Sneh Goswami

Abstract

5.0  

Sneh Goswami

Abstract

खत तुम तक पहुँचे

खत तुम तक पहुँचे

2 mins
485


मकान न 6/1499

जी  सादर प्रणाम। 

बहुत दिन हुए तुम से मिले। दिन कौन से सात साल हो गये भेंट हुये। मन तरस गया था तुम्हारी सूरत देखे। इसलिए भतीजे की शादी का कार्ड पाते ही दौड़े चले गये थे। रेल से उतरे तो पहचान ही नहीं पाये कि यह हमारा शहर है। सड़क किनारे लगे आम, लीची और लोकाट के पेड़ कहीं नहीं थे। खेतों से आती बासमती की महक भी गायब।

 स्टेशन से रिक्शा लेकर गलियों से गुजरे तो लगा, हाँ यही तो है पुराना शहर। छोटी तंग गलियाँ वहीं की वहीं थी। इधर उधर झाँकते गये कि किसी आँख में परिचय की मुस्कुराहट दिखे पर कहीं कोई अपना नहीं दिखा। अपने मन को दिलासा दिया, अपनी गली तो पहचान ही लेगी। शादी वाले घर में भी औपचारिक स्वागत ही मिला। रिशतेदारों की रस्मी हाय हल्लो में गर्माहट गधे के सिर से सींग जैसी गायब मिली। ये सब समझते बूझते सोचा तुम्हे ही मिल लिया जाय सो तुमसे मिलने पहुँची थी उस गली में जहाँ तुम थे, पर शायद तुम भी नहीं थे। जहाँ पिताजी शाम को कुर्सी बिछा बैठते थे,

वहाँ अब कार के लिए रैम्प था। जहाँ हम ऊँच नीच का फाफड़ा, पोसमपा, नीली साड़ी पीली साड़ी खेला करते थे, कोई खेलने वाला नहीं था। यह वही घर था जहाँ के कण-कण में खुशियाँ, आँसू, अरमान सब संजोये थे। इसी के आंगन में गुड़िया की शादी हुई थी और यही इसी दहलीज पर मेरी बारात उतरी थी। विदा होते समय लगा था कैसे जी पाउंगी तुम्हारे बिना। माँ- पिताजी, भैया, दीदी के साथ साथ तुम भी तो फूट- फूट कर रोये थे। पर आज तो कुछ भी अपना नहीँ लगा, जब तक पिताजी रहे, तीज त्यौहार,छुट्टियों में आना हो जाता था।अपने हाथों से कपड़ा ले तुम्हारी एक एक दीवार, एक एक कोना झाड़ती। एक एक चीज को अपने आँचल से साफ करती मैं फिर से फ्राक पहनने वाली छोटी बच्ची ही तो बन जाती थी। पिताजी के जाने के बाद माँ का इसरार और बार बार बुलवा भेजना। वह छोटी छोटी बरनी में अचार,चटनी, मुन्गोड़ी भर कर रखना, जवे की पोटली, छिले मगज का लिफाफा हाथ के बुने दस्ताने सब बैग में धरे मिलते। लाख कहने के बावजूद - क्यों इतनी मेहनत करती हो माँ हर चीज तो बाजार से मिल जाती है।

 माँ को गये सात साल हो गये है और इतने साल ही तुमसे मिले हुए। तुम्हारे सामने से गुजर कर आ गयी हूँ, तुम नहीं पहचान पाये उस लड़की को जो सारा दिन मेरा घर मेरा घर चिल्लाती रहती थी। तुम्हें चमकाना जिसका जुनून था। शायद मेरा यह खत देख कर तुम मुझे पहचान पाओ। 

इस उम्मीद में,

तुम्हारी बिट्टो।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract