कीमत
कीमत
सुनिए क्या आपको अब भी लगता है,कि हमने हमारी रूपवती बेटी रचना का रिश्ता एक बहुत पैसेवाले परिवार में करके ठीक किया,क्योकि अब अपनी इस हैसियत के कारण, ना आपको हमारा वहां बार बार जाना ठीक लगता है।और ना ही वो हमारे यहां आ पाती है।
तीज त्योहार पर भी अपनी इकलौती बेटी से हमे बस फोन पर बात करके ही संतोष करना पड़ता है।
इतना कहते हुए उसने अपने पल्लू से आंखों में उभरी नमी को पोछ लिया।
पत्नी की बात सुन ,पति को लगा जैसे उसके मन की कोई दबी हुई पीर आज अचानक फूट पड़ी हो।
फिर पति ने उसे दिलासा देते हुए कहा,तो क्या हुआ अगर हम सालो अपनी बेटी से नही मिल पाते,पर हमे इस बात की खुशी तो है कि वो वहां सुखी है।और उन सुख सुविधाओं का उपभोग कर रही है,जिनकी हम कभी सपनो में भी कल्पना नही करते।
और फिर रचना की माँ, तुम आखिर यह क्यो नही समझती कि कोई नायाब हीरा, किसी फकीर की झोली में भला कब तक रह सकता है।
