Rashmi Sinha

Inspirational

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Rashmi Sinha

Inspirational

खुशी

खुशी

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बरखा  ने देवी मां पर माल्यार्पण किया,दीप जलाया उसके बाद उसने अपनी प्रतिष्ठान की बहनों को बधाईयां दी। सभी बहनें बहुत खुश हैं, उनकी खुशियां देख कर बरखा भी खुश हैं। ये प्रतिष्ठान "शिल्पी हेंडीक्राफ्ट & बुटीक " की स्थापना दिवस है। इस प्रतिष्ठान को सिर्फ पैसे कमाने का जरिया बनाया ऐसा नहीं है, सभी बहनों ने हौसला और आत्मविश्वास भी कमाया है। ऐसा सोचते ही उसके होठों पर मुस्कान और आंखों में खुशी‌ के आँसू आ गए। समय की मांग ‌है ,अपनी ताकत को‌ पहचानों और ‌हौसले से कदम बढ़ाओ फिर रास्ते बनते जाते हैं। हम बहनें जब अपने अस्तित्व का सम्मान खुद से की और हर‌ परिस्थिति का सामना करते हुए मजबूती से खड़ी हैं, तो लोगों का नजरिया बदलते समय नहीं लगा। 

   बरखा याद करते हुए पुराने दिनों में खो गई " उसके मां पापा ने बहुत ही लाड़ प्यार से परवरिश कर, पढ़ाई पूरी होते ही उसकी शादी सौम्य से कर दिए। वो भी तो बहुत खुश थी सौम्य को पति के रूप में पाकर और ससुराल में पहली कदम रखते ही अपना ली थी, अपने इस घर को। सच ही तो है, उसका "अपना घर " का सपना साकार हो गया था, प्यार और अपनापन से परिपूर्ण घर ही तो चाहा था। शुरू में सब कुछ ठीक रहा धीरे धीरे बरखा के प्रति व्यवहार बदलने लगा। अब उसमें सिर्फ कमी और बुराईयां नजर आने लगी। हर काम में मीन मेख निकालना और शिकायत कर डांटना रोज की बात थी। घर आये मेहमानों के सामने भी नहीं छोड़ते थे। सौम्य की‌ उपेक्षा मन आहत करता था। अब बच्चे बड़े हो रहे थे, उनके सामने अपमानित करते तब स्वाभिमान को चोट पहुंचता। हर समय अपने लिए नकारात्मक शब्द सुन सुन कर हीन भावना से ग्रस्त हो गई थी। हद तो तब हो गई जब सौम्य ने बच्चों के सामने उसे डांटा-फटकारा और कहा कि  "तुमसे कुछ नहीं हो पायेगा।" पर बच्चे चुपचाप थे। बरखा को उस समय लगा कि बच्चों ने सौम्य की बातों का समर्थन किया हो। वो तो पूरी तरह से टुट गई थी, सबको खुश और संतुष्ट करते-करते थक कर हार गई। उस दिन बहुत रोई थी उसने सोचा कि ‌"मैं तो आज भी सभी के लिए परायी हूँ, तभी तो मेरी भावनाओं की परवाह नहीं है। यदि अब मैं अपने आप को नहीं सम्हाल सकीं तब इन बच्चों के नज़रों में मेरा क्या अस्तित्व होगा।" बहुत सी बातें मन में आने लगी और उसकी नींद उड़ गई। कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। "मैं क्या करूं ॽ मैं क्या करूं ॽ " यही सोचते सोचते कुछ दिन निकल गया। 

    एक दिन बरखा अपनी पड़ोसन शिल्पी के घर गई थी। उसने देखा शिल्पी कई चीजें  बना कर घर सजाई। जिसे देखकर बरखा के मन में एक योजना बन गई। बरखा ने कहा कि "शिल्पी तुमने जो दिवाल पर  टांगा है , बहुत सुंदर है। बाजार में  महंगा मिलता है। इसे  बनाने में खर्च कितना आता है। ॓

शिल्पी ने कहा कि "बाजार में बहुत सी चार्ज जुड़ जानें के कारण महंगा हो जाता है। मैं तुम्हारे लिए  बना दूंगी चिंता मत करो।"

बरखा ने कहा कि "अरे नहीं, मैं एक व्यवसाय की सोच रही हूं। मुझे तो नहीं आता, सामान की सूची देना। मैं ले आऊंगी। तुम्हारे साथ मिलकर बना सकती हूं। परिचय का एक दुकान है, वहां पर सामान रखकर देखते हैं, बिकता है कि नहीं। यदि बिका तब आगे की सोचेंगे।

शिल्पी ने कहा कि "कोई परेशानी है ,ऐसा क्यों सोच रही हो।"

बरखा ने कहा कि "हां  परेशानी है, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना है। अपने आप को साबित करना है। सौम्य का ये शब्द चूमता है कि तुम कुछ नहीं कर सकती। "

शिल्पी ने कहा कि "हमें  नीचा दिखाने के लिए ऐसा कहते है। नहीं समझते, सभी  का आत्मसम्मान है। ये सब छोड़ो बरखा, बहुत सी समस्या है।" 

