे "किन्नर दीदी " के साथ ।