बरखा ने कहा कि  "नहीं, तुम मना मत करना और घर पर नहीं बताना। हम कर सकते हैं। सोचो जरा घर का सारा प्रबंधन हम औरतें सम्हालती है, पैसे कमाने  जीतना कठीन काम है। पर कोई समझता है इस बात को, नहीं न। अब हम पैसे कमाकर दिखा देंगे। बिना प्रयास किए हार नहीं मानेंगे।"

बरखा और शिल्पी रात दिन एक कर सामान तैयार किया। वो सामान बिक गया।  दोनों का उत्साह बढ़ गया। अधिक सामान बनाने के लिए उधार में सामान ले आए। पर समय मिले तब तो बनाये। घर  का  काम फटाफटा निपटाकर और रात में टेबल लैंप में सामान बनाया। घर वालों से संघर्ष फिर बाजार में माथापच्ची करते गए। बहुत तरह के सामान बनाकर रखते सब बिक्री हो जाता है, कुछ एक सामान ही वापस हुए थे। कभी लागत निकल जाता, कभी फायदा भी मिल‌ जाता। दुकान वाले भईया ने  बहुत मदद की उन्होने उधारी में समान दिलवा दिया करते थे। एक दिन उन्होंने अपनी परिचित रोली के विषय में बताया फिर उससे मिलवाया एकदम डरी सहमी हुई थी। समझा बुझाकर अपने मदद के लिए तैयार किया। बरखा और शिल्पी को पता था कि ससुराल के प्रताड़ना झेलते झेेलते मानसिक संतुलन खो रही‌ है। आत्मविश्वास लाने की कोशिश करना है, सही मायने में वे लोग रोली की मदद कर रहे थे। शिल्पी ने बहुत मेहनत किया बच्चों की तरह एक एक चीज सीखया। जब कुछ बिगड़ जाता तो रोली सहम जाती। पूरी तरह से हिम्मत छोड़ देती। तब समझाते कि "हम औरतें एक दूसरे की मदद करेंगे तभी तो कुछ हो सकेगा।" दुकान वाले भईया भी रोली को समझाते और हिम्मत देते थे। जब उसने वाॅल हेगिंंग पूरा बनाया, तब कितनी चकित थी और बच्चों की तरह  खुश हो रही थी। धीरे धीरे धीरे आत्मविश्वास आया। आज रोली सफल व्यवसायिक बन गई है।  

  इसी तरह हम लोगों ने और भी बहनों को जोड़ा।‌ सभी बहनों को समझाया कि "कुछ समय अपने लिए जी कर देखो।" हमारी खुशी इस बात पर भी है कि हमारी सासु मां हमारे साथ है। यहां उनका मन लगता है। उसी समय शिल्पी ने आकर बधाई दी और कहा कि "कहां खोई हो, पुरानी बातें छोड़ो। अपने आप को साबित करना चाहती थी सो तुमने कर लिया। तुमने तो इन बहनों का आत्मविश्वास भी लौटाया है। हम तो पैसा कमा कर दिखाना चाहते थे पर इन चेहरों की ख़ुशियों के सामने पैसा कुछ नहीं है।"

बरखा ने कहा कि "सही कहा तुमने। शिल्पी तुमने इनके हाथ में काम देकर हौसला दिया है, अब ये डरतीं नहीं है डटकर सामना करतीं हैं। कितने आसानी से घर और व्यवसाय  दोनो सम्हाल  रही है। पंंख फैलाने की हिम्मत चाहिए, उड़ने ‌के लिए  आसमान मिल जाता है। वो हिम्मत तुमने दिया।"

शिल्पी न हंसते हुए कहा कि "हम दोनों एक दूसरे के बिना कुछ नहीं।"

    तभी सौम्य और शिल्पी का पति मधुर पार्टी बम फोड़ते हुए अंदर आकर सभी को चकित कर दिया। उनके पीछे  बरखा, शिल्पी, रोली, आरती और भी बहनों के परिवार के ‌ सदस्य खड़े थे सबसे पीछे बरखा की ननद उर्मि और उसका पति केक लेकर आए। वे लोग प्रतिष्ठान की बहनों को चकित देख हंसते हुए बोले "हम लोग ‌अंदर आ सकते हैं, इजाजत है।"

 उर्मि ने कहा कि "मैंने आपके इस उत्सव में हम‌ सब आये है। चलो केक काटते हैं।"

 फिर केक काट कर मुंह मिठा  किया। उर्मि ने कहा कि "ये एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान है पर आप सब ‌समाज सेवा  कर रहे हैं। सभी औरतें एक दूसरे के साथ खड़े हो जाएं फिर समाज बहुत खुबसूरत हो जाएगा।"

मधुर ने कहा कि "शिल्पी तुमने अपना नाम सार्थक ‌कर दिया। हमें गर्व है तुम पर।" 

"शिल्पी हेंडीक्राफ्ट & बुटीक " का जन्मदिन उत्साह से मनाया गया। सभी बहनों की ख़ुशियों का अंत नहीं था। सभी को समझ आ गया कि जब हम खुश हैं तभी घर में सब खुश हैं और सकारात्मक वातावरण हमें  उर्जा देता रहेगा। आज उन्हें सच्ची खुशी मिली।



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